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    सांस रोकने से कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा, आइआइटी के शोध में सामने आई बात

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Tue, 12 Jan 2021 10:34 AM (IST)

    भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास की रिसर्च में ये बात सामने आई है कि सांस रोकने से कोरोना संक्रमण का खतरा अधिक होता है। आइआइटी की ये रिसर्च प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल फीजिक्स ऑफ फ्लूड्स में पब्लिश भी हुई है।

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    आइआइटी मद्रास ने की कोरोना पर नई रिसर्च

    नई दिल्‍ली (पीटीआई)। सांस रोककर रखने से कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी), मद्रास के शोधकर्ताओं के अध्ययन में यह बात सामने आई है। शोधकर्ताओं ने एक प्रयोगशाला में सांस लेने की आवृत्ति को बेहतर ढंग से समझने के लिए मॉडल का सहारा लिया। इसमें यह देखा गया कि वायरस युक्त ड्रापलेट्स के प्रवाह की दर फेफड़ों को किस प्रकार संक्रमित करती है। यह शोध प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल फीजिक्स ऑफ फ्लूड्स में प्रकाशित हुआ है। यह कोविड-19 सहित श्वसन से संबंधित संक्रामक रोगों के लिए बेहतर चिकित्सा और दवाओं के विकास का मार्ग खोलता है।

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    ऐसे होता है संक्रमण

    शोधकर्ताओं के मुताबिक, हमने प्रयोगशाला में सांस लेने की आवृत्ति का मॉडल तैयार किया। इसमें पाया गया कि कम सांस लेने से वायरस फेफड़ों में ज्यादा समय तक रह पाता है, जिसके कारण उसके जमाव की आशंका बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति संक्रमित हो जाता है। साथ ही कई स्तरों वाली फेफड़ों की संरचना व्यक्ति की कोविड-19 के प्रति संवेदनशीलता को भी प्रभावित करती है।

    शारीरिक प्रक्रिया को किया प्रदर्शित

    आइआइटी मद्रास के एप्लाइड मैकेनिक्स विभाग के प्रोफेसर महेश पंचाग्नुला के अनुसार, कोविड-19 ने फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों की समझ को विस्तार दिया है। यह अध्ययन शारीरिक प्रक्रिया को प्रदर्शित करता है, जिसके जरिये एयरोसोल फेफड़ों के भीतर पहुंचते हैं। हमने पाया कि सांस रोककर रखने अथवा धीमी लेने से फेफड़ों में वायरस के जमाव की आशंका बढ़ जाती है।

    छींक व खांसी के जरिये ज्यादा प्रसार

    शोध टीम में संस्थान के रिसर्च स्कॉलर अर्नब कुमार मलिक और सौमाल्या मुखर्जी भी शामिल हैं। उनके अनुसार, कोरोना वायरस छींकने और खांसी के दौरान ड्रॉपलेट्स के जरिये फैलता है। टीम ने छोटी वाहिकाओं में ड्रॉपलेट्स की गति का अध्ययन करके फेफड़ों में ड्रॉपलेट्स की गतिशीलता का अनुसरण किया। इन छोटी वाहिकाओं का व्यास श्वांस नलिका के समान ही था। उन्होंने फ्लोरोसेंट पार्टिकल्स के साथ पानी मिलाया और नेबुलाइजर के इस्तेमाल से तरल के जरिये एयरोसोल उत्पन्न किए। इन फ्लोरोसेंट एयरोसोल का उपयोग वाहिकाओं में कणों की गति और जमाव पर नजर रखने के लिए किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि ड्रॉपलेट्स के लंबी वाहिकाओं में जमा होने की आशंका है।

    रेनॉल्ड नंबर्स ऐसे लगाता है पता

    अध्ययन के दौरान यह जानने की कोशिश की गई कि प्रवाह की प्रकृति का पता लगाने वाला मापदंड ‘रेनॉल्ड नंबर्स’ कैसे स्थिर या शांत है और यह वाहिकाओं में जमाव को तय करता है। उन्होंने पाया कि जब एयरोसोल की गति स्थिर होती है तो तब कण विसरण की प्रक्रिया के माध्यम से जमा होते हैं। हालांकि यदि प्रवाह अशांत है तब कण प्रभाव की प्रक्रिया के माध्यम से जमा होते हैं।