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    कैंसर रोधी दवा के लिए मिला नया विकल्प, आइआइटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने वैकल्पिक पदार्थ की पहचान की

    By Krishna Bihari SinghEdited By:
    Updated: Sat, 27 Feb 2021 05:45 PM (IST)

    भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मद्रास ने कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाले पदार्थ कैंप्टोथेसिन के टिकाऊ और असरदार विकल्प की पहचान की है। इस समय यह पदार्थ चाइनीज और भारतीय प्रजाति के पेड़ों से निकाला जाता है।

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    आइआइटी मद्रास ने कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाले पदार्थ कैंप्टोथेसिन के और असरदार विकल्प की पहचान की है।

    चेन्नई, आइएएनएस। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी), मद्रास ने कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाले पदार्थ कैंप्टोथेसिन के टिकाऊ और असरदार विकल्प की पहचान की है। इस समय यह पदार्थ चाइनीज और भारतीय प्रजाति के पेड़ों से निकाला जाता है। लेकिन मांग को पूरा करने के लिए इन पेड़ों की अत्यधिक कटाई होने से यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है।

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    एक प्रतिष्ठित पत्रिका इंटरनेशनल जर्नल ऑफ साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार, यह अभिनव जैविक फर्मेटेशन की प्रक्रिया बड़े पैमाने पर बाजार की मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन का एक प्रभावी तथा टिकाऊ तरीका है। इसका फायदा यह भी है कि उन खास प्रजाति के पेड़ों को बचाने के साथ ही चीन से आयात पर निर्भरता कम होगी।

    आइआइटी, मद्रास के जैव प्रौद्योगिकी विभाग की सहायक प्राध्यापक और शोधकर्ता स्मिता श्रीवास्तव ने बताया कि इस जैविक स्ट्रेन की खासियत यह है कि इसके जरिये होने वाला उत्पादन अगली सौ पीढि़यों तक की जरूरतों को पूरा सकता है।

    उन्होंने बताया कि योजना यह है कि निकाले गए इस स्ट्रेन का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर कैंप्टोथेसिन के इन विट्रो उत्पादन के लिए किया जाए और इसमें इच्छुक औद्योगिक इकाइयों से सहयोग लिया जाए। कैंसर के इलाज में टोपोटेकन और इरिनोटेकन नामक दवाओं का बड़े पैमाने पर उपयोग होता है, जिनका उत्पादन कैंप्टोथेसिन से होता है। कैंप्टोथेसिन के दर्जनों सह उत्पादों का क्लिनिकल ट्रायल विभिन्न चरणों में है।

    कैंप्टोथेसिन चाइनीज पेड़ कैंप्टोथेका एक्युमिनाटा और भारत में पाए जाने वाले पेड़ नोखापोडायट्स निम्मोनियाना से निकाला जाता है। एक टन कैंप्टोथेसिन निकालने के लिए करीब 1,000 टन पेड़ सामग्री की जरूरत पड़ती है। बाजार की मांग को पूरा करने के लिए इन प्रजातियों के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई होने से ये विलुप्त होने की कगार पर हैं। भारत में पिछले एक दशक में नोखापोडायट्स निम्मोनियाना की संख्या में भारी कमी आई है।

    एशियन पैसेफिक जर्नल ऑफ कैंसर प्रिवेंशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत समेत दुनियाभर में कैंसर मौत का एक बड़ा कारक बन गया है। साल 2026 तक भारत में पुरुष कैंसर रोगियों संख्या सालाना 9.3 लाख और महिला रोगियों की संख्या 9.4 लाख तक हो सकती है।