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    पीएम-सीएम बर्खास्‍तगी बिल से क्‍या बदलेगा? विरोध में विपक्ष; एक्‍सपर्ट ने गिनाए फायदे

    मोदी सरकार ने संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025 पेश किया है जिसके अनुसार प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री या मंत्री को 30 दिन से अधिक जेल में रहने पर पद से हटना पड़ेगा। यह विधेयक अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन जैसे नेताओं के मामलों से प्रेरित है जिन्होंने जेल से सरकार चलाने का प्रयास किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा...

    By Digital Desk Edited By: Deepti Mishra Updated: Mon, 25 Aug 2025 08:09 PM (IST)
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    गिरफ्तार होने पर पीएम-सीएम की होगी पद से बर्खास्‍तगी, विधेयक में प्रस्‍तावित

    डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। एक नया विधेयक संविधान (130 वां संशोधन) विधेयक, 2025, संसद में पेश किया गया है। प्रस्तावित विधेयक, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों सहित निर्वाचित प्रतिनिधियों को उनके पदों से हटाने का लक्ष्य रखता है, अगर उन्हें गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार किया जाता है।

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    विधेयक से क्‍या बदलेगा?

    विधेयक के मुख्य प्रविधान के अनुसार, यदि किसी मंत्री को 30 दिनों के लिए गिरफ्तार या हिरासत में लिया जाता है तो उसे 31वें दिन अपना पद छोड़ना होगा, बशर्ते उसे ज़मानत न दी गई हो। यह वर्तमान कानूनी ढांचे में एक महत्वपूर्ण बदलाव है, जहां मंत्री जेल में रहते हुए भी पद पर बने रह सकते हैं। जेल की सलाखों के पीछे से फाइलों पर हस्ताक्षर और सरकारी आदेश जारी करने के उदाहरण मौजूद हैं।

    प्रस्तावित संशोधन में सरकार के मुखिया के रूप में व्यक्ति की कार्यकारी शक्तियां छीन ली जाएंगी, लेकिन वह राज्य विधान सभा या संसद के सदस्य के रूप में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए अपना पद बरकरार रख सकेगा। यह अंतर महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सीट को रिक्त होने से रोकता है, उपचुनाव से बचाता है और व्यक्ति को विधायक के रूप में बने रहने की अनुमति देता है।

    पीएम-सीएम बर्खास्तगी बिल पर क्या बोले पीएम?

    सरकार ने इस विधेयक को राजनीतिक नैतिकता बढ़ाने और भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक आवश्यक कदम बताते हुए तर्क दिया है कि किसी लोक सेवक, विशेष रूप से सरकार के मुखिया को गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना करते हुए पद पर नहीं रहना चाहिए।

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में एक सार्वजनिक संबोधन में कहा था,  

    'यदि एक सरकारी कर्मचारी समान अपराध के लिए अपनी नौकरी खो सकता है, तो एक नेता को उच्च मानकों पर रखा जाना चाहिए। इस विधेयक पर बहस केवल अकादमिक नहीं है।

    यह हाल के और पिछले राजनीतिक संकटों से प्रेरित है। अरविंद केजरीवाल, हेमंत सोरेन और  लालू प्रसाद यादव प्रकरण के हालिया मामले इस तरह के कानून की आवश्यकता का स्पष्ट प्रमाण हैं।'

    केजरीवाल न जेल से चलाई सरकार

    यह हाल के और पिछले राजनीतिक संकटों से प्रेरित है, जिन्होंने उस कानूनी शून्य को उजागर किया है, जिसे यह विधेयक भरना चाहता है। उदाहरण के लिए, दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का मामला। उन्हें शराब नीति मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया था।  केजरीवाल के मामले ने जेल से काम करने वाले एक मुख्यमंत्री की कानूनी और संवैधानिक अस्पष्टताओं को सामने ला दिया।

    केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) ने जोर देकर कहा कि वह जेल से भी मुख्यमंत्री के रूप में काम करते रहेंगे, और उन्होंने ऐसा किया भी, लेकिन व्यावहारिक कठिनाइयां तब उजागर हुईं जब सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें जमानत देते हुए ऐसी शर्तें लगा दीं जिससे उनके लिए अपने कार्यालय जाना या आधिकारिक फाइलों पर हस्ताक्षर करना संभव नहीं रह गया।

    हेमंत सोरेन ने दिया इस्‍तीफा

    इसके ठीक विपरीत झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ऐसी ही स्थिति का सामना करने पर एक अलग रुख अपनाया और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों में गिरफ्तारी से कुछ ही क्षण पहले इस्तीफा देने का फैसला किया।

     उनकी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के इस सक्रिय कदम ने चंपई सोरेन को अपना उत्तराधिकारी नामित करके एक सुचारु परिवर्तन सुनिश्चित किया, जिससे एक ऐसी प्रक्रिया का प्रदर्शन हुआ, जिसे नया कानून औपचारिक रूप देगा।

    लालू ने पत्‍नी को बनाया था सीएम 

    हालांकि, सबसे प्रमुख ऐतिहासिक उदाहरण बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का है। 1997 में चारा घोटाला मामले में जब उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ, तो उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

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    वंशवादी राजनीति में उनका यह कदम निर्णायक साबित हुआ। यह दर्शाता है कि कैसे पार्टियां ऐसे मौकों का इस्तेमाल परिवार के किसी सदस्य को अस्थायी रूप से पद पर बिठाने के लिए करती रही हैं, जिससे गिरफ्तार नेता पर्दे के पीछे से नियंत्रण बनाए रख सके।

    ये मामले एक स्पष्ट कानूनी ढांचे की जरूरत को रेखांकित करते हैं जो सरकार के मुखिया के कानूनी संकट में होने पर नेता की भूमिका और पार्टी की उत्तराधिकार योजना को संबोधित करे।

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    (देवेन्द्र पई, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति शास्त्र, दिल्‍ली विश्वविद्यालय से बातचीत)