अफगानिस्तान में रेयर अर्थ मिनरल्स की संभावना तलाशेगा भारत, सरकार जल्दी भेजेगी उच्च स्तरीय दल
भारत और अफगानिस्तान के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए भारत सरकार एक उच्च स्तरीय दल को अफगानिस्तान भेजेगी। यह दल वहां खनन क्षेत्र में निवेश की संभावनाओं का आकलन करेगा, खासकर दुर्लभ धातुओं के भंडारों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। विदेश मंत्री मुत्तकी ने भारतीय कंपनियों को खनन परियोजनाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया है, जिससे दोनों देशों के बीच कारोबारी संबंध मजबूत होंगे।
-1760194321177.webp)
अफगानिस्तान में रेयर अर्थ मिनरल्स को लेकर भारत भेजेगे एक टीम।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत और अफगानिस्तान के बीच आर्थिक सहयोग को नई ऊंचाई देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया जा रहा है। भारतीय सरकार शीघ्र ही एक उच्च स्तरीय दल को अफगानिस्तान भेजने जा रही है, जो वहां के समृद्ध खनन क्षेत्र में निवेश की संभावनाओं का आकलन करेगा और इसमें द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत बनाने पर चर्चा करेगा।
यह दल विशेष रूप से दुर्लभ धातुओं (रेअर अर्थ एलिमेंट्स) के भंडारों पर फोकस करेगा, जो भारत के आर्थिक विकास और हरित ऊर्जा परियोजनाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इसी हफ्ते शुक्रवार को नई दिल्ली में हुई अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के बीच वार्ता में इसी मुद्दे पर विस्तृत चर्चा हुई, जिसमें अफगानिस्तान ने भारतीय कंपनियों को अपने खनन क्षेत्र में निवेश के लिए आमंत्रित किया।
खनिजों को भारत लाने का सफर लंबा
भारतीय अधिकारी मानते हैं कि अभी अफगानी सरकार ने सिर्फ आमंत्रित किया है, लेकिन वहां खनन क्षेत्रों का आकलन करना और फिर उनसे खनन अधिकार हासिल करने से लेकर खनिजों को भारत तक लाने का सफर बहुत लंबी है। खास तौर पर तब जब इस खनन क्षेत्र पर अमेरिका और चीन की भी नजर है। इसके अलावा पड़ोसी देश पाकिस्तान भी भारत के इस तरह की कोशिशों पर पानी डालने की पूरी कोशिश करेगा। साथ ही अफगानिस्तान की आतंरिक सुरक्षा को लेकर मौजूद चुनौतियों का काट भी खोजना होगा। इसके बावजूद भारत उम्मीद कर रहा है कि वह इस्लामिक अमीरात (तालिबान) सरकार के साथ सामंजस्य करके खनिजों का खनन कर सकता है जिससे अफगानिस्तान की इकोनॉमी को भी बहुत फायदा होगा।
दूसरे देशों पर कम हो सकती है भारत की निर्भरता
भारत में दुर्लभ धातुओं की मांग तेजी से बढ़ने की संभावना है और इनकी उपलब्धता सरकार की कूटनीति का एक अहम हिस्सा बन चुकी हैं। लिथियम, नियोडिमियम, लैंथेनम और सेरियम जैसे दुलर्भ धातु इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी), स्मार्टफोन, रिन्यूएबल एनर्जी उपकरणों और रक्षा प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक हैं। भारत में ईवी और सौर ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े उपकरणों का निर्माण तेजी से बढ़ रहा है। अभी तक इनके लिए जरूरी धातुओं का इस्तेमाल अमूमन चीन से हो रहा है। अफगानिस्तान का सहयोग भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता कम कर सकती है।
अफगानिस्तान में 84 लाख करोड़ रुपये खनिज
अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (यूएसजीएस) की 2011 की रिपोर्ट में अफगानिस्तान में कुल खनिज संसाधनों का मूल्य लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 84 लाख करोड़ रुपये) आंका गया था। इसमें कई तरह की दुर्लभ धातुओं का आकलन भी शामिल है। कुछ अन्य रिपोर्ट में भी वहां 14 लाख मीट्रिक टन दुर्लभ धातुओं के भंडार होने की बात कही गई है, जो वैश्विक जरूरतों का बड़ा हिस्सा पूरा करने की क्षमता रखते हैं। हेलमंड प्रांत में लीथियम व यूरेनियम का बड़ा भंडार व दूससे तत्व होने की बात सामने आती रही है। अफगानिस्तान में लौह अयस्क, तांबा और एल्यूमीनियम का भी बड़ा भंडार हैं।
पेंटागन ने 2010 में अफगानिस्तान को ''लिथियम का सऊदी अरब'' करार दिया था, क्योंकि इसके भंडार बोलिविया (विश्व के सबसे बड़े लिथियम उत्पादक) से भी अधिक हो सकते हैं। अफगानिस्तान के खनन मंत्रालय की 2019 की रिपोर्ट में भी दुर्लभ धातुओं को 1.4 मिलियन टन अनुमानित किया गया था। हालांकि, इन भंडारों का सटीक आकलन अभी भी चुनौतीपूर्ण है।
विदेश मंत्री मुत्तकी ने कल प्रेस वार्ता में कहा था कि, काबुल भारतीय कंपनियों को खनन परियोजनाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करेगा। इसमें तकनीकी सहायता, बुनियादी ढांचे का विकास और संयुक्त उद्यम शामिल हैं। इससे दोनों देशों के बीच कारोबारी संबंध मजबूत होंगे। यह प्रस्ताव उन्होंने भारतीय विदेश मंत्री के साथ बैठक में भी रखा। भारतीय पक्ष ने इसका स्वागत किया है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।