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    SC के पूर्व जज जस्टिस ओका की बड़ी टिप्पणी, कहा- धार्मिक प्रथाएं पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचा सकतीं

    Updated: Wed, 29 Oct 2025 11:30 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अभय एस. ओका ने कहा कि पटाखे फोड़ना, नदियों में स्नान, मूर्ति विसर्जन धार्मिक प्रथाएं नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी धर्म पर्यावरण को नष्ट करने की अनुमति नहीं देता, बल्कि इसकी रक्षा करने की शिक्षा देता है। जस्टिस ओका ने वायु और जल प्रदूषण को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया और पर्यावरण की रक्षा पर जोर दिया।

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    SC के पूर्व जज जस्टिस ओका की बड़ी टिप्पणी (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अभय एस. ओका ने कहा कि पटाखे फोड़ना, लाखों लोगों का नदियों में स्नान करना, मूर्ति विसर्जन और धार्मिक त्योहारों में लाउडस्पीकर का उपयोग संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत आवश्यक धार्मिक प्रथाएं नहीं हैं।

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    जस्टिस ओका ने बुधवार को कहा कि कोई भी धर्म हमें पर्यावरण को नष्ट करने की अनुमति नहीं देता या इसे प्रोत्साहित नहीं करता; बल्कि, यह हमें पर्यावरण की रक्षा करने और जीवों और जानवरों के प्रति करुणा दिखाने की शिक्षा देता है।

    दुर्भाग्यवश, धर्म के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति है। यदि हम भारत के सभी धर्मों के सिद्धांतों की जांच करें, तो हमें हर धर्म के सिद्धांतों में पर्यावरण की रक्षा और जीवों के प्रति करुणा दिखाने का संदेश मिलेगा। कोई भी धर्म हमें पर्यावरण को नष्ट करने की अनुमति नहीं देता। धर्म हमें पर्यावरण की रक्षा करने और जीवों के प्रति करुणा दिखाने की शिक्षा देता है।

    सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने क्या कहा?

    कोई भी धर्म हमें त्योहार मनाते समय जानवरों के प्रति क्रूरता करने की अनुमति नहीं देता।'' सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ''स्वच्छ वायु, जलवायु न्याय और हम- एक स्थायी भविष्य के लिए एक साथ'' कार्यक्रम में बोल रहे थे, जिसका आयोजन सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा किया गया था।

    पर्यावरण की रक्षा की आवश्यकता पर और विस्तार करते हुए जस्टिस ओका ने कहा कि वायु और जल का प्रदूषण अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाना चाहिए। इसमें मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है।

    पूर्व जज ने कहा कि हर नागरिक का यह मौलिक कर्तव्य है कि वह पर्यावरण की रक्षा करे, जबकि वैज्ञानिक ²ष्टिकोण और सुधार की भावना विकसित करे। वर्तमान में अदालतें ही एकमात्र संस्थाएं हैं जो प्रभावी रूप से पर्यावरण की रक्षा कर सकती हैं।