MP में सामने आया केनेडी सिंड्रोम का पहला मामला, एम्स दिल्ली की रिपोर्ट ने खोला राज
ग्वालियर के जयारोग्य अस्पताल में केनेडी सिंड्रोम का पहला मामला सामने आया है। 48 वर्षीय पुरुष, जो दो साल से इस बीमारी से जूझ रहा था, में इस रोग की पुष्टि हुई। एम्स दिल्ली की रिपोर्ट में आनुवंशिक बीमारी की पुष्टि हुई। केनेडी सिंड्रोम पुरुषों को प्रभावित करने वाला एक दुर्लभ विकार है, जिसके लक्षणों में मांसपेशियों की कमजोरी और बोलने में कठिनाई शामिल है। समय पर पहचान और उपचार से जीवनशैली को बेहतर बनाया जा सकता है।

ग्वालियर निवासी 48 वर्षीय व्यक्ति पिछले दो वर्षों से इससे जूझ रहा था (प्रतीकात्मक तस्वीर)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जयारोग्य अस्पताल के न्यूरोलाजी विभाग में पहली बार दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी केनेडी सिंड्रोम का मामला सामने आया है। यह बीमारी बेहद कम लोगों में पाई जाती है और आमतौर पर पुरुषों को प्रभावित करती है। ग्वालियर निवासी 48 वर्षीय व्यक्ति पिछले दो वर्षों से इससे जूझ रहा था, लेकिन कमजोरी को सामान्य समझकर अनदेखा करता रहा।
शुरुआत में मरीज को हाथों में पतलापन और कमजोरी महसूस होती थी। बाद में पैरों में कमजोरी बढ़ने के साथ खाने और बोलने में परेशानी होने लगी। स्थिति बिगड़ने पर अक्टूबर में वह न्यूरोलाजी विभाग पहुंचा। प्राथमिक जांच में न्यूरो–मस्कुलर विकार के लक्षण दिखे, जिसके बाद उसे भर्ती कर लिया गया। न्यूरोलाजी विशेषज्ञों ने गहन अध्ययन के बाद केनेडी सिंड्रोम की आशंका जताई।
लक्षण 20 से 70 वर्ष की आयु के पुरुषों में देखे जा सकते हैं
चूंकि अस्पताल में आनुवंशिक परीक्षण की सुविधा उपलब्ध नहीं है, इसलिए सैंपल एम्स दिल्ली भेजे गए। एम्स की जेनेटिक पैनल रिपोर्ट में रोग की पुष्टि हुई। आमतौर पर यह रोग 30 से 50 वर्ष की आयु के बीच शुरू होता है, हालांकि इसके लक्षण 20 से 70 वर्ष की आयु के पुरुषों में देखे जा सकते हैं। मरीज सात दिन रहा भर्तीमरीज को सात दिन भर्ती रखकर उपचार और निगरानी की गई।
चिकित्सकों के अनुसार रोग आनुवंशिक है, लेकिन रोचक बात यह है कि मरीज के परिवार में किसी अन्य सदस्य में इस बीमारी का इतिहास नहीं मिला।न्यूरो–मस्कुलर विकार, जो धीरे–धीरे कमजोर करती हैं मांसपेशियांकेनेडी सिंड्रोम एक्स-लिंक्ड जेनेटिक डिसआर्डर है, जो मुख्यतः पुरुषों को प्रभावित करता है। यह धीरे-धीरे बढ़ता है और मांसपेशियों को कमजोर करता जाता है।
इसमें मांसपेशियों में कमजोरी और क्षीणता, ऐंठन, हाथ-पैरों में कंपन (ट्रेमर), बोलने में दिक्कत, निगलने में परेशानी और कुछ हार्मोनल बदलाव दिखाई दे सकते हैं। समय रहते पहचान, नियमित फालो-अप, फिजियोथेरेपी और विशेषज्ञ देखभाल से मरीज की जीवनशैली को बेहतर बनाया जा सकता है।-डा. दिनेश उदेनिया, विभागाध्यक्ष, न्यूरोलाजी विभाग।

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