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नेहरू की गिफ्ट की गई रॉल्स रॉयस कार बनी दंपती की अलगाव की वजह, वैवाहिक विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के आर्डर पर 1951 में बड़ौदा की महारानी के लिए खरीदी गई एक एंटीक सिंगल मॉडल राल्स रॉयस कार एक नवविवाहित जोड़े के बीच अलगाव का कारण बन गई है। इसी कार की वजह से अब शाही परिवार की एक बेटी के वैवाहिक विवाद का यह मामला दहेज और उत्पीड़न के बीच झूलता हुआ सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा है।

By Agency Edited By: Jeet Kumar Updated: Sat, 16 Nov 2024 01:30 AM (IST)
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नेहरू की गिफ्ट की गई रॉल्स रॉयस कार बनी दंपती की अलगाव की वजह
 पीटीआई, नई दिल्ली। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के आर्डर पर 1951 में बड़ौदा की महारानी के लिए खरीदी गई एक एंटीक सिंगल मॉडल राल्स रॉयस कार एक नवविवाहित जोड़े के बीच अलगाव का कारण बन गई है।

73 साल पुरानी यह एंटीक कार एचजे मुलिनर एंड कंपनी ने बनाई थी जिसकी कीमत आज भी 2.5 करोड़ रुपये से अधिक है। इसी कार की वजह से अब शाही परिवार की एक बेटी के वैवाहिक विवाद का यह मामला दहेज और उत्पीड़न के बीच झूलता हुआ सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा है। लड़की और उसका परिवार खुद को छत्रपति शिवाजी महाराज के एडमिरल और कोंकण के शासक का वंशज बताते हैं।

ससुराल वाले कभी भी दुल्हन को अपने यहां नहीं ले गए

दूसरी ओर, लड़के के पिता सेना में कर्नल थे और उनका परिवार इंदौर में एक शिक्षण संस्थान चलाता है। इस जोड़े ने मार्च 2018 में ग्वालियर में सगाई और एक महीने बाद ऋषिकेश में शादी की। लेकिन दहेज में कार के विवाद के कारण ससुराल वाले कभी भी दुल्हन को अपने यहां नहीं ले गए।

वहीं, लड़के ने आरोप लगाया कि शादी के दौरान लड़की वालों ने बड़ी रकम का हेरफेर किया। लड़के ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। फिर लड़की ने लड़के और उसके परिवार के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया। हालांकि, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस एफआइआर को रद कर दिया। इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

दुल्हन ने बताया कि लड़के को रॉल्स-रॉयस कार से इतना प्रेम है कि उसने और उसके माता-पिता ने दहेज में मुंबई में एक फ्लैट के साथ यह कार भी मांगी थी।

वरिष्ठ वकील विभा दत्ता मखीजा ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भुइयां पीठ को बताया कि महिला कठिन परिस्थिति फंसे गई है क्योंकि, उसके पुराने शाही समुदाय में दोबारा विवाह की कोई परंपरा नहीं है। कोर्ट ने कहा-आज के समय में ऐसी कोई परंपरा नहीं है। वहीं, बेंच ने हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आर. बसंत को दोनों पक्षों के बीच समझौता करने के लिए मध्यस्थ नियुक्त किया है।

तीन माह से कम उम्र का बच्चा गोद लेने पर ही मातृत्व अवकाश क्यों

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के उस प्रविधान के पीछे का तर्क बताने को कहा है कि तीन माह से कम उम्र के बच्चे को गोद लेने वाली महिलाएं ही 12 हफ्ते के मातृत्व अवकाश की अधिकारी क्यों हैं। याचिका में इस प्रविधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।

जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने कहा कि पहली नजर में मामला यह है कि यह प्रविधान एक सामाजिक कल्याण कानून है और बच्चे की उम्र तीन माह सीमित करने का कोई कारण नहीं था। दूसरे शब्दों में कहें तो अगर कोई महिला तीन माह से अधिक उम्र के बच्चे को गोद लेती है तो वह संशोधन अधिनियम के तहत ऐसे किसी मातृत्व अवकाश लाभ की हकदार नहीं होगी।