'विज्ञान और योग में विरोध होने का कोई कारण नहीं', बोले मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि विज्ञान और योग में कोई विरोध नहीं है। विज्ञान बाहरी दुनिया का ज्ञान देता है, जबकि योग आंतरिक शांति प्रदान करता है। मोहन भागवत ने दोनों के समन्वय पर जोर दिया, क्योंकि दोनों ही मानव कल्याण के लिए आवश्यक हैं।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत। फाइल फोटो
राज्य ब्यूरो मुंबई, 17 अक्तूबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (रा.स्व.संघ) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि मेरी समझ से आज के विज्ञान एवं योग में विरोध होने का कोई कारण नहीं है। क्योंकि दोनों ही प्रत्यक्ष अनुभव पर भरोसा करते हैं।
मोहन भागवत शुक्रवार को मुंबई और पुणे के मध्य लोनावला स्थित कैवल्य धाम योग इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के 101 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर एक समारोह को संबोधित कर रहे थे। कैवल्य धाम योग एवं आयुर्वेद के क्षेत्र में 101 वर्षों से काम कर रहा है। उसके द्वारा किए गए कई शोधों को पेटेंट भी हासिल हो चुका है।
विज्ञान और योग में विरोध नहीं: भागवत
इस अवसर पर बोलते हुए मोहन भागवत ने कहा कि योग एवं विज्ञान में आपसी विरोध का कोई कारण नहीं है। क्योंकि योग भी प्रत्यक्ष अनुभव पर भरोसा करता है, और विज्ञान भी। विज्ञान भी प्रमाणों पर भरोसा करता है, और योग भी कहता है कि तपस्या करके देखो, तभी परिणाम प्राप्त होंगे। घर बैठे तो प्राप्त नहीं होगा। भागवत ने कहा कि आज तक जितने वैज्ञानिक शोध हुए हैं, हम उनका उपयोग उन वैज्ञानिकों पर भरोसा करके ही आंख मूंदकर कर रहे हैं। हमने स्वयं तो कोई शोध या प्रयोग करके नहीं देखा।
इस विश्वास के पीछे एक पक्की अनुभूति है कि जिनपर हम विश्वास करते हैं, उन्होंने हमें बताया है। इसी प्रकार हमारे शास्त्र भी हैं। हमने नहीं भी किए होंगे। लेकिन जो करते हैं, या हमसे करवा सकते हैं, ऐसे लोगों ने जो अनुभूति दी है, उसका हम अनुसरण करते हैं। लेकिन भौतिक दिशा में हुई प्रगति के कारण उसमें अहंकार की भावना भी आ गई। उस अहंकार के कारण उनका यही कहना रहा कि हम जो कह रहे हैं, वही सही है, बाकी सब गलत है। जबकि हमारे पूर्वजों ने अंतस में ध्यान दिया, जिसमें अहंकार को छोड़ना ही पड़ता है।
योग आंतरिक शांति का मार्ग दिखाता है: भागवत
मोहन भागवत ने कहा कि हमारी संस्कृति में पहले से जीवन का लक्ष्य अमृत तत्व की प्राप्ति माना गया था। लेकिन हम उसे भूल गए। दुनिया की बाकी शक्तियां आगे निकल गईं। उन्होंने अपने विचार चलाए। देखने में कुछ सुख-सुविधा उनके विचारों के कारण आई भी, लेकिन एकांगी थी। जबकि जीवन को बढ़ानेवाले विचार कभी एकांगी नहीं होने चाहिए। मनुष्य का भौतिक जीवन समृद्ध होना चाहिए। लेकिन ये पुरुषार्थ करते हुए हम भटकें नहीं, अपनी जड़ों से जुड़े रहें। इस जुड़ने को ही योग कहते हैं।
इसी कड़ी में मोहन भागवत ने कैवल्यधाम की प्रशंसा करते हुए कहा कि कैवल्यधाम के कार्य संघ के कार्यों के पूरक हैं। कैवल्यधाम और संघ दोनों सौ वर्ष से काम कर रहे हैं। लेकिन अब समय भी अनुकूल दिखाई दे रहा है। क्योंकि अति जड़वाद एवं उपभोगवाद से लोग विमुख होने लगे हैं। अब विज्ञान भी यह मानने को बाध्य हुआ है कि सबका मूल चेतनता है। लेकिन ऐसे विषयों का अध्ययन प्रयोगशाला में नहीं हो सकता। वहां भौतिकी के नियम नहीं चलते। इसके लिए अंतस में झांकना पड़ता है। जिसमें हमारे पूर्वजों ने सिद्धि प्राप्त की थी।
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