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    Mumbai Blast Case: हाईकोर्ट के फैसले को SC में चुनौती, लेकिन ATS की ये गलतियां पड़ेंगी भारी

    महाराष्ट्र सरकार ने 2006 के मुंबई ट्रेन विस्फोट कांड में उच्च न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। अदालत ने एटीएस की जांच में कई खामियां पाईं जैसे कॉल डिटेल रिकॉर्ड पेश न करना और इकबालिया बयानों में कट-पेस्ट तकनीक का इस्तेमाल करना। बचाव पक्ष ने इन्हीं गलतियों पर ध्यान केंद्रित किया।

    By OM Prakash Tiwari Edited By: Swaraj Srivastava Updated: Wed, 23 Jul 2025 09:18 PM (IST)
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    उच्च न्यायालय की विस्तृत टिप्पणियां सर्वोच्च न्यायालय में भी भारी पड़ेंगी (फोटो: पीटीआई)

    ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र सरकार ने 11 जुलाई, 2006 को हुए ट्रेन विस्फोट कांड पर आए उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे दी है। लेकिन इस मामले में जांच एजेंसी द्वारा की गई बुनियादी गलतियां, और उन पर उच्च न्यायालय की विस्तृत टिप्पणियां सर्वोच्च न्यायालय में भी भारी पड़ेंगी।

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    सोमवार को उच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए इस महत्त्वपूर्ण फैसले ने राजनीतिक क्षेत्रों में पक्ष-विपक्ष सहित कानून के जानकारों को भी चौंका दिया था। क्योंकि इतने महत्त्वपूर्ण मामले में विशेष मकोका अदालत से सजा पा चुके सभी 12 अभियुक्तों को साफ बरी कर दिया गया था। लेकिन अब फैसले का बारीकी से अध्ययन करने पर पता चल रहा है कि जांच एजेंसी एटीएस ने अदालत में अपना पक्ष रखते समय कई बड़ी गलतियां की हैं।

    बचाव पक्ष ने गलतियों पर दिया ध्यान

    • निचली अदालत में तो बचाव पक्ष इन गलतियों को कोर्ट के संज्ञान में नहीं ला सका। लेकिन एक बार सजा मिलने के बाद बचाव पक्ष के वकीलों ने इन्हीं गलतियों पर अपना ध्यान केंद्रित किया और उच्च न्यायालय को उनसे सहमत कराने में भी सफल रहा।
    • बचाव पक्ष की दलीलों से सहमत होते हुए ही उच्च न्यायालय ने अपने 600 पृष्ठों से अधिक के फैसले में अभियोजन पक्ष की एक-एक गलती पर विस्तार से टिप्पणी की है। जैसे- मुकदमे की सुनवाई के समय कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) प्रस्तुत न किया जाना। एटीएस ने आरोपियों की रिमांड पाने के लिए तो कोर्ट में कहा था उसके पास पाकिस्तान में बैठे लश्कर के आतंकी आजम चीमा के साथ विस्फोट में शामिल आतंकियों की बातचीत के फोन रिकॉर्ड हैं।
    • लेकिन केस की सुनवाई शुरू होने पर इनमें से एक भी सीडीआर प्रस्तुत नहीं किया गया। सीडीआर प्रस्तुत न कर पाने से अभियोजन पक्ष भारत मूल के आरोपियों का संबंध पाकिस्तानी साजिशकर्ताओं से स्थापित करने में भी सफल नहीं हो सका।

    इकबालिया बयान में कट-पेस्ट पर चिंता

    इसी प्रकार आरोपियों से पूछे गए प्रश्नों की सूची और उनसे मिले उत्तर पर भी उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की है। उच्च न्यायालय ने इस बात पर आश्चर्य जताया है कि एक ही अपराध के आरोपियों से पूछे जानेवाले प्रश्न तो एक जैसे हो सकते हैं। लेकिन उनके उत्तर भी कैसे समान हो सकते हैं। इस प्रकार अभियुक्तों के इकबालिया बयान पेश करने में अपनाई गई कट-पेस्ट तकनीक पर उच्च न्यायालय ने गंभीर टिप्पणियां की हैं।

    किसी छोटे-मोटे हत्या के मामले में भी हत्या में प्रयुक्त हथियार की बरामदगी बहुत बड़ा सबूत होती है। यहां जिस विस्फोट कांड में 187 लोग मारे गए, उसमें जांच एजेंसी यह तक साबित नहीं कर सकी कि इन विस्फोटों को अंजाम देने में ‘टाइमर डिवाइस’ का उपयोग किया गया, या ‘ट्रिगर डिवाइस’ का।

    इन उदाहरणों से समझें स्थिति

    मुंबई उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एजाज नक्वी महाराष्ट्र के ही मालेगांव में 2006 में हुए विस्फोट, हरियाणा में सदभावना एक्सप्रेस में हुए विस्फोट, हैदराबाद की मीनारा मस्जिद जैसे कुछ और मामलों का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि प्रारंभिक स्तर पर जांच एजेंसी द्वारा की गई गलतियों के कारण ऐसे मामले उच्च अदालतों में टिक नहीं पाते।

    यही 7/11 के मामले में उच्च न्यायालय में भी हुआ है और आगे भी सर्वोच्च न्यायालय में यह केस टिक नहीं पाएगा। क्योंकि अतीत में जांच एजेंसियों द्वारा की गई गलतियों को अब सुधारा नहीं जा सकता।

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