Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ऊर्जा क्षेत्र को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त बनाना सबसे महंगा, भारत सहित नौ देशों को खर्च करने होंगे 2.2 लाख करोड़ डॉलर

    Updated: Fri, 07 Nov 2025 07:33 AM (IST)

    थिंक टैंक सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस द्वारा जारी ''नौ जी-20 उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की जलवायु वित्त आवश्यकताएं: पहुंच के अंदर'' शीर्षक से जारी रिपोर्ट, इस धारणा को चुनौती देती है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बहुत ज्यादा संसाधनों की जरूरत होगी, जिसका इंतजाम करना उनके लिए संभव नहीं है।

    Hero Image

    भारत सहित नौ देशों को खर्च करने होंगे 2.2 लाख करोड़ डॉलर  (सांकेतिक तस्वीर)

    पीटीआई, नई दिल्ली। भारत सहित नौ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को 2030 तक अपना कार्बन उत्सर्जन 50 प्रतिशत तक कम करने के लिए करीब 2.2 लाख करोड़ डॉलर या संयुक्त जीडीपी का औसतन 0.6 प्रतिशत खर्च करना होगा।

    थिंक टैंक सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस द्वारा जारी ''नौ जी-20 उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की जलवायु वित्त आवश्यकताएं: पहुंच के अंदर'' शीर्षक से जारी रिपोर्ट, इस धारणा को चुनौती देती है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बहुत ज्यादा संसाधनों की जरूरत होगी, जिसका इंतजाम करना उनके लिए संभव नहीं है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

     कार्बन उत्सर्जन कटौती पर खर्च का आकलन किया

    रिपोर्ट में अर्जेंटीना, ब्राजील, चीन, भारत, इंडोनेशिया, मेक्सिको, रूस, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की में कार्बन उत्सर्जन कटौती पर खर्च का आलन किया गया है। ये नौ देश जी 20 समूह में उभरती अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।

    कार्बन उत्सर्जन पूरी तरह से खत्म करने के लिए सालाना 255 अरब डॉलर की जरूरत

    अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि इन नौ देशों को 2022 और 2020 के बीच अपने ऊर्जा, परिवहन, स्टील और सीमेंट सेक्टर से कार्बन उत्सर्जन पूरी तरह से खत्म करने के लिए सालाना 255 अरब डॉलर की जरूरत होगी। ये सेक्टर इनके कुल कार्बन उत्सर्जन में करीब 50 प्रतिशत का योगदान करते हैं।

    अगर चीन को हटा दिया जाए तो भारत सहित बाकी आठ देशों के लिए यह लागत और कम यानी 854 अरब डॉलर या संयुक्त जीडीपी का 0.5 प्रतिशत रह जाती है।

    रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर सस्ता कर्ज और अंतरराष्ट्रीय मदद मिले तो विकासशील देश आसानी से पारंपरिक ऊर्जा को छोड़कर स्वच्छ ऊर्जा पर शिफ्ट हो सकते हैं।

    अध्ययन के लिए चुनी गईं सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं का वैश्विक जीडीपी में 30 प्रतिशत और वैश्विक आबादी में 47 प्रतिशत योगदान है। इन देशों की वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है। कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए सबसे अधिक वित्त पोषण की जरूरत स्टील (1.2 लाख करोड़ डालर) और सीमेंट (453 अरब डॉलर) सेक्टर में है।

    कार्बन कैप्चर और स्टोरेज के लिए सीमित विकल्पों की वजह से इन सेक्टरों में उत्सर्जन कम करना सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। सड़क परिवहन क्षेत्र को इलेक्टि्रक वाहनों के लिए चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए 459 अरब डॉलर की जरूरत होगी।

    वहीं, ऊर्जा क्षेत्र को कार्बन उत्सर्जन में बड़े पैमाने पर कटौती करने में 149 अरब डॉलर लागत आएगी। ऊर्जा क्षेत्र में कम राशि की जरूरत इसलिए है क्योंकि, सौर और पवन ऊर्जा की लागत में तेजी से गिरावट आई है।

    ऊर्जा क्षेत्र को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त बनाना सबसे महंगा

    अध्ययन के अनुसार, ऊर्जा, स्टील और सीमेंट के लिए अनुमानित जलवायु निवेश 2030 तक 53 अमेरिकी डॉलर प्रति टन की औसत लागत के साथ 33 अरब टन कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन को रोक सकता है। ऊर्जा क्षेत्र को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त बनाना सबसे महंगा है। इस क्षेत्र में लागत करीब 66 डालर प्रति टन है।

    विकासशील देश अपने वादों पर खरे नहीं उतरे

    वहीं स्टील के लिए लागत 53 डॉलर और सीमेंट को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त करने की लागत 49 डॉलर प्रति टन है। भारत सहित विकासशील देश लंबे समय से कह रहे हैं कि जलवायु वित्त पर विकासशील देश अपने वादों पर खरे नहीं उतरे हैं और उन्हें 2035 तक कम से कम 1.3 लाख करोड़ डॉलर सालाना की जरूरत है।