नितीश कटारा केस: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मां नीलम कटारा नाराज, कहा- 'यह न्याय की हार है'
नीतीश कटारा हत्याकांड के दोषी सुखदेव यादव को सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल बाद रिहा करने का आदेश दिया है जिससे पीड़िता की मां नीलम कटारा नाराज हैं। उन्होंने इस फैसले को न्याय की हार बताया है। नीलम कटारा का कहना है कि दोषियों को रिहा करना गलत नहीं है लेकिन उनकी सजा पूरी होने पर ही ऐसा होना चाहिए।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नितीश कटारा हत्याकांड के एक दोषी सुखदेव यादव उर्फ पहलवान को 20 साल बाद रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पीड़ित की मां नीलम कटारा बेहद नाराज हैं। उन्होंने इस फैसले को पूरी तरह न्याय की हार और पक्षपाती बताया है।
नीलम कटारा का कहना है कि दोषियों को रिहा करना गलत नहीं है, लेकिन यह तभी होना चाहिए जब उनकी सजा वास्तव में खत्म हो जाए। उनके मुताबिक, इस मामले में सजा पूरी नहीं हुई है।
29 जुलाई को SC ने दिया था रिहाई का आदेश
बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने 29 जुलाई को सुखदेव यादव की रिहाई का आदेश दिया था और आज विस्तृत फैसला जारी करते हुए कहा कि जिन दोषियों की सजा पूरी हो चुकी है, उन्हें तुरंत छोड़ा जाए। हालांकि, जिनकी सजा आजीवन कारावास है उन्हें रिहाई के लिए सजा समीक्षा बोर्ड से अनुमति लेनी होगी।
सुखदेव यादव को 20 साल की तय अवधि वाली आजीवन कारावस की सजा मिली थी, जो 9 मार्च 2025 को पूरी हो गई। लेकिन सजा समीक्षा बोर्ड ने उनके जेल में व्यवहार को देखते हुए रिहाई से मना कर दिया था। इसके बाद यादव ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां उन्हें फरलो और फिर स्थायी रिहाई का आदेश मिला।
नीलम कटारा ने क्या कहा?
नीलम कटारा का कहना है कि अदालत ने उनकी सजा को 20 साल के बाद समीक्षा योग्य आजीवन कारावास माना था, न कि सिर्फ 20 साल की कैद। उनका कहना है कि समीक्षा बोर्ड ने सही कारणों से रिहाई नहीं दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे गलत तरह से समझा।
बता दें, 2002 में 23 वर्षीय नितीश कटारा का अपहरण कर हत्या कर दी गई थी। इसके पीछे का कारण था कि उनका भारती यादव के साथ प्रेम संबंध था, जो पूर्व राज्यसभा सांसद डीपी यादव की बेटी थीं। इस वारदात में भारती के भाई विकास यादव, चचेरे भाई विशाल यादव और सुखदेव यादव शामिल थे।
किसकों कितनी मिली थी सजा?
2016 में सुप्रीम कोर्ट ने विकास और विशाल को 25 साल की सजा बिना किसी रियायत के दी, जबकि सुखदेव यादव को 20 साल तय अवधि वाली आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। नीलम कटारा का मानना है कि यह सजा बिना रियायत के आजीवन कारावास के तहत थी, जिसे समीक्षा बोर्ड की मंजूरी के बिना खत्म नहीं किया जा सकता।
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