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    SIR पर सिमटा विपक्षी विमर्श, भाजपा ने खोली कांग्रेस की 'कुंडली'; बुधवार को भी संसद में सियासी संग्राम रहेगा जारी?

    Updated: Tue, 09 Dec 2025 10:00 PM (IST)

    संसद में चुनाव सुधारों पर चर्चा विपक्ष के एसआइआर और वोटचोरी के आरोपों तक ही सीमित रही। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कांग्रेस के पुराने रिकॉर्डों को उज ...और पढ़ें

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संसद में चुनाव सुधारों पर चर्चा के महत्वपूर्ण अवसर को अंतत: विपक्ष ने उसी एसआइआर और वोटचोरी के आरोपों के आसपास समेट कर रखा जिसे पिछले कई चुनावों में मुद्दा बनाने की कोशिश हुई थी और संसद में लंबा गतिरोध रहा था।

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    दूसरी तरफ संभवत: सत्ता पक्ष को पहले से आभास था कि विपक्षी तरकश से वही पुराने तीर निकलेंगे, इसलिए खास तौर पर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देने के लिए भाजपा की ओर से सांसद डा. निशिकांत दुबे ने इतिहास के पन्नों को ही कांग्रेस की 'कुंडली' की तरह बांच डाला।

    न सिर्फ चुनाव सुधारों में अब तक रही भाजपा की भूमिका का उल्लेख किया, बल्कि याद दिलाया कि कांग्रेस की सरकारें किस तरह से वोट चोरी, चुनावी धांधली और संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा करती रहीं। कुल मिलाकर बहुत रचनात्मक सुझावों की इस चर्चा में कमी रही। चर्चा बुधवार को भी होनी है।

    सत्ता पक्ष और विपक्ष की सहमति से ही मंगलवार को लोकसभा में चुनाव सुधार जैसे देशहित के महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा शुरू हुई। उम्मीद थी कि विपक्ष और सत्तापक्ष की ओर से भी वोट चोरी जैसे तीखे आरोप प्रत्यारोप के साथ-साथ कुछ सकारात्मक सुझाव भी दिए जाएंगे। चुनाव में अपराधियों के लिए रास्ता बंद करने को लेकर एकजुटता दिखेगी, एक ही जगह से चुनाव लड़ने जैसी बात होगी। किंतु ऐसा कतई नहीं हुआ।

    कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सपा के अखिलेश यादव सहित सभी विपक्षी नेताओं ने सरकार पर वोट चोरी के आरोप लगाते हुए एसआइआर पर रोक, संवैधानिक संस्थाओं, खास तौर चुनाव आयोग पर सत्ता के कब्जे का ही पुराना राग अलापा। संसद की ओर से चुनाव आयुक्तो की नियुक्ति के लिए बनाए गए नियम पर सवाल खडे किए गए, हालांकि पिछली सरकारों में इसके लिए कोई समिति भी नहीं होती थी। फिर से बैलेट के जरिए चुनाव का भी विपक्ष की ओर से सुझाव आया जिसमें हेरफेर का लंबा इतिहास रहा है।

    विपक्ष की ओर से जहां बिहार, महाराष्ट्र की हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा गया वहीं राजग के दलों की ओर से कर्नाटक, हिमाचल, तेलंगाना की याद दिलाई गई जहां ईवीएम से ही कांग्रेस की सरकारें बनीं। दिनभर इसी के इर्दगिर्द चली चर्चा के बाद शाम को भाजपा की ओर से सांसद डा. निशिकांत दुबे ने विपक्ष पर करारा पलटवार किया।

    उन्होंने एक-एक कर खास तौर पर राहुल गांधी द्वारा उठाए गए विषयों को लिया और उनका ऐतिहासिक तथ्यों व पुरानी रिपोर्टों के आधार पर न सिर्फ जवाब दिया, बल्कि विपक्षी विमर्श को लगभग ध्वस्त भी कर डाला।निशिकांत ने कहा कि 24 नवंबर 1980 को भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने चुनाव सुधार पर प्रश्न किया था।

    उसका जवाब कांग्रेस नेता शिवशंकर ने दिया था कि चुनाव आयोग बहुत ही ईमानदारी से काम कर रहा है, इसलिए विपक्ष के किसी नेता को उसकी चयन प्रक्रिया में शामिल करने की जरूरत नहीं है। 1950 से लेकर 2014 तक जिसको चाहा, उसको चुनाव आयोग का अधिकारी बना दिया।

    जो नवीन चावला ज्वाइंट सेक्रेटरी के लिए भी इम्पैनल्ड नहीं हुए, वह मुख्य चुनाव आयुक्त बना दिए गए, क्योंकि उन्होंने मदर टेरेसा पर किताब लिखी थी। लेकिन अब उस समिति से भी खुश नहीं है जिसमें विपक्ष के नेता शामिल हैं।

    राहुल समेत विपक्षी सदस्यों का मुख्य तर्क यह था कि चुनाव आयोग में सुधार हुए बिना चुनाव सुधार नहीं हो सकता है। राहुल ने इसी क्रम में कहा कि चुनाव आयोग भाजपा का कठपुतली की तरह काम कर रहा है। निशिकांत ने याद दिलाया कि देश के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन सेवानिवृत्त हुए तो उन्हें राज्यपाल बनाया गया। मुख्य चुनाव आयुक्त पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वीएस रमादेवी को हिमाचल प्रदेश का गर्वनर बना दिया गया।

    टीएन शेषन को रिटायर होने के बाद अहमदाबाद में भाजपा के खिलाफ प्रत्याशी बनाया गया। एमएस गिल रिटायर होते हैं तो वह इसी सदन में दस साल तक केंद्र के मंत्री रहे। सही मायने ने कांग्रेस के काल में यह चलन था। वोट चोरी, ईवीएम और एसआइआर पर विपक्ष के आरोपों पर भी निशिकांत रिकार्ड के साथ आए।

    उन्होंने काह कि 1980 में सांसद इंद्रजीत गुप्ता के प्रश्न पर कांग्रेस के मंत्री पी. शिवशंकर ने जवाब दिया था। तब बिहार में 324 विधानसभा सीटें थीं। 81 विस सीटों पर दोबारा मतदान कराना पड़ा। इनमें में विश्रामपुर में 50 जगह बैलेट बाक्स रास्ते में छीन लिए गए। बूथ नंबर 28 पर सारे बैलेट बाक्स छीन लिए गए। इसी बैलेट पेपर के कारण एससी-एसटी को वोट नहीं देने दिया जाता था।

    पहली बार 1987 में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में ईवीएम राजीव गांधी लेकर आए। 1991 में जब नरसिम्हा राव की सरकार आई तो उन्होंने तय किया कि ईवीएम आएगी। 1961 और 1971 में सिलेक्ट कमेटी का गठन हुआ। दोनों कमेटियों के अध्यक्ष कांग्रेस के ही जगन्नाथ राव थे। 1971 की कमेटी में कांग्रेस के कानून मंत्री एचआर गोखले भी थे। दोनों रिपोर्ट में कहा गया कि एसआइआर की आवश्यकता है। एसआइआर होना चुनावी सुधार का सबसे बड़ा विषय है। 1961 में यह भी कहा गया कि चुनाव ईवीएम से होना चाहिए।

    निशिकांत ने रोचक तथ्य भी बताया। उन्होंने कहा कि दोनों कमेटियों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी और आडवाणी भी सदस्य थे। उन्होंने कहा कि बूथवार मतगणना की जाए। तब तर्क दिया गया कि बूथवार गणना करने लगेंगे तो गुंडे-मवाली मतदाताओं को मारेंगे। तब सभी बूथों के मतों को मिलाकर गणना की जाती थी, जिससे कि धांधली की सहूलियत रहती थी।

    बिहार और महाराष्ट्र विधानसभा की कई ऐसी सीटों के आंकड़े सदन में रखे गए, जहां वोट कटने या बढ़ने के बाद भी ज्यादातर पर विपक्षी प्रत्याशी ही चुनाव जीते हैं। चुनाव सुधार के लिए ज्यादा सुझाव तो नहीं आए। लेकिन फंडिंग को लेकर चुनाव सुधारों पर चर्चा में कहा गया कि 1975 में तारकुंडे कमेटी ने कहा था कि इलेक्टारल बांड बनाना चाहिए, जिससे चुनाव में पारदर्शिता होगी। आज उसी बांड से भाजपा के साथ ही अन्य दलों के पास भी पैसा आता है।