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    'पहली बार मिला संवैधानिक तंत्र से जुड़े सवाल वाला प्रेसीडेंशियल रिफरेंस', सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

    Updated: Thu, 20 Nov 2025 11:52 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा भेजा गया प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पहले के सभी रिफरेंसों से अलग है, क्योंकि यह संवैधानिक तंत्र और पदाधिकारियों के कार्य-व्यवहार से जुड़ा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस रिफरेंस में उठाए गए सवालों का जवाब देना उसका संवैधानिक कर्तव्य है, क्योंकि यह संविधान के संघीय ढांचे और शासन प्रणाली की निरंतरता से संबंधित है।

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    सुप्रीम कोर्ट ने रिफरेंस को महत्वपूर्ण बताया

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा भेजे गए मौजूदा प्रेसीडेंशियल रिफरेंस के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा है कि इसकी प्रकृति अब तक आए सभी रिफरेंसों से अलग है और इसमें उठाए गए सवालों का जवाब देना अदालत का संवैधानिक कर्तव्य है।

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    कोर्ट ने साफ किया कि अनुच्छेद 143(1) के तहत अब तक 15 रिफरेंस भेजे गए, लेकिन इनमें से कोई भी संवैधानिक मशीनरी, पदाधिकारियों के कार्य-व्यवहार या राज्यपाल, राष्ट्रपति और विधानमंडल के बीच कानूनी प्रक्रियाओं से संबंधित नहीं था।

    सुप्रीम कोर्ट ने रिफरेंस को महत्वपूर्ण बताया

    सुप्रीम कोर्ट ने प्रेसीडेंशियल रिफरेंस का विरोध करनेवाली दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि पूर्ववर्ती सभी रिफरेंस विशिष्ट तथ्यात्मक परिस्थितियों पर आधारित थे, जबकि मौजूदा रिफरेंस एक फंक्शनल रिफरेंस है, जो संविधान के संघीय ढांचे और शासन प्रणाली की निरंतरता से सीधे तौर पर जुड़ा है।

    इसलिए इसमें उठाए गए कुछ प्रश्नों का उत्तर देना सर्वोच्च न्यायालय का दायित्व बन जाता है।कोर्ट ने बताया कि इस रिफरेंस की पृष्ठभूमि तमिलनाडु मामले पर 8 अप्रैल 2025 को दो न्यायाधीशों द्वारा दिए गए उस फैसले से जुड़ी है, जिसने अनुच्छेद 200 और 201 के अंतर्गत राज्यपाल और राष्ट्रपति के अधिकारों को लेकर कई भ्रम पैदा कर दिए थे।

    शासन संचालन पर पड़ सकता है प्रतिकूल प्रभाव

    शीर्ष अदालत के अनुसार, इन संवैधानिक प्रविधानों पर अनिश्चितता छोड़ना उचित नहीं है, क्योंकि इससे शासन संचालन और विधायी प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। अदालत ने कहा कि देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदाधिकारी द्वारा भेजे गए ऐसे रिफरेंस पर विचार करना न्यायपालिका का संस्थागत दायित्व है।

    जब संवैधानिक संस्थाओं की भूमिकाओं और शक्तियों को लेकर कोई संदेह उत्पन्न हो, तो न्यायालय पीछे नहीं हट सकता। राष्ट्रपति द्वारा पूछे गए प्रश्न संविधान के मूल ढांचे, लोकतांत्रिक निरंतरता और निर्वाचित सरकार के अधिकारों से जुड़े हैं—इसलिए उनका उत्तर देना न्यायिक औचित्य और संवैधानिक निष्ठा दोनों के लिए अनिवार्य है।