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    Red fort blast: 20 साल पहले की वो खौफनाक शाम, जब एक के बाद एक हुए धमाकों से दिल्ली में बिछ गई थीं लाशें

    Updated: Mon, 10 Nov 2025 10:32 PM (IST)

    Red Fort Blast Delhi Blast: दिल्ली में सोमवार शाम हुए धमाके ने 29 अक्टूबर 2005 की धनतेरस की मनहूस शाम की यादें ताजा कर दीं, जब राजधानी में पहाड़गंज, गोविंदपुरी और सरोजिनी नगर में सिलसिलेवार तीन बम धमाके हुए थे।

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     Delhi Serial Blasts 2005:  दिल्ली में 20 साल पहले की खौफनाक शाम, जिसमें गई थी 67 लोगों की जान। फोटो- जागरण

    डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। दिल्‍ली में सोमवार शाम लाल किले के पास जोरदार धमाका हुआ। इसमें 10 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और 30 से ज्यादा घायल हुए हैं। 30 से ज्यादा गाड़ियां जलकर खाक हो गईं। यह धमाका लालकिले की प्राचीर के सामने वाली सड़क पर हुआ, जो हमेशा लोगों से गुलजार रहती है। इसी सड़क से चांदनी चौक और भागीरथ पैलेस भी जाया-आया जाता है, इसलिए यहां आमतौर पर काफी भीड़ रहती है।

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    देश की राजधानी दिल्‍ली पहले भी कई बार धमाकों से दहल चुकी है। आज से 20 साल और 12 दिन पहले की एक शाम भी कुछ ऐसी ही मनहूस थी। उस शाम क्‍या हुआ था, आइए आपको बताते हैं...

    धनतेरस की गमगीन शाम..और दहशत

    तारीख 29 अक्टूबर, 2005.. धनतेरस का त्‍योहार था। दिल्‍ली दिवाली की रौनक से जगमग था। बाजार खचाखच भरे हुए थे। हर तरफ रौनक थी, लेकिन कुछ ही मिनटों में यह रौनक मातम में तब्दील हो गई। शाम 5:38 से 6:05 बजे के बीच राजधानी में सिलसिलेवार तीन बम धमाके हुए। यह धमाके पहाड़गंज, गोविंदपुरी और सरोजिनी नगर में हुए थे।

    धमाके की गूंज से बाजार थर्रा गए। चहुंओर धुआं ही धुआं नजर आने लगा। जब धुआं छटा तो सड़कों पर लाशों के चीथड़े बिखरे हुए नजर आए। दो दर्जन से ज्‍यादा वाहन जलकर खाक हो गए और दुकानों की दीवारें भरभरा कर ढह गईं। आधिकारिक आंकड़े के मुताबिक, 67 लोग मारे गए और 200 से अधिक घायल हुए।

    धमाका नंबर-1: पहाड़गंज, समय- 5:38 PM

    29 अक्टूबर 2005 का पहला धमाका पहाड़गंज के नेहरू मार्केट में हुआ। लोग धनतेरस की खरीदारी में जुटे थे। शाम हो चली थी।तभी एक ज्‍वेलरी शॉप के पास ब्लास्ट हुआ।

    धमाका इतना जोरदार था कि ज्वेलरी शॉप के आसपास मौजूद लोगों के चीथड़े उड़ गए।पहचान के लिए इन चीथड़ों को बटोरकर इकट्ठा करना पड़ा था। दुकानें भरभरा गईं। दूर-दूर तक दीवारें दरक गईं। खिड़कियों पर लगे शीशे चकनाचूर हो गए। 17 लोगों की मौत हुई थी। 

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    फोटो- यह तस्‍वीर आज लालकिले पर हुए धमाके की है। जागरण

    धमाका नंबर-2: गोविंदपुरी

    पहाड़गंज में हुए ब्‍लास्‍ट का धुआं छटा भी न था कि तभी कालकाजी मंदिर के पास दिल्ली परिवहन निगम की यात्रियों से भरी बस में एक संदिग्ध बैग मिला। बैग छोड़कर जो शख्‍स उतरा था, उसके बगल में बैठी सवारी को पहाड़गंज धमाके की खबर लग चुकी थी। शायद इसलिए सवारी ने जोर से चिल्लाई- देखो कोई आदमी अपना बैग छोड़कर भाग गया।

    ड्राइवर कुलदीप सिंह और कंडक्टर बुद्ध प्रकाश ने गंभीरता को देखते हुए सूझबूझ दिखाई। बस को कम भीड़ भाड़ वाले इलाके की और दौड़ा दिया। वहां पहुंचकर फटाफट सभी सवारियों को उतार दिया।  फिर बैग खोलकर देखा तो उसमें कुछ तार से नजर आए।

    बैग का नजारा देखते ही कुलदीप सिंह बैग लेकर दूर फेंकने भागे, तभी ब्लास्ट हो गया। कुलदीप सिंह की बहादुरी से सैकड़ों लोगों की जान बच गई। वह खुद भी बच गए, लेकिन अपनी आंखों की रोशनी खो बैठे।

    धमाका नंबर-3:सरोजिनी नगर मार्केट

    पहाड़गंज और गोविंदपुरी में हुए धमाकों से लोग संभल भी न पाए थे कि तीसरा और सबसे भयानक धमाका सरोजिनी नगर मार्केट में हुआ। शाम के 6 बज रहे थे। यह सबसे  भीड़भाड़ वाली जगह है। उस शाम बाजार में पैर रखने की जगह न थी। कुछ लोगों को धमाके की खबर लग चुकी थी तो वे जल्‍दी-जल्‍दी खरीदारी कर लौटने लगे थे तो कुछ इस सबसे बेखबर शॉपिंग कर रहे थे।

    बाजार में जूस की दुकान है। दुकान पर  एक आदमी बैग छोड़कर चला गया। दुकान पर काम करने वाले एक लड़के को बैग मिला। उसने दुकान के मालिक लालचंद सलूजा को इसकी जानकारी दी।

    मालिक लालचंद सलूजा ने बैग खोलकर देखने को कहा तो उसने मना कर दिया। जवाब दिया कि मैं किसी का बैग नहीं खोलता। फिजूल ही कोई मुझ पर चोरी का इल्जाम लगा देगा। हालांकि, उसने बैग को हाथ से दबाकर देखा तो उसे प्रेशर कुकर जैसा महसूस हुआ। उसने यह जानकारी अपने मालिक को दी तो वे बैग लेकर पुलिस को देने के लिए निकले।

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    फोटो- यह तस्‍वीर आज लालकिले पर हुए धमाके की है। जागरण

    जूस की दुकान के मालिक लालचंद सलूजा जिस बैग को लेकर जा रहे थे, उसमें ब्लास्ट हो गया। यह इससे पहले हुए दो धमाकों से ज्‍यादा भयावह था। दुकानें धू-धूकर जलने लगीं। वहां की एक दुकान में रखे दो सिलेंडर भी फट गए। कुछ ही सेकंड में चीख-पुकार मच गई। जब आग बुझी और धुआं छटा तो चारों और लाशों के चीथड़े बिखरे मिले।

    लाशों को देखकर यह भी नहीं पहचाना जा सकता था कि यह महिला का शव है या पुरुष का। इस धमाके में नौ माह के बच्‍चे समेत 50 से जयादा लोगों की जान गई थी। सैकड़ों लोग घायल हुए। घायलों में कुछ ने दोनों पैर गंवा दिए तो कुछ के हाथ नहीं रहे। अपनों को खोने के जो जख्‍म मिले तो आज तक नहीं भर सके हैं।

    क्‍या कानूनी कार्रवाई हुई?

    धनतेरस को हुए इन तीनों धमाकों की जिम्मेदारी पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्करे-तैयबा ने ली थी। धमाकों में पुलिस ने श्रीनगर के तीन संदिग्धों- तारिक अहमद डार, मोहम्मद फाजिली और मोहम्मद रफीक शाह  को आरोपी बनाया। 11 नवंबर 2005 को डार की गिरफ्तारी हुई।

    उसे मास्टरमाइंड बताया गया, लेकिन 12 साल बाद कोर्ट ने केवल उसे दोषी ठहराया और बाकी दोनों को बरी कर दिया। 2017 में दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने डार को देश में अशांति फैलाने, साजिश रखने, हथियार इकट्ठा करने, हत्या और हत्या के प्रयास के आरोपों में दोषी ठहराया। डार को 10 साल की सजा सुनाई, लेकिन वह पहले ही 11 साल जेल में रह चुका था, इसलिए कोर्ट ने उसे रिहा कर दिया गया।

    दिल्‍ली में कब-कब हुए धमाके?

    Delhi blast cronology

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