संचार साथी ऐप: डिजिटल सुरक्षा का हथियार या 'जासूसी का नया औजार'? केंद्र के निर्देश पर देश में छिड़ी सबसे बड़ी बहस
दिल्ली में सरकार ने स्मार्टफोन कंपनियों को 2026 से संचार साथी ऐप प्री-इंस्टॉल करने का निर्देश दिया है। विपक्ष ने इसे जासूसी का औजार बताया, जबकि सरकार ...और पढ़ें

संचार साथी ऐप।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में सोमवार की सर्द सुबह सरकार की ओर से स्मार्टफोन निर्माता कंपनियों को एक निर्देश दिया जाता है, जिसमें कहा गया- ' वे मार्च 2026 से बेचे जाने वाले सभी मोबाइल फोन में संचार साथी ऐप को प्री-इंस्टॉल करके दें। ऐप न डिसेबल किया जाए और न ही इस पर किसी तरह की पाबंदियां लगें।' बस फिर क्या था देशभर में डिजिटल निजता और सरकारी निगरानी पर सबसे बड़ी राष्ट्रीय बहस छिड़ गई।
मोबाइल में संचार साथी ऐप को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ विपक्ष ने जमकर विरोध किया। आरोप लगाया कि यह एप लोगों की जासूसी करने का औजार बनेगा। इस सरकार ने तर्क दिया-'यह ऐप चोरी, ठगी और साइबर फ्रॉड रोकने के लिए है और पूरी तरह स्वैच्छिक व लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सहै। यूजर चाहें तो किसी भी समय डिलीट कर सकता है।'
खैर यह तो पिछले तीन दिन का घटनाक्रम है, जिसे हमने आपको चंद लाइनों में बता दिया। अब बात करते हैं - साइबर सुरक्षा बनाम निजता की इस जंग का सच क्या है? क्या संचार साथी ऐप सरकार का 'सर्विलांस टूल' बन जाएगा या फिर डिजिटल सुरक्षा का सबसे बड़ा टूल? संचार साथी एप से संबंधित हर सवाल का जवाब आइए हम आपको बताते हैं...
संचार साथी ऐप पर विवाद कैसे शुरू हुआ?
दूरसंचार मंत्रालय ने 28 नवंबर को निर्देश दिया कि सभी नए स्मार्टफोन में संचार साथी को प्री-लोड किया जाए। यह पहली सेटअप स्क्रीन पर दिखे और सक्रिय हो। इसे 90 दिनों के भीतर कंपनियों को लागू करना होगा। पुराने मोबाइल फोन में यह सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए पहुंचाया जाएगा।
केंद्र सरकार के इस निर्देश का मतलब यानी संचार साथी ऐप सीधे 70 करोड़ से ज्यादा स्मार्टफोन यूजर्स तक पहुंच जाएगा। इसी कारण विपक्ष ने इसे 'जासूसी का नया औजार' करार दे दिया। कांग्रेस और आप समेत विपक्षी पार्टियों ने सरकार के इस कदम को तानाशाही बताते हुए कहा कि यह 'सर्विलांस कंट्री' बनाने की शुरुआत है।
संचार साथी कैसे काम करता है?
- चोरी/खोया फोन ब्लॉक और ट्रैक किया जा सकता है।
- व्यक्ति के नाम पर कितने SIM हैं, यह पता कर सकते हैं।
- संदिग्ध कॉलों की रिपोर्ट की जा सकती है।
- सेकंड हैंड फोन खरीदने से पहले IMEI की सत्यता जांच सकते हैं।
ऐप का असल कामकाज: क्या सच में सुरक्षित है?
सरकार का दावा किया कि ऐप किसी भी जानकारी को यूजर की अनुमति के बिना नहीं लेता। आपको बता दें कि संचार साथी एप कुछ जरूरी परमिशन मांगता है, जैसे-
- iPhone पर: कैमरा, फोटो/फाइल।
- Android पर: कॉल लॉग, SMS (OTP/पंजीकरण के लिए), फोन कॉल पढ़ना (सिम की पहचान) और कैमरा/फोटो आदि।
केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुताबिक, संचार साथी पोर्टल/ऐप को साल 2023 में लॉन्च किया गया था। तब से लेकर अब तक...
- 20 करोड़ लोग पोर्टल पर हैं।
- 1.5 करोड़ लोग एप यूज कर रहे हैं।
- 26 लाख फोन ट्रेस किए गए हैं संचार साथी एप से।
- 7.23 लाख खोए फोन वापस मिल गए।
- 50 लाख फर्जी मोबाइल कनेक्शन बंद।
- 6.2 लाख फर्जी/डुप्लीकेट हैंडसेट ब्लॉक हुए हैं।
भारत में प्री-इंस्टाल्ड ऐप के क्या नियम हैं?
भारत में स्मार्टफोन कंपनियां अपने डिवाइस में पहले से कई ऐप इंस्टॉल करके बेचती हैं- कुछ उपयोगी, कुछ सिर्फ प्रचार या सुविधा के लिए। साल 2023 में भारत सरकार की ओर से सुझाव आया था कि स्मार्टफोन निर्माता कंपनियां यूजर को प्री-इंस्टाल्ड ऐप को हटाने (अनइंस्टॉल) का विकल्प दें।
कई फोन में से ऐप क्यों नहीं हटते?
शाओमी एमआई, विवो और ओप्पो जैसी चीनी कंपनियां अक्सर अपने ब्रांड - विशेष ऐप को सिस्टम ऐप बताकर इंस्टॉल करती हैं। भारत में अभी इन ऐप को हटाने का अधिकार कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है, इसलिए ये प्री-लोडेड या ब्लोटवेयर बने रहते हैं और यूजर इन्हें आसानी से हटा नहीं पाता।
यूरोप में प्री-इंस्टाल्ड ऐप के क्या नियम हैं?
यूरोपीय यूनियन दुनिया में सबसे सख्त नियम लागू करता है। लगभग हर प्री-इंस्टाल्ड एप को हटाने की सुविधा अनिवार्य है। एपल और गूगल भी अपने ऐप को जबरन डिफॉल्ट नहीं रख सकतीं। फोन चालू करते ही 'फ्री चॉइस स्क्रीन' देना जरूरी है, जिसमें यूजर ब्राउजर, मैप और मैसेजिंग ऐप खुद चुनता है।
प्री-इंस्टाल्ड ऐप को लेकर अमेरिका में क्या नियम हैं?
प्री-इंस्टाल्ड को लेकर अमेरिका में कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है, जो प्री इंस्टाल्ड ऐप को हटाने को अनिवार्य करे। फोन निर्माता मनचाहे ऐप प्री-इंस्टॉल कर सकते हैं, लेकिन अगर कोई कंपनी विरोधी कंपनी को समान प्रतिस्पर्धा अवसर नहीं देती है तो एंटी ट्रस्ट नियम के तहत शिकायत हो सकती है।
डिजिटल इंडिया का बड़ा प्रश्न: सुरक्षा या निगरानी?
संचार साथी ऐप ने देश को दो बड़े सवालों के बीच खड़ा कर दिया है-
- क्या यह भारत को साइबर फ्रॉड से बचाएगा?
- क्या यह सरकार के हाथों एक नया निगरानी औजार बनेगा?
सरकार के इस निर्देश पर किसका क्या है मत?
- सरकार कहती है- सुरक्षा
- विपक्ष कहता है- जासूसी
- तकनीकी विशेषज्ञ कहते हैं- पारदर्शिता बढ़े, नियम स्पष्ट हों।
- यूजर कहता है- चॉइस चाहिए, अनिवार्यता नहीं।
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