SIR केस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान EC ने कहा, 'पार्टियां डर फैला रहीं'; केरल, बंगाल और तमिलनाडु की प्रक्रिया रोकने की मांग
सुप्रीम कोर्ट में मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) की वैधता पर बहस हुई। कपिल सिब्बल ने मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी पर सवाल उठाया, जिस पर कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग को दस्तावेजों की जांच का अधिकार है। कोर्ट ने केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के मामलों में चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। आयोग ने राजनीतिक दलों पर डर फैलाने का आरोप लगाया। कोर्ट ने यह भी कहा कि आधार कार्ड नागरिकता का पूर्ण प्रमाण नहीं है।

कपिल सिब्बल ने SIR पर उठाया सवाल।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को मतदाता सूची सघन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया की वैधानिकता पर बहस शुरू हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस की शुरुआत करते हुए जब कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग द्वारा मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी डालने पर सवाल उठाया तो पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग कोई पोस्टआफिस नहीं है जो बिना कुछ पूछे फार्म छह स्वीकार कर ले।
आयोग के पास हमेशा दस्तावेजों की सत्यता जांचने का अंतर्निहित संवैधानिक अधिकार होता है। सिब्बल ने कहा जैसा इस बार हो रहा है वैसा देश में पहले कभी नहीं हुआ तो कोर्ट की टिप्पणी थी कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, यह किसी प्रक्रिया की संवैधानिक प्रक्रिया तय करने का मानदंड नहीं हो सकता।मामले में बहस गुरुवार को भी जारी रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर बहस
सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं जिनमें SIR प्रक्रिया की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। मामले पर प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बाग्ची की पीठ सुनवाई कर रही है। बुधवार को पहले केरल का मुद्दा उठा जहां स्थानीय निकाय चुनाव होने के आधार पर फिलहाल SIR टालने की मांग की गई है।
कोर्ट ने इस मामले में चुनाव आयोग को जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए दो दिसंबर की तारीख तय कर दी। फिर तमिलनाडु का मुद्दा उठा जहां विभिन्न याचिकाओं के जरिए SIR को चुनौती दी गई है। इस पर और पश्चिम बंगाल के मामले में भी आयोग को जवाब देने का निर्देश देते हुए नौ दिसंबर की तारीख तय की गई।
चुनाव आयोग ने केरल, तमिलनाडु,पश्चिम बंगाल में SIR के खिलाफ याचिकाओं पर कोर्ट में कहा कि राजनीतिक दल डर पैदा कर रहे हैं। बिहार में SIR हो चुकी है लेकिन SIR की वैधानिकता का मुद्दा अभी बचा है जिस बुधवार को सुनवाई शुरू हुई।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल बहस शुरु करते हुए कहा कि यह मामला लोकतंत्र को प्रभावित करने वाला है।
नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी पर सवाल
गणना प्रपत्र भरना मतदाताओं की जिम्मेदारी नहीं है। बहुत से लोग अनपढ़ हैं गणना फार्म कैसे भरेंगे। लेकिन फार्म नहीं भरने पर बाहर हो जाएंगे। प्रक्रिया लोगों को मतदाता सूची में शामिल करने की होनी चाहिए, बाहर निकालने की नहीं।
उन्होंने कहा कि मतदाताओं पर स्वयं को नागरिक साबित करने की जिम्मेदारी कैसे डाली जा सकती है। अगर किसी ने स्वयं घोषित किया है कि वह भारत का नागरिक है और ये आधार कार्ड है जिसमें उसका पता दर्ज है तो उसे स्वीकार किया जाना चाहिए।
इन दलीलों पर जस्टिस बाग्ची ने कहा कि अगर बीएलओ को फार्म में कोई प्रविष्टि संदिग्ध लगती है तो आप कैसे कह सकते हैं कि चुनाव आयोग को अधिकार नहीं है।
सिब्बल ने कहा कि वह अधिकार पर नहीं प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं। नागरिकता की जांच करने का अधिकार बीएलओ को नहीं है। यह अधिकार गृहमंत्रालय को है। जस्टिस बागची ने कहा कि चुनाव आयोग कोई पोस्ट आफिस नहीं है कि बिना कुछ पूछे फार्म छह स्वीकार कर ले।
चुनाव आयोग को दस्तावेजों की जांच का अधिकार
चुनाव आयोग के पास हमेशा दस्तावेजों की सत्यता जांचने का अंतर्निहित संवैधानिक अधिकार होता है। सिब्बल ने कहा कि पहली बार मतदाता बनने के समय जांच हो सकती है लेकिन अगर किसी का नाम मतदाता सूची में पहले से है और वह 18 वर्ष से ज्यादा की आयु का है तो उसे सूची में शामिल करना चाहिए, उसे बाहर नहीं किया जा सकता जबतक कि उसकी नागरिकता के बारे में बीएलओ के पास कुछ विपरीत सामग्री न हो।
हालांकि पीठ ने बिहार का उदाहरण देते हुए कहा कि बिहार में उन्हें ऐसा देखने को नहीं मिला कि किसी का नाम गलत तरीके से काट दिया गया हो। पैरा लीगल वॉलिटियरों ने भी लोगों से संपर्क किया लेकिन कोई शिकायत करने नहीं आया।
SIR में मृत लोगों का नाम हटाना पड़ा
पीठ ने कहा कि आधार कार्ड नागरिकता का पूर्ण प्रमाण नहीं देता। इसीलिए कोर्ट ने कहा है कि वह सूची में शामिल दस्तावेजों में से एक होगा, और अगर किसी का नाम हटाया जाता है तो उसे हटाने की सूचना दी जाएगी।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आधार कार्ड कानून के तहत बना है जो लाभों के वितरण आदि को नियंत्रित करता है।
आधार राशन आदि वितरण के लिए है। मान लो कोई पड़ोसी देश से आता है और मजदूरी आदि करता है उसे संवैधानिक लोकाचार के तहत राशन आदि प्राप्त करने के लिए आधार दिया जाता है, उसे आधार दिया गया है तो क्या अब मतदाता भी बनाया जाना चाहिए। सिर्फ इसलिए कि उसके पास आधार है। पीठ ने कहा कि SIR में मृत लोगों का नाम हटाना पड़ा।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।