अनुच्छेद 200 में यथाशीघ्र शब्द न हो लेकिन राज्यपालों से विधेयकों पर उचित समय के भीतर कार्रवाई की अपेक्षा- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपालों से विधेयकों पर उचित समय के भीतर कार्रवाई करने की अपेक्षा की जाती है भले ही अनुच्छेद 200 में यथाशीघ्र शब्द न हो। अदालत संविधान की व्याख्या करेगी व्यक्तिगत मामलों की जांच नहीं। अनुच्छेद 200 राज्यपाल की शक्तियों को नियंत्रित करता है जिससे उन्हें विधेयक पर सहमति देने रोकने या पुनर्विचार के लिए वापस करने की अनुमति मिलती है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राज्यपालों से विधेयकों पर ''उचित समय'' के भीतर कार्रवाई करने की अपेक्षा की जाती है। भले ही अनुच्छेद 200 में ''यथाशीघ्र'' शब्द न हो जो राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने की शक्तियों को नियंत्रित करता है।
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने प्रेसीडेंसियल रेफरेंस पर आठवें दिन दलीलें सुनते हुए - कि क्या न्यायालय राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों से निपटने हेतु समय-सीमा निर्धारित कर सकता है - कहा कि वह केवल संविधान की व्याख्या करेगी और व्यक्तिगत मामलों के तथ्यों की जांच नहीं करेगी।
क्या कहता है अनुच्छेद 200 ?
अनुच्छेद 200 राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों के संबंध में राज्यपाल की शक्तियों को नियंत्रित करता है, जिससे उन्हें विधेयक पर सहमति देने, सहमति रोकने, विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस करने या राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को आरक्षित करने की अनुमति मिलती है।
अनुच्छेद 200 का पहला प्रविधान कहता है कि अगर राज्यपाल की अनुमति के लिए विधेयक को उनके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो वह यथाशीघ्र उस विधेयक को (यदि वह धन विधेयक नहीं है) तो पुनर्विचार के लिए सदन को वापस भेज सकते हैं। पहले प्रविधान में यह भी कहा गया है कि अगर विधानसभा उस विधेयक पर पुनर्विचार करती है और उसे वापस राज्यपाल के पास भेजती है तो इसके बाद वह इस बाबत अपनी सहमति नहीं रोकेंगे।
पंजाब सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने पीठ से अनुरोध किया कि संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 200 में ''यथाशीघ्र'' का प्रविधान किया है और विधेयकों को मंजूरी देने के लिए तीन महीने की समयसीमा तय करने में न्यायालय के लिए कोई बाधा नहीं है।
राज्यपाल से उचित समय के भीतर कार्रवाई करने की अपेक्षा की जाती है- कोर्ट
पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति एएस चंदुरकर भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, ''भले ही 'यथाशीघ्र' शब्द न भी हो, राज्यपाल से उचित समय के भीतर कार्रवाई करने की अपेक्षा की जाती है।''
केरल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने कहा कि राज्य के पूर्व राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने एक प्रक्रिया अपनाई थी जिसके अनुसार, उनके पास जब भी कोई विधेयक लाया जाया था तो वह उसे संबंधित मंत्रालयों को भेज देते थे ताकि मंत्रालय उन्हें इस बाबत ब्रीफिंग दे सकें।
बहरहाल, प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ''हम व्यक्तिगत मामलों पर फैसला नहीं करेंगे।''
कांग्रेस के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल केवल ''नाममात्र के प्रमुख'' हैं, जो केंद्र और राज्य दोनों में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं।
(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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