'ऐसा कहोगे तो अंजाम भुगतोगे', बाबरी मस्जिद वाली पोस्ट पर SC में सुनवाई; कोर्ट ने ठुकराई याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने एक विधि छात्र की याचिका खारिज की, जिसमें उसने फेसबुक पोस्ट पर दर्ज आपराधिक मामला रद्द करने की मांग की थी। पोस्ट में बाबरी मस्जिद के बारे में टिप्पणी थी। कोर्ट ने हस्तक्षेप से इनकार करते हुए कहा कि पोस्ट देखी गई है और बचाव के तर्क ट्रायल कोर्ट में सुने जा सकते हैं। याचिकाकर्ता ने बाद में अपनी याचिका वापस ले ली। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया था।
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बाबरी मस्जिद वाली पोस्ट पर SC में सुनवाई (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कानून के छात्र की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमं उसने फेसबुक पोस्ट को लेकर दर्ज आपराधिक मामले को रद करने की मांग की थी। इस पोस्ट में लिखा था, 'बाबरी मस्जिद भी एक दिन बनेगी, जैसे तुर्किए में सोफिया मस्जिद दोबारा बनी'।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जॉयमाला बागची की पीठ ने कहा कि उसने पोस्ट देखी है और उन्हें इसमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखा। कोर्ट ने कहा कि आरोपी के बचाव के तर्क ट्रायल कोर्ट में अपने आधार पर सुने जा सकते है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ थी यह याचिका
यह याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ था जिसमें हाईकोर्ट ने 2020 में दर्ज FIR को रद करने से इनकार कर दिया था। एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता ने बाबरी मस्जिद से जुड़ी आपत्तिजनक पोस्ट फेसबुक पर डाली थी।
गौरतलब है कि 5 अगस्त 2020 को यह पोस्ट अपलोड की गई थी। बाबरी मस्जिद को 1992 में अयोध्या में ध्वस्त कर दिया गया था, जिसके बाद हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच लंबा विवाद चला। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए मस्जिद की तोड़फोड़ को गैरकानूनी बताया, लेकिन विवादित जमीन रामलला को दे दी। मुस्लिम क्ष को मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ की दूसरी जमीन दी गई।
याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसने सिर्फ अपनी राय रखी थी, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत सुरक्षित है। उसने कहा कि पोस्ट में न तो कोई भड़काऊ भाषा थी और न ही अश्लील शब्द।
उसका कहना था कि कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां दूसरों ने की थी, लेकिन उन्हें गलत तरीके से उसी से जोड़ दिया गया। जांच में यह भी सामने आया कि कुछ टिप्पणिया किसी फर्जी प्रोफाइल से की गई थीं। इसके बावजूद कार्रवाई सिर्फ उी पर की जा रही है।
एक साल से ज्यादा समय तक रहा हिरासत में
याचिकाकर्ता को इसी पोस्ट के आधार पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत एक साल से ज्यादा समय तक हिरासत में रखा गया था। हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2021 में उसकी नजरबंदी रद कर दी थी। उसके वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यह मामला दुर्भावना से प्रेरित है और कानून का दुरुपयोग है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेगा और ट्रायल कोर्ट को ही मामले की जांच करने देगा।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि पोस्ट में कोई अश्लीलता नहीं थी, आपत्तिजनक शब्द दूसरों के थे। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "कृपया हमें कोई टिप्पणी करने को मजबूरन करें।" वकील ने आग्रह किया कि कोर्ट खुद पोस्ट देखकर फैसला करे।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
जज ने जवाब दिया, "हमने आपकी पोस्ट देख ली है और कई बार पढ़ी है।" जब वकील ने फिर कहा कि कोर्ट ने पोस्ट नहीं देखी तो जज ने चेताया, "ऐसा मत कहो कि हमने नहीं देखा, नहीं तो आपको इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा।" अंत में वकील ने कहा कि वह याचिका वापस लेना चाहता है ताकि ट्रायल में उसका बचाव प्रभावित न हो। कोर्ट ने इसे मंजूर कर लिया।

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