भारतीय मुद्रा का नाम रुपया कैसे पड़ा, कौन था इसका जनक; किन देशों की करेंसी Rupee है?
मजरूह सुल्तानपुरी का गाना 'बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया' आज भी प्रासंगिक है। भारत अपनी मुद्रा रुपये की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस अवसर पर, मुं ...और पढ़ें

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। ‘बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया’ मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा यह गाना 1976 में आई फिल्म ‘सबसे बड़ा रुपैया’ में हास्य अभिनेता महमूद पर फिल्माया गया था और बहुत लोकप्रिय भी हुआ था। आज भी इन पंक्तियों को व्यंग्य मुहावरे के रूप में अक्सर इस्तेमाल किया जाता है। संयोग से इस वर्ष हम लोग स्वतंत्रता के बाद पहली बार चलन में आए भारतीय रुपये की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं।
इसी वर्षगांठ को मनाते हुए मुंबई की एक संस्था ‘सरमाया आर्ट फाउंडेशन’ ने न सिर्फ इन 75 वर्षों में तय किए गए रुपये के सफर, बल्कि 2500 वर्षों में आई-गई अनेक मुद्राओं की प्रदर्शनी ‘ओडिसी ऑफ द रुपी’ का आयोजन किया है। प्रदर्शनी में 500 वर्ष पहले शेरशाह सूरी द्वारा शुरू किए गए रुपये से लेकर बादशाह अकबर से होते हुए आज के रुपये तक का सफर बड़े रोचक ढंग से दर्शाया गया है।
बचपन की रुचि ने दिया लक्ष्य
प्रदर्शनी में रखे गए अधिकांश सिक्के सरमाया आर्ट फाउंडेशन के संस्थापक पाल अब्राहम के व्यक्तिगत संग्रह के हैं। इंडसइंड बैंक में सीओओ रहे 65 वर्षीय अब्राहम की सिक्कों में रुचि बचपन में ही उनके पिता ने उन्हें त्रावणकोर राज्य के सिक्कों से भरा एक डिब्बा सौंपकर जगा दी थी। उसके बाद से अब्राहम मुद्राओं की विभिन्न प्रदर्शनियों में घूम-घूमकर पुराने से पुराने दुर्लभ सिक्के ढूंढ़कर उन्हें इकट्ठा करते रहे हैं।
सोने पर सुहागा यह कि उनकी दोस्ती मुद्राओं के संग्रह के लिए विख्यात आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एशमोलियन संग्रहालय के क्यूरेटर डा.शैलेंद्र भंडारे से हो गई। दोनों ने कई महीने सलाह कर भारतीय रुपये के 75 वर्ष पूर्ण होने पर मुंबई में एक प्रदर्शनी आयोजित करने का मन बना लिया।
अब्राहम बताते हैं कि 15 अगस्त, 1950 को भारतवर्ष गणराज्य का पहला रुपया जारी किया गया था। इस पर सारनाथ के सिंह स्तंभ को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अंकित किया गया था।

कहां से शुरू हुई रुपये की कहानी?
रुपये की कहानी यहीं से शुरू नहीं होती है, यह तो करीब 500 साल पहले 1538 तक जाती है, जब हुमायूं को हराकर अफगान शासक शेरशाह सूरी ने उत्तरी भारत पर राज करना शुरू किया। शेरशाह सूरी ने भारत के अलग-अलग भागों में अलग-अलग मुद्राओं का चलन देखा, तो उन्हें इसमें एकरूपता लाने की जरूरत महसूस हुई और उसने पहली बार अपने द्वारा चलाई गई मुद्रा को ‘रुपया’ नाम दिया।
माना जाता है कि ‘रुपया’ शब्द का जन्म ‘रौप्य’ शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ चांदी होता है। चूंकि, उस समय ये सिक्के चांदी के होते थे, इसलिए इन्हें रुपया कहा जाने लगा।
अब्राहम कहते हैं कि कालांतर में मुगलों ने भी रुपये को ही अपने साम्राज्य की औपचारिक मुद्रा के रूप में अपनाया और यह एक विश्वसनीय मानक बन गया। बस फर्क इतना आता रहा कि हर शासक रुपया नामक इन चांदी के सिक्कों पर अपने साम्राज्य की पहचान बदलता रहा। जैसे सिख राजा अपने रुपये पर पवित्र बेर के पेड़ की पत्तियां अंकित करते थे, तो अवध के नवाबों ने अपने रुपये पर दो मछलियां अंकित करनी शुरू कर दीं।
मुगल शासनकाल में जैसे-जैसे शासक बदलते गए, वैसे-वैसे उनके रुपये में भी परिवर्तन आता गया। जब अंग्रेजों का प्रभुत्व बढ़ा, तो हाथ से ढाले गए सिक्कों की जगह अच्छी तरह से गढ़े एवं मशीन से ढाले गए सिक्के चलन में आ गए।

भारत के अलावा- किन देशों की मुद्रा को रुपया कहा जाता है?
समय के साथ-साथ रुपये ने भारत से बाहर का सफर भी तय किया। व्यापारियों के माध्यम से रुपया पूर्वी अफ्रीका से लेकर मध्य पूर्व एशिया एवं आज के पापुआ न्यू गिनी तक जा पहुंचा। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल सहित कई और पड़ोसी देशों में आज भी मुद्रा को रुपया ही कहा जाता है। इनमें से कई देशों की मुद्राओं को प्रदर्शनी में दर्शाया भी गया है।
अब्राहम कहते हैं कि कागजी रुपए की शुरुआत 18वीं शताब्दी में बैंक ऑफ हिंदुस्तान नामक एक निजी बैंक द्वारा की गई थी। वचन पत्र के रूप में पहला एक रुपये का नोट 1917 में जारी किया गया था। प्रदर्शनी में शेरशाह सूरी और मुगल बादशाह अकबर द्वारा जारी किए गए सिक्का रूपी रुपयों से लेकर आज भारतीय मुद्रा के रूप में चल रहे कागज के नोटों तक को दर्शाया गया है।

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