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    Labour Code: लेबर कोड में बदलाव से किन-किन राज्यों को मिलेगा फायदा? श्रम मंत्रालय की रिपोर्ट जारी

    By SANJAY KUMAR MISHRAEdited By: Abhishek Pratap Singh
    Updated: Tue, 25 Nov 2025 10:00 PM (IST)

    नए लेबर कोड को लेकर सरकार और श्रम संगठनों के बीच मतभेद हैं। सरकार का कहना है कि यह आर्थिक विकास और रोजगार को बढ़ावा देगा, जबकि श्रम संगठन इसे कामगारों के खिलाफ बता रहे हैं। श्रम मंत्रालय के अध्ययन के अनुसार, जिन राज्यों ने श्रम कानूनों में संशोधन किए हैं, वहां उत्पादन, निवेश और रोजगार में वृद्धि हुई है। इन राज्यों में बिहार, उत्तरप्रदेश, आंधप्रदेश, गुजरात जैसे राज्य शामिल हैं।

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    नए लेबर कोड को लेकर कराई गई स्टडी।

    संजय मिश्र, नई दिल्ली। चार नए लेबर कोड लागू करने के फैसले का जहां अधिकांश श्रम संगठन कामगारों के हित के खिलाफ होने का दावा करते हुए इसका विरोध कर रहे हैं वहीं इनके दावों से असहमत सरकार का साफ कहना है कि नई श्रम संहिता आर्थिक विकास और रोजगार को नई गति देगी।

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    रोजगार और आर्थिक तरक्की के मोर्चे पर नए लेबर कोड के गेमचेंजर साबित होने को लेकर केंद्र सरकार का आकलन दरअसल कई राज्यों में पिछले कुछ सालों में लागू किए गए श्रम सुधारों के सकारात्मक नतीजों पर आधारित है।

    श्रम मंत्रालय ने कराई स्टडी

    केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने इस बारे में कराए गए अध्ययन में पाया है कि जिन राज्यों ने 2020 में पारित चारों लेबर कोड से काफी कुछ मिलते-जुलते संशोधन अपने राज्य के श्रम कानूनों में किए हैं वहां उत्पादन, निवेश, रोजगार से लेकर आर्थिक विकास की गति में बढ़ोतरी हुई है। इनमें भाजपा-एनडीए शासित बिहार, उत्तरप्रदेश, आंधप्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों के साथ गैर एनडीए शासित पंजाब, केरल और कर्नाटक जैसे राज्य भी शामिल हैं।

    सुधार लागू करने में गैर भाजपा-एनडीए राज्य भी शामिल

    राजस्थान को भी इसी श्रेणी में गिना जा सकता है क्योंकि अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार ने प्रदेश के श्रम कानूनों में मिलते-जुलते संशोधन किए जिसका राज्य को अब फायदा मिल रहा है। दिलचस्प यह है कि राज्य में उद्योग-निवेश को आकर्षित करने के लिए अपने श्रम कानूनों में जरूरी बदलाव करने वाले केंद्रीय लेबर कोड के विरोध की सियासत के बीच सुधार लागू करने वाले राज्यों में गैर भाजपा-एनडीए शासित राज्य भी शामिल हैं।

    केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया भी इसकी पुष्टि करते हुए कह चुके हैं कि 18 राज्यों ने चारों केंद्रीय लेबर कोड से मिलते-जुलते बदलाव अपने प्रदेश के श्रम कानूनों में कर लिए हैं जिसमें कांग्रेस तथा वामपंथी दल की सरकारें भी हैं। पश्चिम बंगाल को छोड़कर इनमें अधिकांश बड़े राज्य हैं।

    अपने श्रम कानूनों में बदलाव के बाद इसे आर्थिक विकास तथा रोजगार के मोर्चे पर इन राज्यों में सकारात्मक प्रगति हुई है और केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने चारों लेबर कोड लागू करने की अधिसूचना जारी करने से पहले इसका एक अध्ययन भी कराया।

    स्टडी में क्या निकला नतीजा

    आंध्रप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, बिहार, राजस्थान और उत्तरप्रदेश में वहां किए गए श्रम सुधारों के प्रभाव का अध्ययन कराया गया जिसमें पाया गया कि राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद दर में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।

    गुजरात के 2023-24 के जीएसडीपी में उसके पिछले वर्ष की तुलना में 13.36 प्रतिशत की वृद्धि हुई जिसमें मैन्यूफैक्चरिंग की हिस्सेदारी करीब 28-30 प्रतिशत के बीच रही जो 17 फीसद के राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है।

    आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियों से रूबरू हो रहे पंजाब में भी श्रम सुधारों की वजह से जीएसडीपी में 9.43 प्रतिशत का बड़ा सुधार हुआ है और प्रदेश ने 1.25 लाख करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित किया है जो करीब साढ़े चार लाख नए रोजगार के अवसर पैदा करेगा।

    बिहार के जीएसडीपी में हाल के वर्षों में 13.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी का श्रेय भी काफी हद तक राज्य के पुराने श्रम कानूनों में बदलाव को जाता है।

    श्रम मंत्रालय के इस अध्ययन के मुताबिक महाराष्ट्र में बीते एक साल में 1.4 लाख करोड़ रूपए के नए निवेश आए हैं। वहीं महाराष्ट्र के साथ उत्तरप्रदेश के आर्गनाइज्ड मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के रोजगार सृजन में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।

    आंध्रप्रदेश आर्थिक विकास-रोजगार के पायदान पर छलांग लगाने की ओर बढ़ रहा तो राजस्थान के बड़ी उत्पादन इकाईयों में रोजगार की हिस्सेदारी 40.9 प्रतिशत से बढ़कर 51.2 फीसद पहुंच गई है।

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