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    केरल का 'राइट टू डिस्कनेक्ट' कानून: क्या भारत में ऑफिस कल्चर हमेशा के लिए बदल जाएगा?

    Updated: Sat, 01 Nov 2025 05:50 PM (IST)

    केरल 'राइट टू डिस्कनेक्ट बिल 2025' के साथ कर्मचारियों को शिफ्ट के बाद ऑफिस से अलग होने का अधिकार देने वाला पहला राज्य बनने की ओर है। यह कानून कर्मचारियों को काम के घंटे खत्म होने के बाद ऑफिस के कॉल और मैसेज को अनदेखा करने की अनुमति देगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम कर्मचारियों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है, बशर्ते इसे सही तरीके से लागू किया जाए।

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    राइट टू डिस्कनेक्ट बिल की क्यों हो रही इतनी चर्चा। (प्रतीकात्मक तस्वीर।)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केरल, भारत का ऐसा राज्य बनने की ओर बढ़ रहा है, जो कर्मचारियों की शिफ्ट पूरी होने के बाद उन्हें ऑफिस से पूरी तरह डिसकनेक्ट होने का कानूनी अधिकार देगा। राइट टू डिस्कनेक्ट बिल 2025 के तहत कर्मचारी शिफ्ट खत्म होने के बाद ऑफिस से आने वाले ईमेल, कॉल, मैसेज या मीटिंग रिक्वेस्ट को नजरंदाज कर सकता है।

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    इस कानून का मुख्य उद्देश्य काम और निजी जिंदगी के बीच एक स्पष्ट रेखा खींचना है, ताकि कर्मचारी हमेशा ऑन कॉल रहने के तनाव से मुक्त हो सकें। हालांकि इस बिल के पास होने से ही सब कुछ नहीं होगा। एक्सपर्ट्स का कहना है कि स्पष्ट परिभाषा, मैनजेर ट्रेनिंग और संगठनात्मक जवाबदेही उतनी ही जरूरी है, जितना कि ये कानून।

    क्या कहना है एक्सपर्ट्स का?

    अब ऐसे में सवाल ये है कि केरल सरकार का यह कदम कर्मचारियों के लिए मील का पत्थर साबित होगा या फिर सिर्फ कागजों पर रहने वाली एक और पॉलिसी बनकर रह जाएगा। मामले पर एक्सपर्ट्स का कहना है कि लोग अपने बिजी रहने को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। वो यह सोचते हैं कि लगातार अवेलेबल रहना का मतलब कुशल होना है, जोकि गलत है। कई लोगों को डिस्कनेक्ट करने में मुश्किल होती है, इसलिए नहीं कि वह ज्यादा काम करना चाहते हैं बल्कि इसलिए कि उन्हें डर होता है कि उन्हें काम को लेकर कम कमिटेड समझा जाएगा।

    बिल में क्या है खास?

    अगर यह बिल पास हो जाता है तो केरल भारत का पहला राज्य होगा जो किसी कर्मचारी के “डिस्कनेक्ट करने के अधिकार” को औपचारिक रूप से मानेगा। यह सुरक्षा फ्रांस, बेल्जियम और आयरलैंड जैसे देशों में पहले से ही मौजूद है। बिल में क्षेत्रीय संयुक्त श्रम आयुक्त के नेतृत्व में जिला स्तर की प्राइवेट सेक्टर वर्कप्लेस शिकायत निवारण कमेटी का भी प्रस्ताव है।

    यह पैनल शिकायतों की जांच करेगा, काम के घंटों के नियमों के पालन पर नजर रखेगा और यह पक्का करने के लिए निर्देश जारी करेगा कि कर्मचारियों को आधिकारिक घंटों के बाद भी काम पर रहने के लिए मजबूर न किया जाए। उल्लंघन के मामलों में, लेबर कमिश्नर को जांच शुरू करने और कार्रवाई की सिफारिश करने का अधिकार होगा।

    ऐसे कानून की जरूरत क्यों?

    सेंटर फॉर फ्यूचर वर्क की 2022 की रिपोर्ट में पाया गया कि 71% कर्मचारियों ने तय घंटों से ज्यादा काम किया, अक्सर एम्प्लॉयर के दबाव के कारण। लगभग एक-तिहाई लोगों ने ज्यादा थकान और चिंता बताई; एक चौथाई से ज्यादा लोगों ने कहा कि रिश्तों पर असर पड़ा तो पांचवें हिस्से ने अपने आप को कम मोटिवेटेड महसूस किया।

    2024 के एक सर्वे में पाया गया कि 88% भारतीय कर्मचारियों से काम के घंटों के बाद संपर्क किया जाता है, 85% का कहना है कि यह छुट्टी के दौरान भी जारी रहता है और लगभग 10 में से 8 को डर है कि मैसेज को नजरअंदाज करने से करियर ग्रोथ पर असर पड़ता है। WHO-ILO के एक अध्ययन में भारत को ज्यादा काम से होने वाली मौतों के लिए सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में बताया गया है। भारतीय मजदूर अक्सर बिना ओवरटाइम पेमेंट के 10-11 घंटे काम करते हैं।

    केरल का बिल पहली बार सितंबर 2025 में प्रस्तावित किया गया था और अक्टूबर 2025 में पेश किया गया था। इसका रिव्यू किया जा रहा है और कमेटी की मंजूरी और वोटिंग का इंतजार है।

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