पुरी में घटी ओलिव रिडले कछुओं की संख्या, पर्यावरणविदों ने तट पर कार्यक्रमों की मेजबानी को ठहराया दोषी
पुरी में घटी ओलिव रिडले कछुओं की संख्या के लिए पर्यावरणविदों ने तट पर कार्यक्रमों की मेजबानी को ठहराया दोषी है। इसके अलावा ट्रेलरों की अवैध आवाजाही भी इसके लिए जिम्मेदार है। कई बार कछुए ट्रेलरों के जाल में फंसने के बाद मर जाते हैं।

जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। ओडिशा के गंजाम जिले में ऋशिकुल्या मुहाने में इस वर्ष ओलिव रिडले कछुओं की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि पुरी जिले के नुआनदी, रामचंडी, केलूनी और देबी मुहानों में लुप्तप्राय प्रजातियों द्वारा अंडे देने में गिरावट देखी गई। मिली जानकारी के अनुसार, ब्रह्मगिरी रेंज और देबी नदी क्षेत्र में इस वर्ष समुद्री मेहमानों की अच्छी संख्या देखी गई। हालांकि, पुरी के कोणार्क और बालूकंद इलाकों में बड़े पैमाने पर घोंसले बनाने की गतिविधि में गिरावट आई है।
कछुओं की संख्या कम होने के पीछे ये वजहें हैं जिम्मेदार
पर्यावरणविदों ने ट्रेलरों की अवैध आवाजाही और रामचंडी समुद्र तट पर इको-रिट्रीट के आयोजन को व्यवहार परिवर्तन के पीछे प्रमुख कारणों के रूप में जिम्मेदार ठहराया है। पर्यावरणविद डॉ. दिलीप श्रीचंदन ने कहा है कि चंद्रभागा में इको रिट्रीट कार्यक्रम की व्यवस्था के कारण इस सीजन में ओलिव रिडले कछुओं की संख्या कम हो गई है।
इसके अलावा ट्रेलरों की अवैध आवाजाही के परिणामस्वरूप ओलिव रिडले कछुओं की संख्या में कमी आई है। एक मछुआरे पी.के. तातिली ने भी स्वीकार किया है कि कई बार मछली पकड़ने के दौरान कुछ कछुए ट्रेलरों के जाल में फंसने के बाद मर जाते हैं।
जमीन की सतह उपयुक्त हो, तभी कछुए देते हैं अंडे
दूसरी ओर, पुरी सहायक वन संरक्षक (एसीएफ) ने पुरी के कई क्षेत्रों में ओलिव रिडले कछुओं की संख्या में गिरावट की बात स्वीकार की है। उन्होंने कहा है कि कछुओं के अंडादान देने के लिए तट की सतह उपयुक्त होनी चाहिए। इसी वजह से कुछ जगहों पर अंडादान प्रक्रिया में कमी आयी, तो कुछ अन्य हिस्सों में वृद्धि देखी गई है।
कोणार्क क्षेत्र में अंडे देने की प्रक्रिया में गिरावट दर्ज की गई, जबकि ब्रह्मगिरी रेंज में वृद्धि देखी गई। पुरी एसीएफ उत्तम गडनायक ने कहा कि अगर हम समग्र क्षेत्र पर विचार करते हैं, तो बड़े पैमाने पर घोंसले बनाना सामान्य है।

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