Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    विचार: नरम-गरम ट्रंप से निपटने की नीति, भारत का तरीका समय की मांग

    By Sanjay GuptaEdited By: Swaraj Srivastava
    Updated: Sat, 25 Oct 2025 11:41 PM (IST)

    लेख में बताया गया है कि कैसे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत के प्रति अहंकारी रवैया अपनाया, खासकर व्यापार और रूस से तेल खरीदने के मामले में। भारत ने ट्रंप की तीखी टिप्पणियों का जवाब उसी भाषा में नहीं दिया, लेकिन व्यापार समझौते की उम्मीद बनी हुई है। भारत अपने हितों की रक्षा को प्राथमिकता देता है और अमेरिका के साथ संबंधों को सामान्य करने की दिशा में काम कर रहा है।

    Hero Image

    संजय गुप्त। पाकिस्तान के खिलाफ भारत के आपरेशन सिंदूर के समय दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव रोकने का श्रेय लेने की चेष्टा में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने जिस अहंकारी रवैये का परिचय देना शुरू किया था, वह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। चूंकि भारत ने उन्हें यह श्रेय नहीं दिया कि दोनों देशों के बीच टकराव उनकी वजह से रुका, इसलिए उन्होंने भारत से व्यापार समझौते के मामले में अड़ियल रवैया अपना लिया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    उन्होंने पाकिस्तान से निकटता बढ़ाने के साथ भारत पर टैरिफ थोपना शुरू किया। उन्होंने पहले भारत को टैरिफ किंग बताकर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया, फिर उसे इस कारण दोगुना कर दिया कि भारत रूस से तेल खरीद कर यूक्रेन के खिलाफ युद्ध जारी रखने में उसकी मदद कर रहा है।

    ट्रंप एक लंबे अर्से से भारत के खिलाफ चुभती हुई बातें कर रहे हैं। कभी पाकिस्तान की तारीफ करते हैं और कभी यह कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे कहा है कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद करेगा। दीवाली पर भारतीय प्रधानमंत्री को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि भारत रूस से तेल का आयात कम करेगा, जबकि भारत ने ऐसा कोई फैसला नहीं लिया है। इसके बाद उन्होंने रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों पर पाबंदी लगा दी।

    इससे भारत के लिए रूस से तेल खरीदना कठिन हुआ और अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम भी बढ़ गए। केवल राष्ट्रपति ट्रंप ही भारत को रूस से तेल खरीदने के लिए नहीं कोस रहे हैं। उनके कुछ सहयोगी भी भारत के खिलाफ तीखी टिप्पणियां करते रहे हैं। भारत ट्रंप और उनके सहयोगियों की तीखी टिप्पणियों का जवाब उन्हीं की भाषा में न देने की नीति पर चल रहा है। ट्रंप के विरोधाभासी बयानों के बाद भी अच्छी बात यह है कि दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते के आसार बढ़ गए हैं।

    यह बात और है कि गत दिवस ही वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत को न तो व्यापार समझौते की जल्दी है और न ही वह किसी दबाव में कोई समझौता करेगा। लगता है जैसे अमेरिका दिखा रहा है कि वह भारत पर दबाव बनाकर व्यापार समझौता करना चाहता है, वैसे ही भारत भी यह जता रहा है कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति की हां में हां मिलाने वाला नहीं। इसी तरह जैसे ट्रंप ने बीच-बीच में पीएम मोदी को ग्रेट मैन कहने के साथ कुछ अन्य सकारात्मक बातें कीं, वैसे ही मोदी ने भी अमेरिकी राष्ट्रपति को इजरायल और हमास में समझौता कराकर पश्चिम एशिया में शांति लाने का श्रेय दिया। इस सबके बीच ही दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते को लेकर वार्ता जारी है।

    भारत की कोशिश यही होनी चाहिए कि व्यापार समझौता हो जाए। यदि ऐसा हो जाता है तो दोनों देशों के संबंध पटरी पर आ जाएंगे, लेकिन भारत को इसके लिए अडिग रहना होगा कि समझौता उसके हितों के अनुकूल हो। भारत और अमेरिका के बीच संबंध सामान्य होना दोनों देशों के हित में है। इसका लाभ दोनों देशों के लोगों को होगा। अमेरिका में जो लाखों भारतीय उच्च पदों पर काम कर रहे हैं, वे भारत के साथ अमेरिका के हितों की पूर्ति भी कर रहे हैं।

    यह ठीक है कि ट्रंप के रवैये के कारण दोनों देशों के संबंधों में खटास आई है, लेकिन यदि भारत को अमेरिका के सहयोग की आवश्यकता है तो ऐसी ही आवश्यकता उसे भी है। शायद इसी कारण तमाम तीखे बयानों के बाद भी यह कहा जा रहा है कि दोनों देश समझौते के करीब हैं। यदि अमेरिका भारत के हितों की अनदेखी करेगा और खासकर उसकी ऊर्जा सुरक्षा खतरे में डालेगा तो व्यापार समझौते में कुछ देर भी हो सकती है। ट्रंप को समझना होगा कि व्यापार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के मामले में पाकिस्तान भारत का स्थान नहीं ले सकता।

    वे इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि यूरोपीय देश भी रूस से तेल-गैस खरीद रहे हैं और चीन तो रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार है। यदि ट्रंप यह समझ रहे हैं कि वे रूस से तेल खरीद के मामले में केवल भारत को कठघरे में खड़ा कर खुद को सही साबित कर लेंगे तो ऐसा होने वाला नहीं है। टैरिफ के मामले में उनका अस्थिर और मनमाना रवैया उनकी विश्वसनीयता को चोट पहुंचा रहा है। पिछले दिनों उन्होंने चीनी राष्ट्रपति से मुलाकात की घोषणा की और फिर उनसे मिलने से पीछे हट गए। इसके बाद वह फिर उनसे मिलने को तैयार हो गए।

    यही काम उन्होंने रूसी राष्ट्रपति से मुलाकात को लेकर किया। पहले उन्होंने उनसे मुलाकात करने की घोषणा की और फिर रूस पर प्रतिबंध लगाने में जुट गए। ट्रंप एक जटिल स्वभाव वाले अहंकारी व्यक्ति हैं। उनकी कूटनीतिक क्षमताएं सवालों के घेरे में हैं। वे किसी भी शासनाध्यक्ष या देश को लेकर तीखी बातें करने और फिर अपनी बात से पलट जाने के आदी हैं। पता नहीं वे कब किस देश पर प्रतिबंध लगा दें और कब उसके प्रति नरम रवैया अपनाकर उसके नेता से बात करने को तैयार हो जाएं।

    आखिर अमेरिकी राष्ट्रपति यह क्यों चाहते हैं कि भारत उनके हिसाब से चले? यदि उन्हें अमेरिका के हितों की चिंता करने का अधिकार है तो ऐसा ही अधिकार भारत को भी है। यदि ट्रंप यह चाहते हैं कि भारत उसके हितों की चिंता करे तो ऐसा ही अमेरिका को करना होगा और इस क्रम में भारत की ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकता को समझना होगा।

    यह धारणा सही नहीं कि अमेरिका की संतुष्टि के लिए यदि भारत रूस से तेल न भी खरीदे तो कोई अंतर नहीं पड़ेगा। एक तो रूस से तेल न खरीदने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ जाएंगी और दूसरे, दुनिया में संदेश जाएगा कि भारत अमेरिकी दबाव के आगे झुक गया। इसके अलावा रूस से संबंधों पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। भारत स्वतंत्र विदेश नीति पर चलने के लिए जाना जाता है और वह अपने हितों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है।

    एक तथ्य यह भी है कि रूस भारत का भरोसेमंद सहयोगी है। जब अमेरिका भारत के खिलाफ था, तब रूस और भारत की मित्रता परवान चढ़ी। यह मित्रता आज भी कायम है। भारत रूस से दूरी बनाकर अमेरिका से निकटता कायम नहीं कर सकता। ट्रंप के अस्थिर व्यवहार के बाद भी भारत अमेरिका से अपने रिश्ते सामान्य करने की जिस सधी नीति पर चल रहा है, वही समय की मांग है। इस नीति के कारण ही व्यापार समझौता वार्ता आगे बढ़ रही है।