Lok Sabha Election 2024: क्या कहता है BJP-JDU के बीच सीटों का बंटवारा, जानिए इसके राजनीतिक मायने
Lok Sabha Election बिहार भाजपा प्रभारी विनोद तावड़े ने दावा किया कि राजग के सभी घटक दल पूरी ताकत से लड़ेंगे और बिहार की सभी 40 सीटें जीतेंगे। दिल्ली में भाजपा कार्यालय में सोमवार को राजग की संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस में जदयू सांसद संजय झा भाजपा नेता एवं बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी मंत्री मंगल पांडेय के अलावा लोजपा (रामविलास) एवं हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के स्थानीय प्रतिनिधि मौजूद थे।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। घटक दलों से लंबे विमर्श और एक-एक सीट का हिसाब लगाने के बाद राजग ने बिहार में सीटों का बंटवारा कर लिया। लोकसभा की 40 सीटों वाले बिहार में भाजपा सबसे ज्यादा 17 सीटों पर लड़ेगी। जदयू को 16 और लोजपा (रामविलास) को पांच सीटें मिली हैं। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) एवं राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) को एक-एक सीट मिली हैं।
बिहार की 40 सीटों पर दांव
बिहार भाजपा प्रभारी विनोद तावड़े ने दावा किया कि राजग के सभी घटक दल पूरी ताकत से लड़ेंगे और बिहार की सभी 40 सीटें जीतेंगे। दिल्ली में भाजपा कार्यालय में सोमवार को राजग की संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस में जदयू सांसद संजय झा, भाजपा नेता एवं बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, मंत्री मंगल पांडेय के अलावा लोजपा (रामविलास) एवं हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के स्थानीय प्रतिनिधि मौजूद थे।
सीटों को लेकर जारी थी द्वंद्व
लगभग तीन वर्ष पहले रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा को तोड़कर केंद्र में मंत्री बनने वाले पशुपति कुमार पारस खाली हाथ रह गए। भतीजा चिराग पासवान अबकी बार उनपर भारी पड़ गए। पार्टी में टूट के बाद हुए नुकसान की भरपाई करते हुए चिराग ने अपने पिता की परंपरागत सीट हाजीपुर को वापस ले लिया, जिसके बाद पारस का राजग से रिश्ता टूट गया। चाचा-भतीजा में इस सीट को लेकर कई महीने से द्वंद्व जारी था।
सबसे ज्यादा नुकसान उपेंद्र कुशवाहा को
2020 के विधानसभा चुनाव में सीटें कम होने के चलते जदयू की हैसियत कम करके आंकी जा रही थी, किंतु भाजपा के सामने अड़कर खड़ा रहा एवं सांसदों की तुलना में सीटों की संख्या कम नहीं होने दी। जदयू के राजग में आने से सबसे ज्यादा नुकसान उपेंद्र कुशवाहा को झेलना पड़ा है। उन्हें तीन सीटों की अपेक्षा थी, लेकिन मिली सिर्फ एक ही।
फायदे में रही मांझी की पार्टी
जीतन राम मांझी की पार्टी भी फायदे में रही। उसे बिहार में एक मंत्री का पद और लोकसभा की भी एक सीट मिल गई। पिछली बार भाजपा और जदयू ने 17-17 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें जदयू को सिर्फ एक किशनगंज की सीट पर कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा था। बाकी सभी 39 सीटें राजग की झोली में आ गई थीं।
अदला-बदली में हुआ विलंब
सीट बंटवारे में विलंब की वजह आपस में कुछ सीटों की अदला-बदली थी। क्षेत्रों के समीकरण एवं प्रत्याशियों की जीत की संभावनाओं के आधार पर जदयू-भाजपा एवं लोजपा के बीच कुछ सीटों की दावेदारी पर बात अटकी हुई थी। लोजपा को पिछली बार छह सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार पांच पर बात चल रही थी। जीतन राम की पार्टी को गया की सीट चाहिए थी और उपेंद्र कुशवाहा को काराकाट की। दोनों सीटों पर जदयू का कब्जा था। वह अपने पास बनाए रखना चाहता था, लेकिन बाद में शिवहर सीट पर बात बन गई, जहां से आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को प्रत्याशी बनाया जा सकता है।
राजद-भाजपा
भाजपा ने निवर्तमान सांसद रमादेवी की परवाह किए बिना शिवहर की सीट जदयू को समर्पित कर दी है। राजद से भाजपा में आई रमा देवी 2009 से शिवहर में लगातार भाजपा का प्रतिनिधित्व कर रही थीं। किशनगंज की हारी हुई सीट भी जदयू के हिस्से में आई है। पहले जदयू ने इसे समर्पित कर दिया था, किंतु सामाजिक समीकरण के चलते भाजपा तैयार नहीं हुई तो आखिर में जदयू को ही रखना पड़ गया।
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