'भारतीय राजनीति परिवारों की जायदाद नहीं', पॉलिटिक्स में वंशवाद पर थरूर का करारा प्रहार; क्या निशाने पर कांग्रेस?
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भारतीय राजनीति में वंशवाद पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का वादा तब तक पूरा नहीं होगा जब तक राजनीति परिवारों की संपत्ति बनी रहेगी। थरूर ने योग्यता आधारित राजनीति की वकालत की और राजनीतिक दलों में सुधार की आवश्यकता बताई। उन्होंने मतदाताओं को जागरूक करने और पारिवारिक पहचान के बजाय योग्यता के आधार पर वोट करने का आग्रह किया।

वंशवाद पर शशि थरूर का हमला (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि लोकतंत्र का असली वादा 'जनता की सरकार, जनता द्वारा, जनता के लिए' तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक भारतीय राजनीति परिवारों की जायदाद बनी रहे।
उन्होंने कहा कि यह समय है जब भारत को वंशवाद की जगह योग्यता आधारित राजनीति अपनानी चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि राजनीतिक पार्टियों में सुधार किए जाएं, जैसे कि कार्यकाल की सीमा तय करना और पार्टी के सच्चे चुनाव कराना।
'मतदाताओं को भी करें शिक्षित'
थरूर ने कहा कि मतदाताओं को भी शिक्षित और जागरूक करना जरूरी है ताकि वे किसी का उपनाम देखकर नहीं, बल्कि योग्यता देखकर वोट करें। उन्होंने कहा कि जब सत्ता किसी की काबिलियित या जनता से जुड़ाव के बजाय पारिवारिक पहचान पर तय होती है, तब शासन की गुणवत्ता गिर जाती है।
शशि थरूर ने लिखा कि यह समस्या केवल कांग्रेस तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राजनीतिक तत्र में फैली हुई है। थरूर के मुताबिक, जब किसी उम्मीदवार की सबसे बड़ी पहचान उसका उपनाम होता है तो टैलेंट की कमी हो जाती है और लोकतंत्र कमजोर पड़ता है।
थरूर ने दिए कई उदाहरण
अपने लेख 'Indian Politics Are a Family Business' में थरूर ने कई उदाहरण दिए। उन्होंने कहा, "ओडिशा में बीजू पटनायक के बाद उनके बेटे नवीन पटनायक ने कमान संभाली। महाराष्ट्र में बाल ठाकरे से उद्धव ठाकरे और फिर उनके बेटे आदित्य तक वंश चला गया। यूपी में मुलामय सिंह यादव से अखिलेश यादव, बिहार में रामविलास पासवान से चिराग पासवान और पंजाब में प्रकाश सिंह बादल से सुखबीर बादल तक यही कहानी दोहराई गई है।"
थरूर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवारों का लंबे समय से दबदबा है। उन्होंने लिखा, "यह प्रवृत्ति सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि पूरे साउथ एशिया में दिखती है। पाकिस्तान में भुट्टो और शरीफ परिवार, बांग्लादेश में शेख और जिया परिवार और श्रीलंका में डारनायके और राजपक्षे परिवार।"
राजनीतिक परिवारों पर थरूर का बयान
उन्होंने लिखा है कि भारत जैसा बड़ा लोकतंत्र जब इस वंशवाद को अपनाता है तो यह और भी विरोधाभासी लगता है। थरूर ने लिखा कि परिवार एक ब्रांड की तरह काम करता है, लोगों को उन्हें पहचानने और उन पर भरोसा करने में समय नहीं लगता। इसी वजह से ऐसे उम्मीदवारों को वोट मिल जाता है।

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