गरीब ने साइकिल और चप्पल चोरी के आरोप में जेल में काटे तीन महीने, हाई कोर्ट ने कहा- यह न्याय व्यवस्था की असफलता
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट को जमानत देने का अधिकार है भले ही सत्र न्यायालय या हाई कोर्ट में जमानत याचिका खारिज हो चुकी हो। अदालत ने साइकिल और जूते चोरी के एक मामले में गरीब आरोपित को राहत दी जिसे तीन महीने से अधिक जेल में रहना पड़ा।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि मजिस्ट्रेट को जमानत देने का अधिकार है, भले ही आरोपित की जमानत याचिका सत्र न्यायालय या हाई कोर्ट में खारिज हो चुकी हो।
अदालत ने इस दौरान एक गरीब आरोपित को राहत दी, जिस पर मात्र साइकिल और जूते चोरी का आरोप था, लेकिन उसे तीन महीने से अधिक जेल में रहना पड़ा।
अदालत ने टिप्पणी की– “यह अविश्वसनीय है कि किसी वकील ने इतनी मामूली चोरी के मामले में मजिस्ट्रेट अदालत से जमानत याचिका वापस ले ली और सत्र न्यायालय में दाखिल की, जहां उसे खारिज कर दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि आरोपित को तीन महीने बीस दिन जेल में काटने पड़े। यह ''न्याय व्यवस्था की असफलता है।”
'तुरंत देनी चाहिए थी जमानत'
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा कि यदि किसी मामले में पुलिस जांच के बाद क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करती है या अपराध को जमानती बना दिया जाता है, तो मजिस्ट्रेट को आरोपित को तुरंत जमानत देनी चाहिए।
न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि किसी मामले में पीड़ित पक्ष जमानत का विरोध नहीं करता और शपथपत्र देकर सहमति देता है, तो आरोपित को जमानत मिलनी चाहिए। यहां तक कि अगर अपराध गैर-समझौता योग्य हो, तब भी आपसी समझौते को जमानत पर विचार करते समय प्रासंगिक माना जाएगा। संगरूर निवासी सूरज कुमार पर भारतीय न्याय संहिता के तहत आरोप थे।
आरोपी चार महीने की कैद काट चुका है
अदालत ने कहा कि आरोपित पहले ही लगभग चार महीने की कैद काट चुका है। ऐसे में उसे जमानत न मिलना न्याय व्यवस्था की गंभीर खामी को दर्शाता है। अदालत ने अंतरिम जमानत को स्थायी करते हुए आरोपित की रिहाई के आदेश दिए।
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