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    'एक बूंद भी नहीं देंगे...' पंजाब-हरियाणा में नहर को लेकर लड़ाई, जानिए क्या है दशकों पुराना अनसुलझा SYL विवाद

    By Gurpreet CheemaEdited By: Gurpreet Cheema
    Updated: Sat, 07 Oct 2023 06:37 PM (IST)

    पंजाब-हरियाणा के बीच दशकों से चला आ रहा SYL नहर का मुद्दा एक बार फिर गर्माया हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में केंद्र को मध्यस्थता करने के आदेश देते हुए पंजाब के हिस्से में आने वाली परियोजना के लिए आवंटित जमीन का सर्वे कर उसकी रिपोर्ट पेश करने की बात कही है। इस लेख में SYL नहर विवाद से जुड़ी जरूरी बातों के बारे में बताया गया है।

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    पंजाब और हरियाणा के बीच दशकों से सतलुज यमुना लिंक (SYL) विवाद चल रहा है।

    डिजिटल डेस्क, चंडीगढ़। Sutlej-Yamuna Link Canal Dispute: पंजाब और हरियाणा के बीच करीब 57 साल पुराना सतलुज यमुना लिंक (SYL) विवाद समय के साथ-साथ गहराता ही जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी समय-समय पर नहर से जुड़े मुद्दे को सौहार्द्रपूर्ण ढंग से हल करने की बात कही है।

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    हाल ही में SC ने SYL नहर विवाद पर पंजाब सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। पंजाब सरकार को सकारात्मक रुख दिखाना चाहिए। इसे लेकर रिपोर्ट भी मांगी गई है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह पंजाब के हिस्से में आने वाली परियोजना के लिए आवंटित जमीन का सर्वे करे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भूमि संरक्षित है।

    आइये जानते हैं कि आखिर SYL नहर विवाद क्या है और पंजाब व हरियाणा (Haryana-Punjab Water Dispute) का इस पर तर्क क्या है। साथ ही जानेंगे कि 1966 में शुरू हुए पानी को लेकर विवाद में अबतक क्या-क्या हुआ।

    SYL नहर विवाद क्या है?

    पंजाब से हरियाणा के गठन से कुल 10 साल पहले 1955 में रावी और ब्यास के पानी का आंकलन 15.85 मिलियन एकड़ फीट (MAF) किया गया गया। फिर सरकार ने इसी साल राजस्थान, पंजाब और जम्मू कश्मीर के बीच एक मीटिंग बुलाई थी। इस बैठक में राजस्थान को आठ, पंजाब को 7.20 व जम्मू कश्मीर को 0.65 मिलियन एकड़ फीट पानी आवंटित किया गया था।

    पंजाब पुनर्गठन एक्ट

    साल 1966 में पंजाब पुनर्गठन एक्ट के बाद से पंजाब और हरियाणा दो अलग-अलग राज्य बनाए गए। हरियाणा के गठन के बाद पंजाब के हिस्से में जो 7.2 MAF पानी था। अब इसे हरियाणा के साथ बांटा गया और 3.5 MAF का हिस्सा दिया गया। वहीं, पंजाब ने राइपेरियन सिद्धांतों (Riparian Water Rights) का हवाला देते हुए दोनों नदियों का पानी हरियाणा को देने से इनकार कर दिया।

    दरअसल, राइपेरियन जल अधिकारों के मुताबिक, जल निकाय से सटे भूमि के मालिक को पानी का उपयोग करने का अधिकार है। पंजाब की तरफ से समय-समय पर यह भी बात सामने आई है कि राज्य के पास अतिरिक्त पानी न होने के कारण किसी और राज्य से इसे साझा नहीं किया जा सकता।

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    सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) क्या है?

    10 सालों से चल रहे विरोध के बाद केंद्र सरकार ने साल 1976 में पानी के बंटवारे पर एक अधिसूचना जारी की, लेकिन दोनों राज्यों में विवाद इतना ज्यादा था कि इसे लागू करना मुश्किल हो गया। हालांकि, हरियाणा ने 1980 तक अपने क्षेत्र में नहर को लेकर परियोजना पूरी कर ली थी। दोनों राज्यों में लगातार टकराव जारी था। बातचीत से भी कोई हल न निकलने के बाद साल 1981 में 'सतलुज-यमुना लिंक नहर' पर समझौता किया गया।

    तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रखी आधारशिला

    आठ अप्रैल, 1982 को   पंजाब के पटियाला के एक गांव कपूरई में सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) की आधारशिला रखी थी। एसवाईएल नहर की कुल लंबाई 214 किलोमीटर है। इसमें से पंजाब में 122 किमी हिस्सा है, जबकि हरियाणा के पास 92 किलोमीटर हिस्सा है। पंजाब ने भी 1982 में इसे लेकर काम तो शुरू किया लेकिन विपक्ष की पार्टी शिरोमणी अकाली दल ने इसका विरोध किया और इस प्रोजेक्ट को रोक दिया गया।

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    1985 में 'राजीव-लोंगोवाल समझौता'

    अब जब पंजाब में इसका विरोध बढ़ गया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अकाली दल के प्रमुख हरचंद सिंह लोंगोवाल के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते के बाद फिर नहर का कार्य शुरू किया गया लेकिन कुछ उग्रवादियों ने कई इंजीनियरों को और मजदूरों की हत्या कर दी और एक बार फिर परियोजना ठप्प हो गई। इसके बाद से फिर कभी इसे लेकर कार्य शुरू ही नहीं हो पाया।

    इराडी अधिकरण (Eradi Tribunal) का गठन

    SC के न्यायाधीश वी. बालकृष्ण इराडी की अध्यक्षता में 'इराडी अधिकरण' का गठन किया गया। इस अधिकरण में 1987 में पंजाब और हरियाणा को मिलने वाले पानी के हिस्से में पांच और 3.83 मिलियन एकड़ फीट की बढ़ोतरी की सिफारिश थी।

    हालांकि, इसके बाद भी विवाद इतना बढ़ता जा रहा था कि 1996 में हरियाणा ने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। फिर सर्वोच्च न्यायालय ने 2002 में पंजाब को निर्देश दिए कि अपने क्षेत्र में SYL के काम को पूरा करें।

    फिर पंजाब विधानसभा में 2004 वर्ष में पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स अधिनियम पारित किया जाता है। इस अधियनियम के तहत जल-साझाकरण के सभी समझौतों को खत्म कर दिया जाता है। तब से लेकर अब तक SYL का निर्माण अधर में लटक कर रह गया है। इसके बाद भी दोनों राज्यों के बीच टकराव बरकरार है।

    स्त्रोत: विधि कार्य विभाग, जल शक्ति विभाग, व PIB की आधिकारिक वेबसाइट