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    सांसद अमृतपाल को अस्थायी रिहाई देने से पंजाब सरकार का इंकार, कानून की स्थिति बिगड़ने का डर

    Updated: Thu, 27 Nov 2025 12:46 AM (IST)

    पंजाब सरकार ने सांसद अमृतपाल सिंह को अस्थायी रिहाई देने से मना कर दिया है। सरकार को डर है कि उनकी रिहाई से राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है। अमृतपाल के समर्थकों द्वारा हंगामा करने की आशंका के चलते यह निर्णय लिया गया है, जिससे राज्य में अशांति फैल सकती है।

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    सांसद अमृतपाल को अस्थायी रिहाई देने से पंजाब सरकार का इंकार। फाइल फोटो

    इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। खडूर साहिब से सांसद अमृतपाल सिंह को अस्थायी तौर पर रिहाई देने से पंजाब सरकार ने इन्कार कर दिया है। अमृतपाल नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (एनएसए) के अधीन इस समय असम की डिब्रुगढ़ जेल में बंद है।

    अमृतपाल ने 21 नवंबर को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में एक दिसंबर से 19 दिसंबर तक चलने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में शामिल होने के लिए अस्थायी तौर पर रिहाई की मांग की याचिका दाखिल की थी। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार के गृह सचिव को एक सप्ताह में फैसला लेने के लिए कहा था।

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    सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर और जिला पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला लिया है, जिन्होंने अस्थायी रिहाई पर अमन कानून की स्थिति बिगड़ने पर चिंता जताई है।

    अमृतपाल पर “खालिस्तानी अलगाववाद को बढ़ावा देने” और राज्य की सुरक्षा एवं सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा बनने के आरोप हैं। पिछली सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी ने अमृतपाल की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट आरएस बैंस से पूछा था कि जब अमृतपाल अधिकार की बात करता है तो वह संसद में किन मुद्दों पर बोलेंगे।

    इस पर बैंस ने कहा था कि वह संभवत बाढ़ राहत से जुड़े मुद्दे उठाएंगे, क्योंकि उसके क्षेत्र के लगभग एक हजार गांव बाढ़ से प्रभावित हुए थे। सुनवाई के दौरान एएसजी सत्य पाल जैन ने केंद्र सरकार की ओर से अदालत को बताया कि सांसद को संसद में उपस्थित होने की अनुमति केवल राज्य की सक्षम प्राधिकरण ही दे सकती है।

    अमृतपाल के वकील ने कोर्ट को बताया कि 13 नवंबर को केंद्रीय गृह मंत्रालय, पंजाब सरकार और अमृतसर के जिलाधिकारी को भी मांग पत्र पत्र भेजे थे, जिन पर निर्णय लेने का आग्रह हाई कोर्ट से किया गया है।

    पंजाब सरकार की ओर से दलील दी गई कि यह केवल एक मांग है, कोई औपचारिक आवेदन नहीं। इस पर अदालत ने कहा कि इस मांग को ही आवेदन मानकर विचार किया जाए।