'समझौता विधवा के मुआवजे के अधिकार नहीं खत्म करता', बीमा कंपनी को आखिर HC ने क्यों फटकारा?
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा कि दुर्घटना में मृतक के माता-पिता का समझौता विधवा के मुआवज़े के अधिकार को ख़त्म नहीं करता। जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने बीमा कंपनी की आलोचना की। अदालत ने कहा कि समझौता सिर्फ़ शामिल पक्षों को बांधता है अन्य दावेदारों के अधिकारों को नहीं। विधवा ने अपील पहले ही दायर कर दी थी।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि दुर्घटना में मृतक पीड़ित के माता-पिता द्वारा लोक अदालत में किया गया समझौता उसकी विधवा के मोटर वाहन अधिनियम के तहत उचित मुआवजे के अधिकार को समाप्त नहीं कर सकता।
जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने बीमा कंपनी की इस कोशिश को “न्यायालय के समक्ष सत्यनिष्ठा का उल्लंघन” और “न्याय का उपहास” बताया।
कोर्ट ने कहा कि समझौता केवल उसमें शामिल पक्षों को बाध्य करता है, न कि अन्य दावेदारों के स्वतंत्र वैधानिक अधिकारों को। विधवा ने 2004 में माता-पिता के समझौते से पहले ही अपनी अपील दायर कर दी थी।
कोर्ट ने बीमा कंपनी की आलोचना की, जो दोनों अपीलों में एक ही वकील के माध्यम से पेश हुई थी। कंपनी ने विधवा की लंबित अपील के बावजूद माता-पिता के साथ खंडित समझौता किया, जिसे अदालत ने अनुचित माना।
कोर्ट ने देखा की मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण ने भविष्य की संभावनाओं, वैवाहिक नुकसान, संपत्ति हानि और अंतिम संस्कार खर्चों को शामिल नहीं किया था।
कोर्ट ने मुआवजे को 33,666 रुपये से बढ़ाकर 8.9 लाख रुपये किया, जिसमें से माता-पिता को दी गई 60,000 रुपये की राशि घटाकर विधवा को 7.96 लाख रुपये 9% वार्षिक ब्याज के साथ देने का आदेश दिया।
कोर्ट ने बीमा कंपनी को दो महीने के भीतर बढ़ा हुआ मुआवजा जमा करने का निर्देश दिया और खंडित रणनीति के लिए फटकार लगाई।
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