किसानों के लिए मिसाल बना फाजिल्का का यह परिवार, 11 साल से नहीं जलाई पराली, ऐसे करते हैं प्रबंधन
फाजिल्का के किसान लखबीर सिंह 11 साल से पराली नहीं जला रहे हैं, बल्कि बेलर से गांठें बनाकर उसका निपटारा कर रहे हैं। उन्हें 2018 में पंचायत सशक्तीकरण राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। लखबीर सिंह पराली को आग लगाने से होने वाले नुकसानों के बारे में किसानों को जागरूक कर रहे हैं और उन्हें पराली का सही प्रबंधन करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। कृषि विभाग भी किसानों को पराली प्रबंधन के लिए जागरूक कर रहा है।
-1762245456807.webp)
11 साल से नहीं जलाई पराली, बेलर से बना रहे गांठें।
मोहित गिलहोत्रा, फाजिल्का। दो महीने तक खेतों में मेहनत करने के बाद अब किसानों ने धान की फसल की कटाई कर ली है और गेहूं की बिजाई की तैयारी शुरू कर दी है। जबकि कई किसान अभी भी धान की कटाई के बाद पराली को आग लगाकर पर्यावरण को प्रदूषित करने में लगे हैं।
जिले में सैटेलाइट के जरिये कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं और अब तक नौ एफआइआर दर्ज हो चुकी हैं। इन सबके बीच गांव पूर्ण पट्टी के पूर्व सरपंच लखबीर सिंह किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। वह पिछले 11 वर्षों से पराली को आग नहीं लगा रहे और पराली की बेलर से गांठे बनाकर पराली का निपटारा कर रहे हैं। उनके 2018 में सरपंच रहते हुए हरे भरे गांव और पराली जलाने से मुक्ति के प्रयास के तहत गांव को पंचायत सशक्तीकरण राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
दैनिक जागरण से बातचीत में किसान लखबीर सिंह ने बताया कि वर्ष 2014 से गेहूं-धान की फसल के अवशेष को नहीं जला रहा है। वह गेहूं की फसल के अवशेष को भूसा बनाकर और बाकी को खेतों में मिला देता है। इसी तरह धान की पराली की गांठें बनाकर फैक्ट्री में भेज देता है। किसान ने कहा कि पराली को आग लगाने के बाद इससे पैदा हुए धुएं से न सिर्फ वातावरण ही प्रदूषित होता है, बल्कि अनेकों सड़क दुर्घटनाएं भी पैदा होती हैं।
सभी किसानों को धान की पराली को आग न लगाकर गांठें बनानी चाहिए। इस तरह करने से हमारी जमीन की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ेगी और जमीन वाले मित्र कीट भी नष्ट नहीं होंगे और हमारी आगे वाली फसल का झाड़ भी बढ़ेगा। उन्होंने बताया कि वर्ष 2014 में जब कृषि विभाग ने पराली को लेकर जागरूकता फैलानी शुरू की, तब वह गांव के सरपंच थे। तब एक सरपंच होने के नाते सबसे पहले उन्होंने खुद की उदाहरण बनने की शुरुआत की।
उस वर्ष गांव के कई किसानों ने उसका साथ दिया और पराली को आग न लगाकर खेतों में ही निपटारण किया। धीरे-धीरे यह जागरूकता आगे बढ़ी और वर्ष 2018 में गांव के स्वच्छ होने और पराली जलाने के मामले भी काफी कम होने के चलते मध्यप्रदेश के जबलपुर में नेशनल स्तर पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान पंचायत सशक्तीकरण राष्ट्रीय पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। तब से लेकर अब तक वह लगातार किसानों को जागरूक कर रहे हैं। उनके द्वारा 45 एकड़ खेत की धान की पराली को बेलर मशीन के द्वारा गांठें बनाते है। फिर गेहूं के रूप में पीला सोना उगाया जाता है।
किसान धरती को कोख को न लगाए आग
मुख्य कृषि अधिकारी फाजिल्का हरप्रीत पाल कौर ने कहा कि धरती को हमारे गुरुओं और पीरों ने मां का दर्जा दिया है। हम सभी इसमें से अन्न उगाकर खाते हैं, हमें इसकी कोख को नहीं जलाना चाहिए। पराली एक बहुमूल्य खाद और मिट्टी की अच्छी सेहत का कुदरती स्रोत है। यदि हम इस तरह की फसलों के अवशेष को जलाते रहेंगे तो कुदरत के प्रकोप से हमें कोई भी नहीं बचा सकता। उन्होंने कहा कि खादों के सुचारू इस्तेमाल करें, जिससे कृषि खर्च घटने के साथ-साथ वातावरण प्रदूषण से भी बचा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि आई-खेत एप से छोटे और सीमांत किसान पराली को संभालने के लिए मशीनरी को बड़े ही सस्ते किराए पर लेकर इस्तेमाल कर सकते हैं। इस एप के जरिये किसान आधुनिक मशीनों जैसे हैप्पी सिडर, एमबी पला, चोपर, मलचर, सुपरसीडर आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।