फिरोजपुर में बाढ़ के दो महीने बाद भी रेत में दबे खेत, गेहूं की बिजाई पर मंडरा रहा संकट
पंजाब के फिरोजपुर जिले में बाढ़ के दो महीने बाद भी हालात सामान्य नहीं हैं। सीमावर्ती गांवों के खेतों में अब भी रेत और गाद जमा है, जिससे किसान परेशान हैं। वे सरकारी सहायता का इंतजार कर रहे हैं और अपने स्तर पर रेत हटाने की कोशिश कर रहे हैं। किसानों को इस बार गेहूं की बिजाई को लेकर चिंता है।

सरहद से सटे 15 से अधिक गांवों में एक हजार एकड़ से ज्यादा जमीन पर रेत (फोटो: जागरण)
कपिल सेठी, फिरोजपुर। पंजाब में आई बाढ़ को भले ही दो महीने बीत चुके हों, लेकिन फिरोजपुर जिले के सरहदी गांवों में इसके निशान आज भी साफ दिखाई दे रहे हैं। कई इलाकों में खेतों में जमा रेत और गाद अब भी किसानों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है।
जिन खेतों में कभी हरी फसलें लहलहाती थीं, आज वहां चार से पांच फुट तक रेत के टीले नजर आ रहे हैं। किसानों के सामने सबसे बड़ी चिंता अब यह है कि क्या वे इस बार गेहूं की बिजाई कर पाएंगे या नहीं।
जिले के सरहद से सटे कालूवाला, टेंडीवाला, जल्लोके, झुग्गे छीना सिंह वाला, नवीं गट्टी राजोके, हजारा सिंह वाला, भखड़ा, गट्टी रहीमके, निहाला किलचा, गणेशे वाला सहित 15 से अधिक गांवों में एक हजार एकड़ से अधिक जमीन पर बाढ़ का रेत और गाद जमा है।
अब तक इनमें से करीब 150 एकड़ जमीन ही खेती योग्य बनाई जा सकी है, जबकि बाकी किसान अपनी जमीनों को फिर से उपजाऊ बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
किसानों का कहना है कि उन्हें अब तक किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिली है। ऐसे में वे अपने स्तर पर ही रेत निकालने का प्रयास कर रहे हैं। कई किसान अपने रिश्तेदारों या आढ़तियों से कर्ज लेकर ट्रैक्टर और जेसीबी का इंतजाम कर रहे हैं। कुछ जगहों पर समाजसेवी संस्थाओं की ओर से ट्रैक्टर और डीजल की सहायता दी जा रही है ताकि किसान अपने खेतों को दोबारा खेती योग्य बना सकें।
गांव कालूवाला के किसान स्वर्ण सिंह और काला सिंह ने बताया कि उनके इलाके में करीब 250 एकड़ जमीन पर 4 से 5 फुट तक रेत जमा है। उन्होंने कहा, “हमारे पास रेत हटाने के लिए न तो पैसा है और न ही साधन।
अगर किसी तरह रेत निकाल भी लें तो उसे कहां ले जाएं, क्योंकि हमारे गांव के तीनों ओर दरिया है। हमें अपनी ही जमीनों में रेत के ढेर लगाने पड़ेंगे या फिर दरिया के गड्डों में रेत भरनी होगी।”
उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि वे इस बार गेहूं की बिजाई कर पाएंगे। गांव टेंडीवाला के किसान जसवंत सिंह ने बताया कि उनके खेतों में दो से तीन फुट तक मिट्टी और रेत जमा हुई है। उन्होंने कहा, “हमने मिट्टी हटाने का काम शुरू कर दिया है, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि जमीन की उपजाऊ शक्ति पर इसका क्या असर पड़ेगा।”
इन कठिन हालात में किसानों की मदद के लिए हंभला फाउंडेशन आगे आई है। फाउंडेशन के महासचिव गुरनाम सिंह गामा सिधु ने बताया कि फाउंडेशन की ओर से लगातार सरहदी गांवों में किसानों को सहायता दी जा रही है।
अब तक करीब चार हजार लीटर डीजल किसानों को वितरित किया गया है और 10 हजार लीटर से अधिक डीजल और देने की योजना है। उन्होंने कहा, “हम किसानों को उनकी जरूरत के अनुसार सहायता उपलब्ध करवा रहे हैं चाहे वह डीजल हो, ट्रैक्टर हो या अन्य सामग्री।
हमारा लक्ष्य इन किसानों की जमीनों को फिर से उपजाऊ बनाना है। गांव कालूवाला के निवासी मलकीत सिंह ने बताया कि एक समाजसेवी संस्था की ओर से लगभग 50 गट्ठे गेहूं का बीज भी मुहैया करवाया गया है, लेकिन डीजल और ट्रैक्टर की कमी के चलते अभी रेत निकालने का काम शुरू नहीं हो सका है। उन्होंने कहा कि यदि समय रहते सहायता नहीं मिली तो कई किसान इस सीजन की बिजाई नहीं कर पाएंगे।
गांव टेंडीवाला के सरपंच गुरनाम सिंह ने कहा कि अब तक किसानों को किसी भी तरह की सरकारी सहायता नहीं मिली है। उन्होंने कहा, “किसान अपनी मेहनत और समाजसेवी संस्थाओं की मदद से रेत निकालने में जुटे हैं। सरकार से उम्मीद है कि जल्द राहत मिले ताकि किसान समय पर गेहूं की बुवाई कर सकें।”
इस संबंध में जब मुख्य कृषि अधिकारी बलविंद्र सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में किसानों ने रेत निकालने का काम शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा, “हम लगातार गांवों का दौरा कर रहे हैं ताकि किसानों को गेहूं की बिजाई से जुड़ी तकनीकी जानकारी दी जा सके।
जिन जगहों पर जमीनें नीची थीं, वहां रेत ज्यादा जमा हुई है और ऐसे इलाकों में कुछ कठिनाई हो सकती है। लेकिन हम किसानों को हर संभव सहायता देने के लिए तत्पर हैं।”
जिन गांवों में अब भी रेत जमी हुई है, वहां के किसान समय पर गेहूं की बिजाई को लेकर चिंतित हैं। अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक बिजाई शुरू हो जानी चाहिए थी, लेकिन कई इलाकों में खेतों की स्थिति अभी भी सुधार की प्रतीक्षा में है।
हालांकि कुछ गांवों में किसानों की कोशिशों से धीरे-धीरे खेत दोबारा खेती योग्य बन रहे हैं, लेकिन अधिकांश किसानों के लिए यह काम अब भी एक लंबी लड़ाई जैसा है।
फिरोजपुर के सरहदी गांवों में किसान आज भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि सरकार या प्रशासन उनकी मदद के लिए आगे आए ताकि वे फिर से अपनी जमीनों पर हरियाली देख सकें।

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