पवित्र बेई पर पुल तैयार होने से 12 किमी का रास्ता रहा 5 किमी
पिछले कई दिनों से वातावरण प्रेमी संत बलबीर सिंह के नेतृत्व में सेवकों की तरफ से अवतार गौशाला गांव फतेहवाल में तैयार किए गए पुल को पवित्र काली बेई पर रखा गया।

संवाद सहयोगी, सुल्तानुपुर लोधी : पिछले कई दिनों से वातावरण प्रेमी संत बलबीर सिंह के नेतृत्व में सेवकों की तरफ से अवतार गौशाला गांव फतेहवाल में तैयार किए गए पुल को पवित्र काली बेई पर रखा गया। पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की तरफ से माली मदद और संत सीचेवाल जी के सेवकों की मेहनत तथा संत सुखजीत सिंह सीचेवाल के नेतृत्व में सुल्तानपुर लोधी के गांव आहली खुर्द एरिए में बह रही पवित्र काली बेई के ऊपर ड्रेनज विभाग की देखरेख में पुल तैयार किया गया।
संत सुखजीत सिंह ने बताया कि यह पुल लगभग 142 फुट लम्बा और छह फुट चौड़ा था, जिसको रखने में दो दिन लग गए। उन्होंने कहा कि सेवादारों की तरफ से पिछले काफी समय से संत सुखजीत सिंह के नेतृत्व में की गई मेहनत के साथ यह पुल तैयार किया गया है। जिसके साथ अब लगभग 12 किलोमीटर का रास्ता अब सिर्फ 5 किलोमीटर ही तय करना होगा। इस मौके इलाका निवासी, ड्रेनज विभाग के अधिकारी, हरबंस सिंह लंबरदार, लखविंदर सिंह लंबरदार , कश्मीर सिंह पूर्व सरपंच, सुरजीत सिंह शंटी, राम सिंह, पाल सिंह, मलकीत सिंह, कुलबीर सिंह, गज्जण सिंह, जगीर सिंह, अजीत सिंह, गगन थिद, प्रभदीप सिंह, दया सिंह, तजिन्दर सिंह और सेवक उपस्थित थे।
इलाका निवासी बोले-संत सीचेवाल की ओर से बनाए रास्तों से आना-जाना हुआ आसान
इस मौके पर इलाका निवासियों ने वातावरण प्रेमी पदमश्री संत बलबीर सिंह का धन्यवाद करते हुए कहा कि उनकी तरफ से गई निष्काम सेवा के कारण ही सुल्तानपुर लोधी का यह इलाका एक बार फिर से देखने योग्य बन गया है। उन्होंने कहा कि किसी समय यहां पर आना भी मुश्किल होता था, परंतु संत सीचेवाल जी की तरफ से यहां बनाए गए रास्तों के साथ अब आना जाना आसान हो गया है वहीं उनकी तरफ से बांध की मजबूती के लिए समय पर किए जा रहे कामों के साथ किसानों की जमीनें फिर से आबाद हो गई हैं। उनकी तरफ से इस क्षेत्र में अवतार गौशाला बनाने के साथ लोगों का आना जाना भी बढ़ गया है। 2010 में एक आवारा गाय के साथ शुरू की गई अवतार गौशाला, आज 200 से अधिक
संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने कहा कि साल 2010 में एक आवारा गाय के साथ शुरू की गई अवतार गौशाला में आज 200 से अधिक दुधारू और तंदरुस्त गऊओं का होना वहां रह रहे सेवकों की सेवा का फल है। ऐतिहासिक नगरी सुलतानपुर लोधी को इन आवारा गाऊओं से निजात दिलाने के उद्देश्य से ही इस गौशाला की शुरुआत की गई थी। उन्होंने कहा कि आखिरकार दूध देने वाली गाए आवारा वाली श्रेणी में क्यों आ जातीं हैं? यह एक अहम और बड़ा सवाल है।
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