Guru Gochar 2026: नए साल में देवगुरु बृहस्पति दो बार करेंगे राशि परिवर्तन, इन राशियों को होगा सर्वाधिक लाभ
साल 2026 में देवताओं के गुरु बृहस्पति देव दो बार राशि परिवर्तन करेंगे, जिससे कई राशि के जातकों को विशेष लाभ मिलेगा। 2 जून को बृहस्पति मिथुन से कर्क राशि में गोचर करेंगे, और फिर 31 अक्टूबर को कर्क से सिंह राशि में प्रवेश करेंगे। इस गोचर से वृषभ, कन्या, कर्क और तुला राशि वालों को करियर और कारोबार में सफलता मिलेगी तथा बिगड़े काम बनेंगे।
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धर्म डेस्क, नई दिल्ली। नया साल कई राशि के जातकों के लिए बेहद खास रहने वाला है। अगले साल देवताओं के गुरु बृहस्पति देव दो बार राशि परिवर्तन करेंगे। बृहस्पति देव के राशि परिवर्तन करने से कई राशि के जातकों को लाभ मिलेगा। इन राशियों को करियर और कारोबार में मनमुताबिक सफलता मिलेगी। साथ ही सभी प्रकार के बिगड़े काम बनेंगे। आइए, गुरु राशि परिवर्तन के बारे में सबकुछ जानते हैं-
गुरु गोचर 2026

देवताओं के गुरु बृहस्पति देव नए साल यानी 2026 के जून महीने में राशि परिवर्तन करेंगे। बृहस्पति देव 02 जून को देर रात 01 बजकर 49 मिनट पर मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में गोचर करेंगे। इस राशि में बृहस्पति देव 30 अक्टूबर तक रहेंगे। देवगुरु बृहस्पति देव के राशि परिवर्तन करने से कई राशि के जातकों को लाभ मिलेगा। इनमें वृषभ और कन्या राशि के जातकों को विशेष लाभ मिलेगा।
गुरु गोचर 2026

बृहस्पति देव राशि परिवर्तन करने के बाद 30 अक्टूबर तक कर्क राशि में रहेंगे। इसके अगले दिन यानी 31 अक्टूबर को कर्क राशि से निकलकर सिंह राशि में गोचर करेंगे। इस राशि में बृहस्पति देव कई महीने तक रहेंगे। इसके बाद साल 2027 के जनवरी महीने में पुनः वक्री चाल चलकर कर्क राशि में गोचर करेंगे। बृहस्पति देव के सिंह राशि में गोचर करने से भी कई राशि के जातकों के जीवन में बदलाव आएगा। खासकर, कर्क राशि और तुला राशि के जातकों को विशेष लाभ देखने को मिल सकता है।
विष्णु मंत्र
1. शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥
2. ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
3. ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।
4. देवानाम च ऋषिणाम च गुरुं कांचन सन्निभम।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।
5. रत्नाष्टापद वस्त्र राशिममलं दक्षात्किरनतं करादासीनं,
विपणौकरं निदधतं रत्नदिराशौ परम्।
पीतालेपन पुष्प वस्त्र मखिलालंकारं सम्भूषितम्,
विद्यासागर पारगं सुरगुरुं वन्दे सुवर्णप्रभम्।।
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