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    Pradosh Vrat 2025: सोम प्रदोष व्रत की पूजा में करें इन मंत्रों का जप, मिलेगी महादेव की असीम कृपा

    Updated: Wed, 29 Oct 2025 09:29 AM (IST)

    हर माह में दो बार प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2025) किया जाता है, एक बार कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर और दूसरा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर। इस दिन प्रदोष काल में महादेव की पूजा-अर्चना करने का महत्व है। इस खास मौके पर महादेव के मंत्रों का जप करके लाभ प्राप्त कर सकते हैं। चलिए पढ़ते हैं महादेव की कृपा प्राप्ति के मंत्र।

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    Som Pradosh Vrat 2025

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। नवंबर का पहला प्रदोष व्रत सोमवार, 3 नवंबर को मनाया जाएगा। सोमवार के दिन पड़ने के कारण इसे सोम प्रदोष व्रत (Som Pradosh Vrat 2025) भी कहा जाएगा। इस दिन पर पूजा का मुहूर्त शाम 6 बजे से रात 8 बजकर 34 मिनट तक रहने वाला है। प्रदोष व्रत की पूजा में आप शिव जी के मंत्रों का जप करके शुभ फलों की प्राप्ति कर सकते हैं। इससे साधक को महादेव का आशीर्वाद मिलता है और उसकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

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    शिव जी के मंत्र (Shiv ji ke mantra)

    1. ॐ नमः शिवाय

    2. ॐ नमो भगवते रूद्राय

    3. ॐ नमो नीलकण्ठाय।

    4. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात

    5. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
    उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्

    6. ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्तये।
    मह्यं मेधां प्रज्ञां प्रयच्छ स्वाहा॥

    7. कर्पूरगौरं करुणावतारं
    संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
    सदावसन्तं हृदयारविन्दे
    भवं भवानीसहितं नमामि ॥

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    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    8. ॥ श्री शिवरामाष्टकस्तोत्रम् ॥

    शिवहरे शिवराम सखे प्रभो,त्रिविधताप-निवारण हे विभो।
    अज जनेश्वर यादव पाहि मां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥1॥
    कमल लोचन राम दयानिधे,हर गुरो गजरक्षक गोपते।
    शिवतनो भव शङ्कर पाहिमां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥2॥
    स्वजनरञ्जन मङ्गलमन्दिर,भजति तं पुरुषं परं पदम्।
    भवति तस्य सुखं परमाद्भुतं,शिवहरे विजयं कुरू मे वरम्॥3॥
    जय युधिष्ठिर-वल्लभ भूपते,जय जयार्जित-पुण्यपयोनिधे।
    जय कृपामय कृष्ण नमोऽस्तुते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥4॥

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    भवविमोचन माधव मापते,सुकवि-मानस हंस शिवारते।
    जनक जारत माधव रक्षमां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥5॥
    अवनि-मण्डल-मङ्गल मापते,जलद सुन्दर राम रमापते।
    निगम-कीर्ति-गुणार्णव गोपते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥6॥
    पतित-पावन-नाममयी लता,तव यशो विमलं परिगीयते।
    तदपि माधव मां किमुपेक्षसे,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥7॥
    अमर तापर देव रमापते,विनयतस्तव नाम धनोपमम्।
    मयि कथं करुणार्णव जायते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥8॥
    हनुमतः प्रिय चाप कर प्रभो,सुरसरिद्-धृतशेखर हे गुरो।
    मम विभो किमु विस्मरणं कृतं,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥9॥
    नर हरेति परम् जन सुन्दरं,पठति यः शिवरामकृतस्तवम्।
    विशति राम-रमा चरणाम्बुजे,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥10॥
    प्रातरूथाय यो भक्त्या पठदेकाग्रमानसः।
    विजयो जायते तस्य विष्णु सान्निध्यमाप्नुयात्॥11॥
    ॥ इति श्रीरामानन्दस्वामिना विरचितं श्रीशिवरामाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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