Akshaya Tritiya 2025: सिर्फ हिंदू ही नहीं जैन धर्म में भी खास है अक्षय तृतीया, जानिए कैसे
हर साल वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर अक्षय तृतीया का पर्व (Akshaya Tritiya 2025 Significance) मनाया जाता है जो एक अबूझ मुहूर्त भी है। इस दिन को न केवल हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है बल्कि जैन धर्म में भी इस तिथि का काफी महत्व है। चलिए जानते हैं कि जैन धर्म में यह दिन इतना खास क्यों माना जाता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। अक्षय शब्द का अर्थ है कभी न खत्म होने वाला। इस प्रकार अक्षय तृतीया (Akshay Tritiya 2025) पर किए गए कार्यों जैसे जप-तप, यज्ञ, पितृ-तर्पण, दान-पुण्य आदि का साधक को अक्षय फल प्राप्त होता है। इस बार अक्षय तृतीया का पर्व बुधवार 30 अप्रैल 2025 को मनाया जा रहा है। इस दिन पूजा का मुहूर्त प्रातः 05 बजकर 41 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।
जैन धर्म में अक्षय तृतीया का महत्व
जैन समाज में अक्षय तृतीया को इक्षु तृतीया (Akshaya Tritiya Importance in Jainism) के रूप में मनाया जाता है। असल में जैन समुदाय के लोग इस पर्व को तीर्थथंकर आदिनाथ से जुड़ा हुआ मानते हैं। मान्यता है कि भगवान आदिनाथ ने ही सबसे पहले समाज में दान का महत्व समझाया था, इसलिए इस दिन पर जैन धर्म के लोग आहार दान, ज्ञान दान, औषधि दान करते हैं।
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मिलती है ये कथा
जैन ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि भगवान आदिनाथ ने स्वयं अपना राज-काज त्याग कर जंगल में तप किया था। वह लगातार छह महीनों तक तपस्या में डूबे रहे। इसके बाद भगवान आदिनाथ ने विचार किया कि इस समाज को दान का महत्व समझाना चाहिए। तब वह 6 महीने बाद ध्यान से उठकर नगर की ओर निकल पड़े। लोगों ने उन्हें सोना-चांदी, रत्न और आभूषण आदि भेंट किएं। लेकिन उन्हें किसी ने भोजन का दान नहीं दिया, जिसका कारण यह था कि जैन तीर्थंकर मौन रहकर भिक्षा मांगते थे और लोग उनकी जरूरत को समझ नहीं पाते थे।
इस प्रकार उन्हें लगभग एक वर्ष तक भूखा रहना पड़ा था। तब वह एक दिन वह मुनिराज हस्तिनापुर नाम से प्रचलित एक शहर में पहुंचे। जहां के राजा श्रेयांस ने उन्हें गन्ने का रस भेंट किया। माना जाता है कि वह अक्षय तृतीया का दिन था। गन्ने को इक्षु भी कहा जाता है, जिस कारण जैन धर्म में इस तिथि को इक्षु तृतीया के रूप में मनाने का प्रचलन है।
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