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    Ganesh Stotram: बुधवार के दिन इस स्तोत्र से करें गणपति जी को प्रसन्न, नहीं सताएगी धन की समस्या

    Updated: Tue, 28 May 2024 09:00 PM (IST)

    कई लोग कर्ज की समस्या में कुछ यूं फंस जाते हैं कि फिर कई कोशिशों के बाद भी उससे बाहर नहीं निकल पाते। ऐसे में आप बुधवार के दिन या रोजाना गणेश जी की पूजा के दौरान इस विशेष स्त्रोत का पाठ कर सकते हैं। इससे आपको धन संबंधी समस्या या फिर कर्ज आदि की की समस्या से छुटकारा मिल सकता है।

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    Ganesh Stotram बुधवार के दिन इस स्तोत्र से करें गणपति जी को प्रसन्न।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Rin Harta Shri Ganesh Stotra: सनातन मान्यताओं के अनुसार, बुधवार का दिन विघ्नहर्ता गणेश को समर्पित माना गया है। ऐसे में यदि आप भगवान गणेश की विशेष कृपा की प्राप्ति करना चाहते हैं, तो इसके लिए गणेश जी की पूजा के दौरान ऋणहर्ता गणेश स्त्रोत का पाठ जरूर करें। मान्यता है कि रोजाना इस स्तोत्र का पाठ करने से साधक को जीवन में चल रही धन संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। तो चलिए पढ़ते हैं गणेश जी को समर्पित ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र। 

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    ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र

    ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।

    ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्॥

    सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,

    एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:।

    दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्॥

    ऋण मोचन मंगल स्तोत्र

    मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।

    स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः॥

    लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।

    धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥

    अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।

    व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥

    एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।

    ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥

    धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।

    कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥

    स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।

    न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥

    अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।

    त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥

    ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।

    भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥

    अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।

    तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्॥

    विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।

    तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥

    पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।

    ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥

    एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।

    महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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