Jitiya Vrat 2025: जितिया व्रत में किस देवता की होती है पूजा? यहां पढ़ें इस दिन का महत्व
बिहार झारखंड और उत्तर प्रदेश के कई स्थानों पर जितिया व्रत किया जाता है जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है। माना गया है कि इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करने से संतान को दीर्घायु स्वास्थ्य और सुख-सम्पन्नता की होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन पर किस देवता की पूजा की जाती है। साथ ही जानते हैं इस व्रत का महत्व।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाया जाता है। इस व्रत को महिलाएं अपनी संतान की सुरक्षा व स्वास्थ्य के लिए करती हैं। जितिया व्रत (Jitiya Vrat 2025) निर्जला रखा जाता है। इस साल जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका रविवार 14 सितंबर को किया जा रहा है।
इस देवता की होती है पूजा
जितिया व्रत के दिन भगवान जीमूतवाहन की पूजा-अर्चना की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, जीमूतवाहन एक गंधर्व राजकुमार थे। माना जाता है कि राजा जीमूतवाहन ने एक नागिन के पुत्र को बचाने के लिए खुद को गरुड़ के हवाले कर दिया था। इसी कारण उन्हें भगवान के रूप में पूजा जाने लगा और माताएं अपनी संतान की रक्षा के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत करने लगीं।
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जितिया व्रत का महत्व (Jitiya Vrat Importance)
जितिया व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा अपनी संतान की लंबी उम्र और उसकी मंगल कामना के लिए रखा जाता है। यह भी मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान के सभी दुख और तकलीफ दूर होते हैं। इस व्रत को लेकर यह मान्यता भी प्रचलित है कि, जो भी महिला जितिया व्रत कथा सुनती है, उसे जीवन में कभी भी संतान वियोग का सामना नहीं करना पड़ता।
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इस तरह करें व्रत
व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले फल, मिठाई, चाय, पानी आदि का सेवन किया जा सकता है। जितिया व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर साफ-सुथरे कपड़े पहनें। सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद जीमूतवाहन के समक्ष दीपक जलाकर पूजा करें और व्रत का संकल्प लें।
विधि-विधान से भगवान वासुदेव और जीमूतवाहन का पूजन करें और व्रत कथा का पाठ (Jitiya Vrat Katha) करें। पूरे दिन व्रत करने के बाद अगले दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत का पारण कें। इस दौरान चावल, मरुवा की रोटी, तोरई, रागी और नोनी का साग खाया जाता है।
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