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    Mahabharata: अर्जुन के रथ पर क्यों विराजमान थे हनुमान जी, बड़ा ही रोचक है यह किस्सा

    हनुमान जी प्रभु श्रीराम के परम भक्त होने के साथ-साथ चिरंजीवियों में से भी एक हैं। महाभारत ग्रंथ में दो जगह पर हनुमान जी का वर्णन मिलता है। एक बार जब हनुमान जी की भेंट भीम से होती है और दूसरी बार महाभारत के युद्ध में। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि महाभारत के युद्ध में हनुमान जी भी मौजूद थे।

    By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Tue, 24 Jun 2025 02:55 PM (IST)
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    mahabharata story: अर्जुन से कहां मिले थे हनुमान जी?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महभारत ग्रंथ में ऐसे कई प्रसंग मिलते हैं, जो प्रेरणादायक होने के साथ-साथ रोचक भी हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि महाभारत के युद्ध के दौरान हनुमान जी अर्जुन के रथ पर क्यों सवार हुए। चलिए जानते हैं इस अद्भुत कथा के बारे में। 

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    क्या है पौराणिक कथा

    महाभारत की कथा के अनुसार, एक बार रामेश्वरम के पास हनुमान जी की भेंट अर्जुन से हुई। अर्जुन को अपने धनुर्धारी होने पर बड़ा घमंड था। इस घमंड में आकर अर्जुन ने हनुमान जी से कहा कि आपने त्रेतायुग में अपनी सेना के साथ मिलकर पत्थर से सेतु बनाया था। अगर मैं होता, तो केवल अपने बाणों की सहायता से ही सेतु बना देता। तब हनुमान जी कहा कि पत्थरों का पुल सेना का वजन उठाने में सक्षम था, लेकिन बाणों के पुल पर यह संभव नहीं है।

    दी ये चुनौती

    तब अर्जुन हनुमान जी को यह चुनौती देते हुए कहता है कि की मेरे द्वारा बनाए गए बाणों से पुल पर अगर आप तीन कदम भी नहीं चल पाए, तो मैं अग्नि से गुजर जाउंगा। लेकिन अगर आप तीन कदम चलते हैं, तो फिर आपको अग्नि से गुजरना होगा। हनुमान जी ने यह चुनौती स्वीकार कर ली।

    अपने कहे अनुसार, अर्जुन ने सरोवर पर बाणों का एक पुल बनाया। सेतु बनाकर तैयार कर लिया। हनुमान जी ने पहला कदम रखा, तो सेतु डगमगाने लगा। दूसरा कदम रखने पर पुल के टूटने की आवाजें आने लगीं। वहीं जब हनुमान जी ने तीसरा कदम रखा, तो पूरा सरोवर रक्त से लाल हो गया।

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    (Picture Credit: Canva)

     

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    भगवान श्रीकृष्ण ने समझाई सारी बात

    हनुमान जी पुल पर तीन कदम चलने में सफल हुए थे, इसलिए वह चुनौती के अनुसार, अग्नि परीक्षा की तैयारी करने लगे। तभी वहां भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए और उन्होंने हनुमान जी को रोक दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि असल में पहला कदम रखते ही सेतु ट जाता।

    इसलिए वह कछुए का रूप लेकर सेतु के नीचे आ गए थे। दूसरा कदम रखते ही सेतु टूट गया। जब हनुमान जी का कदम भगवान के ऊपर पड़ा, जिस कारण पानी खून से लाल हो गया। यह जानकर हनुमान जी को ग्लानि हुई की उनका पैर भगवान के ऊपर पड़ा। अर्जुन को भी अपनी गलती का अनुभव हुआ। तब दोनों ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा-याचना की।

    भगवान कृष्ण ने व्यक्त की इच्छा

    तब भगवान श्रीकृष्ण ने हनुमान जी से कहते हैं कि महाभारत के युद्ध के दौरान वह अर्जुन के रथ की रक्षा करें और उसे अभेद्य बनाएं। भगवान श्रीकृष्ण की इस इच्छा का मान रखते हुए हनुमान जी पूरे युद्ध में अर्जुन के रथ की ध्वजा में विराजमान रहे।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।