Pitru Paksha 2025: क्या है फल्गु नदी पर तर्पण करने का महत्व, राजा दशरथ से जुड़ी है यह कथा
भारत में कई स्थानों पर पितृ तर्पण की परंपरा है लेकिन गया जी की फल्गु नदी का महत्व सबसे निराला है। यहां पिंडदान और तर्पण करने से पितर तुरंत तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं और परिवार पर सुख-समृद्धि शांति और समृद्ध भविष्य का आशीर्वाद बरसाते हैं। चलिए जानते हैं इस बारे में।

दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। पितृपक्ष का समय हर हिंदू परिवार के लिए आत्मीय स्मृतियों का समय होता है। यह वह अवसर है जब हम अपने पूर्वजों को श्रद्धा और कृतज्ञता के साथ स्मरण करते हैं। पितरों के लिए किए गए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण केवल धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि हमारे संस्कारों और संबंधों का भावनात्मक प्रतीक हैं।
फल्गु नदी का महत्व
गया (बिहार) की पवित्र फल्गु नदी केवल जलधारा नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही आस्था और विश्वास की जीवंत धारा है। कहा जाता है कि यहां किया गया तर्पण अनेक जन्मों का पितृ ऋण समाप्त कर देता है। यही कारण है कि पितृपक्ष के समय हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से आकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करते हैं। श्राद्ध चाहे कहीं भी किया जाए, लेकिन जब तक गया जी की फल्गु नदी पर पिंडदान न हो, तब तक वह अधूरा माना जाता है।
पौराणिक कथा - माता सीता द्वारा पिंडदान
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान करने गया के फल्गु नदी पहुंचे, तब सामग्री जुटाने के लिए लक्ष्मण के साथ नगर चले गए थे। उन्हें सामान जुटाने में देर हो गई थी। पिंडदान का समय निकलता जा रहा था। उस समय माता सीता नदी तट पर बैठी थीं।
तभी राजा दशरथ की आत्मा ने प्रकट होकर माता सीता से कहा “समय बीत रहा है, मेरा पिंडदान शीघ्र करो।” सामग्री उपलब्ध न होने पर माता सीता ने नदी के रेत से पिंड बनाया और फल्गु नदी, अक्षयवट वृक्ष, एक ब्राह्मण, तुलसी और गौमाता को साक्षी मानकर दशरथ जी का पिंडदान किया। इस घटना के बाद से यह मान्यता बन गई कि गया जी की फल्गु नदी पर किया गया पिंडदान किसी भी स्थान पर किए गए पिंडदान से श्रेष्ठ और पूर्ण फल देने वाला है।
फल्गु नदी तर्पण के विशेष कारण -
- यहां माता सीता स्वयं पिंडदान कर चुकी हैं, इसलिए यह स्थान दिव्य और सिद्ध है।
- राजा दशरथ की आत्मा ने इसे साक्ष्य मानकर पितृ तर्पण का सर्वोत्तम स्थल घोषित किया।
- फल्गु नदी, अक्षयवट, तुलसी, गौमाता और ब्राह्मण ये पांच साक्षी आज भी इस परंपरा की पुष्टि करते हैं।
- यहां किया गया तर्पण पितरों की आत्मा को तुरंत तृप्त कर देता है, और वे अपनी संतान को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
फल्गु नदी केवल एक तीर्थ नहीं है, बल्कि यह पीढ़ियों से चली आ रही श्रद्धा का साक्षात प्रतीक है। यहां किया गया तर्पण केवल पितरों को तृप्त नहीं करता, बल्कि जीवित संतानों के जीवन को भी दिशा देता है। यही कारण है कि हर वर्ष पितृपक्ष में लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचकर अपने पितरों का तर्पण करते हैं और इस परंपरा से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं।
लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।
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