Pitru Paksha 2025: कब और किसने किया था भीष्म पितामह का पिंडदान, संक्रांति से जुड़ा है संबंध
भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2025) की शुरुआत होती है जिसका समापन आश्विन माह की अमावस्या पर होता है। पितृ पक्ष के आखिरी दि को सर्वपितृ अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। इस बार पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से हो चुकी है। वहीं इसका समापन 21 सितंबर को होने जा रहा है।

दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। भारतीय परंपरा में पितरों का सम्मान करना बहुत पवित्र माना गया है। हमारे पूर्वज ही हमारी जड़ों की शक्ति और आशीर्वाद का आधार होते हैं। श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे संस्कार इसीलिए किए जाते हैं, ताकि हम अपने पितरों के प्रति आभार और श्रद्धा व्यक्त कर सकें।
पितृ पक्ष का हर दिन हमें यह याद दिलाता है कि पूर्वजों की कृपा के बिना हमारा जीवन अधूरा है। इन्हीं परंपराओं में महाभारत के महानायक भीष्म पितामह का पिंडदान एक अद्वितीय उदाहरण है, जो धर्म, कर्तव्य और प्रेम से जुड़ा हुआ है।
भीष्म पितामह का पिंडदान
महाभारत में उल्लेख मिलता है कि जब भीष्म पितामह ने देह त्याग दी, तब पूरा कुरु वंश शोक में डूब गया। उस समय उनके अंतिम संस्कार और पिंडदान की जिम्मेदारी पांडवों ने अपने कंधों पर ली। धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्म और नीति का पालन करते हुए संस्कार का नेतृत्व किया। भीम ने अपने बल से सारी व्यवस्थाएं संभालीं।
अर्जुन ने अपने बाणों से अग्नि प्रज्वलित कर दाह संस्कार किया। वहीं नकुल और सहदेव ने मंत्रोच्चारण, आहुति और जलांजलि अर्पित की। पांचों भाइयों ने मिलकर पितामह का पिंडदान और तर्पण किया। यह केवल एक संस्कार नहीं था, बल्कि अपने कुलगुरु के प्रति गहरी श्रद्धा और कृतज्ञता का प्रतीक था।
क्या है धार्मिक महत्व
भीष्म पितामह के पिंडदान से हमें यह शिक्षा मिलती है कि चाहे युद्ध भूमि में कितना भी बड़ा योद्धा क्यों न गिर जाए, धर्म और कर्तव्य का पालन ही सबसे बड़ी सीख है। पांडवों ने अपने पितामह का पिंडदान कर यह दर्शाया कि पूर्वजों का सम्मान करना ही सच्चा धर्म है।
आज भी भीष्म अष्टमी का दिन पितरों के तर्पण और पिंडदान के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन किया गया पिंडदान पितरों को मोक्ष दिलाता है और परिवार पर उनका आशीर्वाद सदा बना रहता है।
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लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।
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