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    Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष में क्यों जरूरी है पितरों का श्राद्ध? यहां मिलेगा जवाब

    Updated: Tue, 09 Sep 2025 11:46 AM (IST)

    पितृपक्ष की 15 दिनों की अवधि पूर्वजों के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करने का समय होता है। इससे पितृ प्रसन्न होते हैं और आपको सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। ऐसे में आज हम जानेंगे कि पितृपक्ष (Pitru Paksha 2025) में पितरों का तर्पण पिंडदान और श्राद्ध आदि करना क्यों आवश्यक है।

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    Pitru Paksha 2025 तर्पण और श्राद्ध का महत्व।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष की शुरुआत होती है, जो इस बार 7 सितंबर से हो चुकी है। वहीं पितृपक्ष का समापन 21 सितंबर को यानी सर्वपितृ अमावस्या के दिन होगा। इस दौरान कई तरह के नियमों का ध्यान रखा जाता है और विवाह, गृह प्रवेश आदि जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते।

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    इसलिए किए जाते हैं यह कर्म

    पितृपक्ष में पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए विशिष्ट कर्म किए जाते हैं, जिसे 'श्राद्ध' कहते हैं। श्राद्ध असल में पितरों को आहार पहुंचाने का माध्यम माना जाता है। मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए जब श्रद्धायुक्त होकर तर्पण, पिंड और दाना आदि किया जाता है, तो उसे 'श्राद्ध' कहा जाता है।

    ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष (Shradh 2025) में तर्पण और श्राद्ध करके पितरों का ऋण चुकाया जाता है। इस दौरान शास्त्र सम्मत विधि द्वारा पितरों के लिए श्रद्धा भाव से, मंत्रों का जप करते हुए दान-दक्षिणा आदि दी जाती है। ऐसा करने से व्यक्ति को पितरों के ऋण यानी पितृऋण से मुक्ति मिल सकती है।

    (Picture Credit: Freepik)

    इन कामों की होती है मनाही

    पितृपक्ष के दौरान कई तरह के नियमों का भी ध्यान रखा जाता है और कई कार्यों को करने पर भी रोक होती है। इस अवधि में शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश मुंडन आदि करना शुभ नहीं माना जाता। इस दौरान नए कपड़े, गहने आदि नहीं खरीदे जाते। साथ ही पितृपक्ष में नया वाहन, मकान या जमीन आदि खरीदने की भी मनाही होती है।

    इन बातों का रखें ध्यान (Pitru Paksha Ke Niyam)

    पितृपक्ष के दौरान सात्विक भोजन करना चाहिए और मांस-मदिरा से दूरी बनानी चाहिए। इस अवधि में आपको रोजाना गीता का पाठ करने से भी आपको लाभ मिल सकता है। पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए इस समय में अपनी क्षमता के अनुसार, ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें। इसी के साथ गाय, कुत्ते, कौवे, देव और चींटी के लिए भी भोजन निकालें, जिन्हें पंचबलि भी कहा जाता है। 

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।