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    Margashirsha Amavasya 2025 Date: पितरों का तर्पण करते समय करें इन मंत्रों का जप, पितृ दोष से मिलेगी राहत

    Updated: Sun, 16 Nov 2025 01:00 PM (IST)

    20 नवंबर को मार्गशीर्ष अमावस्या है, जिसका सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इस शुभ अवसर पर गंगा जैसी पवित्र नदियों में स्नान कर पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष मिलता है और साधकों पर पितरों की कृपा बरसती है। गरुड़ पुराण के अनुसार, पितरों की कृपा पाने के लिए इस दिन गंगा स्नान कर तर्पण के समय विशेष स्तोत्रों का पाठ करना चाहिए।  

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    Margashirsha Amavasya 2025 Date: अगहन अमावस्या पर क्या करें और क्या न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, गुरुवार 20 नवंबर को मार्गशीर्ष अमावस्या है। सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का खास महत्व है। इस शुभ अवसर पर बड़ी संख्या में साधक गंगा समेत पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसके बाद गंगाजल से देवों के देव महादेव का अभिषेक करते हैं और भक्ति भाव से पूजा करते हैं। इसके साथ ही पितरों का श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है।

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    गरुड़ पुराण में निहित है कि अमावस्या तिथि पर पितरों का तर्पण करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं, साकों पर पितरों की कृपा बरसती है। अगर आप भी पितरों की कृपा पाना चाहते हैं, तो अगहन अमावस्या के दिन गंगा स्नान कर पितरों का तर्पण करें। वहीं, तर्पण के समय इस स्तोत्र का पाठ करें।

    1. ॐ पितृ देवतायै नम:

    2. ॐ पितृ गणाय विद्महे जगतधारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात्।

    3. ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च

    नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:

    4. ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।

    नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।

    5. ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि।

    शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।

    6. गोत्रे अस्मतपिता (पितरों का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम

    गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

    7. गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम

    गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

    8. गोत्रे मां (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम

    गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः"

    9. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।

    10. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।

    पितृ निवारण स्तोत्र

    अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।

    नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

    इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।

    सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।

    मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।

    तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।

    नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।

    द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

    देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।

    अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।

    प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।

    योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।

    नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।

    स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।

    सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।

    नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।

    अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।

    अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।

    ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।

    जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।

    तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।

    नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।

    पितृ कवच

    कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।

    तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः॥

    तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।

    तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः॥

    प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।

    यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्॥

    उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।

    यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्॥

    ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।

    अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।

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