Famous Temple in Vrindavan: उत्तर भारत में दक्षिण शैली का रंगजी मंदिर, अब बनेगा पर्यटन हब
Famous Temple in Vrindavan उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ परिषद ने शुरू की तैयारी। 16 करोड़ खर्च होंगे। अगस्त में बनेगी डीपीआर नगर विकास विभाग करेगा काम। भगवान नारायण के लोक को दिव्य देश की संज्ञा दी जाती है।

आगरा, नवनीत शर्मा। दक्षिण भारत की शैली में वृंदावन के रंग जी मंदिर के आसपास के क्षेत्र का सुंदरीकरण कर उसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। रंग जी मंदिर उत्तर भारत का पहला दिव्य देश है। आसपास के क्षेत्र को विकसित करने के लिए उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने 16.20 करोड़ रुपये की कार्ययोजना बनाई है।
रंग जी मंदिर उत्तर भारत का पहला दिव्य देश है। इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1833 में शुरू हुआ था। दक्षिण भारतीय शैली में बने इस मंदिर में श्रीगोदारंगमन्नार भगवान का विग्रह व उत्सव मूर्ति, श्री गरुड़, श्रीसुदर्शन, श्री विष्वकसेन, श्रीवेणुगोपाल की मूर्तियों की प्रतिष्ठा की गई। इसी मंदिर से कुछ दूरी पर सिद्धपीठ कात्यायनी देवी मंदिर भी है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। इस क्षेत्र को अब उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद विकसित करेगा। यहां यात्रियों के बैठने के लिए कुर्सी, स्ट्रीट वेंडर जोन, फुटपाथ का निर्माण, टायलेट ब्लाक, प्रकाश व्यवस्था की जाएगी। पूरे क्षेत्र को सुरक्षा के लिए सीसीटीवी से लैस किया जाएगा।
परिषद का मानना है कि यहां सुविधाएं विकसित होने पर ये पर्यटन का बड़ा हब बनेगा। स्मार्ट सिटी योजना में इसे समाहित किया गया है। इसलिए नगर विकास विभाग इसकी डीपीआर तैयार करेगा। परिषद के डिप्टी सीईओ पंकज वर्मा ने बताया कि अगस्त में डीपीआर बनकर तैयार हो जाएगी, इसके बाद काम शुरू होगा।
क्या है दिव्यदेश
रंगजी मंदिर का निर्माण वर्ष 1833 में शुरू हुआ था। भगवान नारायण के लोक को दिव्य देश की संज्ञा दी जाती है। दिव्य देश की पहचान पांच प्रमुख स्तंभों से होती है। इसमें गरुड़ स्तंभ, गोपुरम, पुष्करणी, पुष्प उद्यान और गोशाला होती है। ये उत्तर भारत का प्रथम दिव्य देश है। पूरे देश में 108 दिव्य देश हैं। इनमें भगवान विष्णु का निवास स्थान बैकुंठ को भी दिव्य देश माना गया है। ऐसे में 107 दिव्य देश नेपाल और भारत में हैं।
रंग जी मंदिर में वर्ष में दस दिन ब्रह्मोत्सव मनाया जाता है, तब ठाकुर रंगगोदामन्नार मंदिर से बाहर आकर श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं। होली के दूज से दस दिन तक उत्सव होता है। सुबह और शाम अलग-अलग तरीके से ठाकुर जी की सवारी निकलती है। वह अलग-अलग रूपों में दर्शन देते हैं।
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