एक अच्छी पहल, आगरा के मुस्लिम समुदाय में बेटियों के बिना दहेज निकाह की मुहिम, अब तक 45 युवा आए सामने
हाजी सईद आलम बबलू ने बताया समूह इन युवाओं का बायोडाटा एकत्रित कर रहा है। समुदाय की विवाह योग्य युवतियों से इनका मिलान कराएगा। इससे कि युवाओं का बिना दहेज निकाह कराया जा सके। जिन युवाओं का रिश्ता तय हो चुका है उन लड़की वालों से बात कर राजी करने का प्रयास करेगा कि वह बिना दहेज के निकाह करें
By Jagran NewsEdited By: Abhishek SaxenaUpdated: Wed, 23 Aug 2023 12:57 PM (IST)
आगरा, जागरण संवाददाता अली अब्बास। कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। कवि दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां मुस्लिम समुदाय में बेटियों के दहेज रहित निकाह की मुहिम पर चरितार्थ होती हैं।
एक वर्ष पहले की बात है। मंटोला के रहने वाले सईद आलम बबलू, हाजी अंजुम, आबिद, नाजिम, अफजाल, फैजान, शाहिद और युनूस कुरैशी ने एक वाट्सएप ग्रुप बनाया। इसका नाम अल निकाह मिन सुन्नती रखा।जागरूकता अभियान काे नारा दिया निकाह को आसान करें, दहेज की लानत को खत्म करें। करीब आठ महीने तक समाज के लोगों को वाट्सग्रुप के माध्यम से जागरूक करने को मुस्लिम मोहल्लों के प्रमुख लोगों को जोड़ने की मुहिम चलाई।
समुदाय के एक हजार लोग जुड़े
समुदाय के करीब एक हजार लोग ग्रुप से अब तक जुड़ चुके थे। मुहिम ने अपना असर दिखाना शुरू किया, निकाह को आसान करने और दहेज की लानत को खत्म करने को लोग आगे आने लगे। ग्रुप के सदस्यों ने छह महीने पहले मुहिम को अमलीजामा पहना धरातल पर लाई। मोहल्लों में जाकर समाज के लोगों के साथ पंचायत आरंभ की। उन्हें बिना दहेज के निकाह के लिए जागरूक करना शुरू किया।45 युवाओं ने लिखवाया नाम
छह महीने में इसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं। अब तक समाज के 45 युवा सामने आकर बिना दहेज निकाह करने वालों की सूची में अपना नाम लिखाया है। कुछ ऐसे हैं, जिनका रिश्ता तय हो चुका है।
इसलिए पड़ी मुहिम की जरूरत
हाजी अंजुम बताते हैं कि समाज सगाई और निकाह के आयोजन में लोग पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं। इन आयोजन में समाज के निम्न मध्यम वर्ग और गरीब तबके के लोग भी शामिल होते हैं। शान शौकत का निकाह देख वह मायूस हो जाते हैं कि वह बेटी के लिए इतना दहेज कहां से लाएंगे। इसके चलते बड़ी संख्या में शादी योग्य युवतियां का रिश्ता नहीं हो पा रहा है। जबकि इनमें कई उच्च शिक्षित भी हैं।दहेज नहीं पिता की संपत्ति में हिस्सा दो
हाजी अंजुम कहते हैं कि बिना दहेज निकाह करने को होने वाली पंचायतों का एक और उद्देश्य है। पंचायत में शामिल होने वाले लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया जा रहा है कि वह बेटी को दहेज न देकर पिता की संपत्ति में हिस्सा दें। इससे पिता कर्जदार होने से बच जाएगा। उसके लोक और परलोक दोनों संवर जाएंगे।
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मुस्लिम महापंचायत के प्रदेश सरपंच ने नदीम नूर ने आठ वर्ष पहले बिना दहेज निकाह करके समुदाय में उदाहरण प्रस्तुत किया था।नदीम कहते हैं कि लड़के वालों को बिना दहेज की शादी के लिए मनाना जितना मुश्किल है, उससे भी कठिन लड़की वाले को राजी करना है कि वह बेटी काे बिना दहेज विदा करें। बिना दहेज निकाह करना लड़की के पिता को अपना अपमान लगता है। उसे लगता है कि समाज क्या कहेगा। उनकी इसी सोच के चलते कई गरीब बेटियाें का निकाह नहीं हो सका। उनकी उम्र 40 और 45 वर्ष की हो गई है। जमाना बदल गया है, समाज को अपनी सोच बदलनी होगी।