अयोध्या में इस जगह भगवान राम ने किया था अपने पिता का तर्पण, यहां पितृपक्ष में देशभर से आते हैं लोग
अयोध्या के पास भरतकुंड भगवान राम के भाई भरत की तपोभूमि है जहां राम ने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था। पितृपक्ष में यह स्थल मिनी गया कहलाता है जहां पिंडदान गया के समान फलदायी है। भरत जी ने यहां 14 वर्ष तपस्या की और 27 तीर्थों का जल कूप में डाला। आज भी यहां श्राद्ध करने का महत्व है और दूर-दूर से लोग अपनों को तारने आते हैं।

नवनीत श्रीवास्तव, अयोध्या। सप्तपुरियों में अग्रणी अयोध्या से करीब 16 किलोमीटर दूर नंदीग्राम में भगवान राम के अनुज भरत की तपोभूमि भरतकुंड है तो दूसरी ओर यही वह स्थल भी है, जहां वनवास से लौटने के बाद भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था इसीलिए पितृपक्ष में पूरे देश से यहां श्रद्धालु आते हैं।
यह भी मान्यता है कि भगवान विष्णु के दाहिने पैर का चिह्न भरतकुंड स्थित गया वेदी पर है तो बाएं पांव का गया जी में। इसीलिए भरतकुंड में पिंडदान गया तीर्थ के समान फलदायी माना गया है।
मान्यता है कि गया वेदी पर ही भगवान राम ने राजा दशरथ का श्राद्ध किया था इसीलिए पितृपक्ष में भरतकुंड आस्था का केंद्र होता है और भरतकुंड को मिनी गया की उपाधि भी दी जाती है।
मान्यता है कि भगवान राम के वनवास के दौरान भरतजी ने उनकी खड़ाऊं रख कर यहीं 14 वर्ष तक तप किया था। भगवान के राज्याभिषेक के लिए भरत जी 27 तीर्थों का जल लेकर आए थे, जिसे आधा चित्रकूट के एक कुएं में डाला था तथा शेष भरतकुंड स्थित कूप में।
भरतकुंड में यह कुआं आज भी है। कूप के निकट ही शताब्दियों पुराना वट वृक्ष भी है। कूप का जल और वट वृक्ष की छाया लोगों को न सिर्फ सुखद प्रतीत होती है, बल्कि असीम शांति से भी भर देती है।
वहीं, त्रेता में भगवान राम के पिता का श्राद्ध करने के बाद स्थापित हुई परंपरा का सदियों बाद भी श्रद्धालु पालन कर रहे हैं। पितृपक्ष में पूरे देश से लोग अपनों को तारने के लिए एकत्र होते हैं। जिन लोगों को गया में भी श्राद्ध करना होता है वे भी पहले ही यहां आते हैं।
सदियों बाद भी इस स्थल पर भरत जी के तप का प्रवाह अनुभूत किया जा सकता है। आचार्य अंबरीश चंद्र पांडेय बताते हैं कि पितृपक्ष में यहां हजारों की संख्या लोग श्राद्ध करने के लिए आते हैं।
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