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    Raksha Bandhan: बुंदेल सौहार्द की ऐतिहासिक मिसाल, ....जब रानी लक्ष्मीबाई ने बांदा के नवाब को भेजी थी राखी

    By Vishnu Shukla Edited By: Anurag Shukla1
    Updated: Fri, 08 Aug 2025 08:37 PM (IST)

    Raksha Bandhan Story बुंदेलखंड में रक्षाबंधन पर रानी लक्ष्मीबाई द्वारा नवाब अली बहादुर को राखी भेजने की कहानी सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है। 1857 की क्रांति के दौरान रानी ने नवाब से मदद मांगी जिसने उनकी सहायता की। यह घटना हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है जिसे आज भी बुंदेलखंड में मनाया जाता है जहां मुस्लिम भाई हिंदू बहनों की रक्षा करते हैं।

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    रानी लक्ष्मीबाई व नवाब अली बहादुर की फाइल फोटो। इंटरनेट मीडिया

    लोकेंद्र प्रताप सिंह, जागरण, बांदा। Raksha Bandhan: जब बहन की राखी मजहब नहीं देखती, तब इतिहास में वो लकीर खींच जाती है जो सदियों तक समाज को जोड़ती है। रक्षाबंधन के अवसर पर बुंदेलखंड में हर वर्ष एक ऐसा प्रसंग याद किया जाता है, जो देश की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है- रानी लक्ष्मीबाई द्वारा बांदा के नवाब अली बहादुर द्वितीय को भेजी गई राखी।

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    1857 की क्रांति का समय था। अंग्रेजों ने झांसी को चारों ओर से घेर लिया था। रानी के पास न तो पर्याप्त सैनिक थे, न ही हथियार। ऐसे समय में उन्होंने धर्म की दीवारें तोड़ते हुए नवाब अली बहादुर द्वितीय को राखी भेजी। उस पत्र में रानी ने सिर्फ अपनी सुरक्षा नहीं मांगी थी, बल्कि पूरे देश की अस्मिता की रक्षा की बात कही थी। रानी का यह साहसिक कदम नवाब के दिल को छू गया। उन्होंने न सिर्फ राखी को स्वीकार किया, बल्कि सेना के साथ तुरंत झांसी की ओर रवाना हुए।

    यह ऐतिहासिक मदद रानी के लिए जीवनदायिनी साबित हुई। नवाब की फौज ने अंग्रेजों को कई दिनों तक रोके रखा और रानी को संगठित होने का समय दिया। पं. जेएन कालेज के इतिहास के प्रोफेसर डा. प्रत्यूष शुक्ला बताते हैं कि यह घटना सिर्फ एक सैन्य सहयोग नहीं थी, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता की सबसे मजबूत नींव थी। यही वजह है कि आज भी बुंदेलखंड के कई गांवों में मुस्लिम परिवार हिंदू बहनों की रक्षा का वचन निभाते हैं, और हिंदू बहनें उन्हें राखी बांधती हैं।

    जिले के कुछ क्षेत्रों में आज भी ‘अली बहादुर की चौपाल’ जैसे आयोजन होते हैं, जहां लोग इस विरासत को नई पीढ़ी को सुनाते हैं। विद्यालयों और सामाजिक मंचों पर रानी और नवाब की यह कहानी प्रेरणादायक उदाहरण के रूप में दोहराई जाती है। रक्षाबंधन आज भी इस बात का प्रमाण है कि भाई-बहन का रिश्ता खून से नहीं, भावनाओं से बनता है। जब यह रिश्ता मजहब की सीमाएं लांघता है, तब इतिहास में अमर हो जाता है।