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    Barabanki News: जिले में फैल रहा है साइलेंट किलर का जाल, इन लक्षणों से करें पहचान

    बाराबंकी जिले में हेपेटाइटिस के मरीजों की संख्या बढ़ रही है जिसका मुख्य कारण गलत खानपान है। जिला अस्पताल में हर महीने कई मामलों की पुष्टि हो रही है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जांच और उपचार की सुविधा उपलब्ध है लेकिन गंभीर मामलों को लखनऊ रेफर किया जा रहा है। हेपेटाइटिस से बचाव के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं और गर्भवती महिलाओं की जांच अनिवार्य कर दी गई है।

    By Prahlad Tiwari Edited By: Ashish Mishra Updated: Thu, 28 Aug 2025 03:52 PM (IST)
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    जिले में तेजी से फैल रहा है साइलेंट किलर का जाल। फाइल फोटो

    प्रहलाद तिवारी, बाराबंकी। साइलेंट किलर यानी हेपेटाइटिस जैसी गंभीर बीमारी का जाल फैल रहा है। खानपान में लापरवाही बरतने वाले इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। जिले में हेपेटाइटिस-सी व बी के रोगियों की संख्या बढ़ रही है। जिला अस्पताल में हर माह छह-सात रोगियों में हेपेटाइटिस बी व सी की पुष्टि हो रही है।

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    जिलेभर में बीते छह माह (जनवरी से जून तक) हुई जांचों में हेपेटाइटिस से पीड़ित 145 मरीज मिले हैं। यहां पर हेपेटाइटिस बी के अधिक मरीज हैं। इनका इलाज जिला अस्पताल के हेपेटाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर पर चल रहा है। हेपेटाइटिस लक्षण वाले लगभग साढ़े सात हजार मरीजों की जांच की गई।

    जांच की सुविधा सभी सीएचसी सहित जिला अस्पताल में मौजूद है, लेकिन उपचार केवल जिला अस्पताल में संभव है। हेपेटाइटिस सी की तीन हजार 698 मरीजों की जांच हुई, इनमें से 48 पॉजीटिव निकले। हेपेटाइटिस बी की तीन हजार 898 मरीजों की जांच में 97 रोगी सकारात्मक हुए।

    सीएमएस डॉ. वीपी सिंह बताते हैं कि हेपेटाइटिस ए और ई पानी एवं विषाक्त भोजन के कारण, बी तथा सी रक्त और शारीरिक द्रव में मौजूद संक्रमण के कारण होता है। हेपेटाइटिस ए और ई बारिश के मौसम में सबसे अधिक फैलता है।

    खानपान में सफाई व सावधानी नहीं होने और दूषित पानी के कारण लोग आसानी से चपेट में आ जाते हैं। ए और सी में इंसान बिल्कुल सामान्य रहता है और अचानक लिवर की बीमारी से पीड़ित हो जाता है।

    हेपेटाइटिस-बी की अपेक्षा सी अधिक घातक

    जिला अस्पताल में हेपेटाइटिस सेंटर के नोडल डॉ. राजेश कुशवाहा बताते हैं कि हेपेटाइटिस-सी के रोगी यदि तीन महीने तक इलाज लें तो वह स्वस्थ हो जाते हैं। लेकिन, हेपेटाइटिस-बी के रोगियों को जीवन पर्यंत दवा के सहारे जीना होता है।

    उन्होंने बताया कि जब तक वायरल का असर लिवर पर नहीं दिखता, तब तक हेपेटाइटिस-बी के रोगी दवाई शुरू नहीं करते हैं। यदि दवाई खाने के बाद रोगी में हेपेटाइटिस-बी निगेटिव आ गया तो दवाई रोककर उसे फालोअप पर रखते हैं।

    हेपेटाइटिस पीड़ित गर्भवती महिलाओं के प्रसव की नहीं सुविधा

    हेपेटाइटिस से पीड़ित गर्भवती महिलाओं के प्रसव की सुविधा जिले में नहीं है। सीजर व सामान्य दोनों प्रसव के लिए गर्भवती महिलाओं को डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान लखनऊ रेफर किया जाता है। जिला महिला अस्पताल के सीएमएस डॉ. प्रदीप कुमार ने बताया कि ओटी एक होने के कारण बीमारी से ग्रसित गर्भवती महिलाओं को रेफर किया जाता है।

    बढ़ते संक्रमण को देखते हुए सुरक्षित मातृत्व के तहत जिले में सभी गर्भवती महिलाओं का हेपेटाइटिस-बी और हेपेटाइटिस सी की जांच अनिवार्य कर दी गई है। ताकि समय रहते गर्भवती महिलाओं का इलाज हो सके और गर्भ में पल रहे शिशु का भी सुरक्षित प्रसव कराया जा सके।

    हेपेटाइटिस के लक्षण

    इस स्थिति में थकान और कमजोरी, मतली और उल्टी, त्वचा और आंखों का पीला पड़ना, पेट दर्द, गहरे पीले रंग का पेशाब आना, भूख न लगना, जोड़ों का दर्द, बुखार, वजन कम होना, आंखों का पीला होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

    अगर समय पर उपचार न शुरू किया जाए तो हेपेटाइटिस जानलेवा हो सकती है। देश की बड़ी आबादी ग्रसित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 25 करोड़ लोग हेपेटाइटिस-बी से ग्रसित हैं और पांच करोड़ लोगों को हेपेटाइटिस-सी का संक्रमण है। जिले में भी रोगी बढ़ रहे हैं। जांच व उपचार की निशुल्क सुविधा है। जागरूकता कार्यक्रम भी संचालित हो रहे हैं। -डा. डीके श्रीवास्तव नोडल एसीएमओ।