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    भारत में गली-गली कुत्‍तों का आतंक: हर 9 मिनट में एक मौत, बच्चे सबसे बड़े शिकार

    Updated: Wed, 10 Dec 2025 03:30 PM (IST)

    बरेली में कुत्तों का आतंक व्याप्त है। जहां हर 9 मिनट में एक व्यक्ति कुत्ते के काटने का शिकार हो रहा है। विशेष रूप से बच्चे इन हमलों के प्रति अधिक संवे ...और पढ़ें

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    प्रतीकात्‍मक च‍ित्र

    अनपू गुप्ता, जागरण, बरेली। कुत्ता काटने की मामलों को लेकर पिछले तीन साल की जो रिपोर्ट सामने आई है, वह हैरान करने वाली है कि जिले में हर साल करीब एक लाख लोगों कुत्ता काटने के शिकार हो रहे हैं, बल्कि इनकी संख्या भी हर साल बढ़ती जा रही है। अब तक एक जनवरी से नवंबर 1.14 लाख कुत्ता काटने के मामले हुए हैं।

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    यह संख्या अभी और भी बढ़ेगी। वन्यजीव पशु भी कुत्तों के लगातार आक्रामक होते स्वभाव को लेकर फिक्रमंद नजर आ रहे हैं। इसके पीछे कई वजह बताईं जा रही हैं। विशेषज्ञों का कहना कि कई जगहों पर कूड़े के साथ सड़े-गले पशुओं को भी फेंक दिया जाता है। दांतों में उनका मांस लगने के बाद वह आक्रामक हो रहे हैं। इंसानों के प्रति कुत्तों का स्वभाव लगातार बढ़ता जा रहा है।

    स्वास्थ्य विभाग के पास आई रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2023 में एक लाख 613, 2024 में एक लाख 10 हजार और वर्ष 2025 में लाख 14 हजार 996 लोगों को कुत्ते काट चुके हैं। इसमें 40 प्रतिशत वह बच्चे शामिल हैं, जिनकी उम्र 15 साल से कम है। जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डा. प्रशांत रंजन का कहना है कि डब्ल्यूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट देखें तो कुत्ता काटने से हर नौ मिनट पर एक मौत हो रही है।

    जबकि हर साल करीब 59 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है। यह हालत तब है कि जब एंटी रैबीज वैक्सीन (एआरवी) ऐसी दवा है, जो कुत्ता काटने के बाद लगाई जाती और इससे मरीज स्वस्थ्य भी हो जाता है, जबकि दूसरे टीके सिर्फ रोकथाम के लिए होते हैं। यानी बीमारी से पहले लग गए तो बचाव, वरना बाद में उसका कोई बचाव नहीं है।

    इधर प्रशासन पर कुत्तों की संख्या पर नियंत्रण और उनके पकड़ने के लिए शिकंजा कसने की जिम्मेदारी है लेकिन जिस तरह से कुत्ता काटने के केस लगातार बढ़ रहे हैं, उससे यह तो साफ है कि आवारा कुत्तों की बढ़ती तादाद पर बेकाबू है। इधर, इंसानों के प्रति कुत्तों का स्वभाव इतना आक्रामक क्यों होता जा रहा है।

    इसे लेकर भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान यानी आइवीआरआइ के वन्यजीव विशेषज्ञ व प्रमुख विज्ञानी डा. अभिजीत पावड़े ने कई वजह गिनाई है। उनका कहना है कि आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में अक्सर सड़कों पर घूमने वाले पिल्ले वाहनों की चपेट में आ जाते हैं। बच्चे की मौत के बाद कुत्ता काफी आक्रामक हो जाता है और वह गुस्सैल होकर राहगीरों, जिसमें राहगीरों और बच्चों को भी शिकार बनाने लगता है।

    इसके अलावा चिकन-मटन वालीं दुकानों के इर्द-गिर्द घुमने वाले जिन कुत्तों के दांतों में मांस लग जाता है। या फिर उन जगहों पर जहां पशुओं के अवशेष फेंके जाते हैं, उनके मुंह में मांस और खून लग जाता है। जिससे वह इंसानी मांस के लिए भी आदि हो जाते हैं। आइवीआरआइ के ही वरिष्ठ विज्ञानी डा. गौरव कुमार शर्मा ने बताया कि ब्रीडिंग के समय भी कुत्तों के हावभाव में काफी बदलाव देखने को मिला है।

    खून निकल रहा है तो एआरवी के साथ सीरम भी लगवाना जरूरी

    कुत्ता काटने के बाद अगर उस जगह पर सिर्फ खरोंचे ही आईं हैं तो एआरवी लगाने से रोकथाम हो जाती है, लेकिन अगर जख्म के साथ अगर उसमें खून का रिसाव शुरू हो जाता है तो उस स्थिति में तत्काल सीरम देना जरूरी होता है। डा. प्रशांत का कहना है कि सीरम जल्द से जल्द लगना चाहिए लेकिन अगर कोई एआरवी पहले लगवा ले और चार-पांच दिन बाद सीरम चढ़ाने को कहे तो उसका फायदा नहीं होता, क्योंकि उस समय पर एंटी बाडीज बन चुकी होती हैं। एआरवी की सभी पांच डोज पूरी करानी बेहद जरूरी होती है।

    प्राइवेट हास्पिटल में 18 हजार रुपये का मिलता सीरम

    जिला प्रतिरक्षण अधिकारी के अनुसार, रैबीज की तीन श्रेणी है। पहली श्रेणी में जानवर के चाटने पर साबुन से धुलाई की जाती है। दूसरी में कुत्ते या बंदर के काटने पर सामान्य टीका लगाया जाता है। तीसरी श्रेणी में जब जानवर काटता है और खून का बहाव नहीं रुकता नहीं, तब इम्युनोग्लोबुलिन टीका लगाया जाता है।श्रेणी तीन मे सीरम मरीजों को कुत्ता काटने के 24 घंटे में लगवाना होता है। वैसे जितनी जल्दी हो सके इसे लगवा लेना चाहिए। यह सीरम निजी अस्पताल में 18 हजार रूपये का मिलता है।

    15 से 20 साल बाद भी दिखाई दे सकता असर

    कुत्ता काटने के बाद अगर रैबीज शरीर के अंदर दाखिल हो गया तो उसका असर फौरन न होकर 15 से 20 साल बाद भी दिखाई पड़ सकता है। डा. प्रशांत रंजन का कहना है कि रैबीज का असर कितने समय बाद दिखाई देगा, यह कहना मुश्किल है लेकिन इसका असर जब तक मस्तिष्क की नसों तक नहीं पहुंचता, इसका प्रभाव नहीं दिखाई देता है।

    यह काफी हद तक इस पर भी निर्भर करता है कि कुत्ते ने आपके किस जगह पर काटा है। अगर पैर में है तो दिमाग तक असर पहुंचने पर 15 से 20 साल तक का समय लग सकता है। जबकि हाथ या गर्दन में काटने से अवधि इससे काफी कम भी हो सकती है। हालांकि जब तक इसके लक्षण पता चलते हैं, तब तक काफी देर हो चुकी होती है। उस समय पीड़ित के हावभाव कुत्ते की तरह ही नजर आने लगते हैं।

    इन छह बातों का रखें ध्यान

    • सबसे पहले घाव को धो लें। हल्के गुनगुने पानी और साबुन का प्रयोग करें।
    • साफ कपड़े की मदद से रक्तस्राव को कम करने की कोशिश करें।
    • प्राथमिक घरेलू उपायों के बाद तुरंत डाक्टर से मिलें।
    • चिकित्सक की सलाह पर रैबीज का इंजेक्शन लगवाएं।
    • कुत्ते के काटने के लक्षणों जैसे लालिमा, सूजन, दर्द और बुखार आदि पर विशेष ध्यान रखें।

    कुत्ता काटने के आंकड़े

    2023 1,00,613
    2024 1,10,895
    2025 1,14,996 (जनवरी तक)

    माहवार लगाई गईं एंटी रैबीज वैक्सीन (ARV)

    माह (Month) वैक्सीन की संख्या (Number of Vaccines)
    जुलाई 11,123
    अगस्त 10,030
    सितंबर 9,421
    अक्टूबर 9,287

    कुत्ता काटने की कुछ प्रमुख घटनाएं

    • 28 मार्च को ग्रीन पार्क में खरीदारी कर लौट रही महिला पर कुत्तों के झुंड ने हमला कर दिया। उससे वह गहरे सदमे में चली गईं और कई माह तक इलाज चला।
    • जुलाई में इज्जतनगर में पांच वर्षीय और किला में तीन वर्षीय बालक पर कुत्तों के झुंड ने जानलेवा हमला कर दिया। दोनों बच्चे कई दिन तक अस्पताल में भर्ती रहे।
    • 15 मार्च-2023 को दुकान से सामान लेकर लौट रहे मथुरापुर के 10 वर्षीय सागर पर कुत्तों के झुंड ने हमला कर दिया। सागर का कई माह तक अस्पताल में इलाज चला।
    • तीन मई-2023 को तीन मई को बंडिया में दो घटनाएं हुई। अर्श पर हमला करने के बाद गांव के ही 10 वर्षीय अयान पर हिंसक कुत्तों ने हमला कर दिया था। इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई थी।
    • 16 जून-2023 को घर के बाहर खेल रही आठ वर्षीय चांद बी पर हिंसक कुत्तों के झुंड ने हमला कर दिया। कुत्तों ने कमर व गर्दन पर गंभीर घाव कर दिए, चांद अवस्था में कई दिनों तक भर्ती रही।

     

    कुत्ता काटने की बढ़ती घटनाओं को लेकर सीएमओ ने जागरूकता कार्यक्रम चलाने के निर्देश दिए है। इसके तहत लोगों को सतर्क किया जा रहा है कि कुत्ता काटने पर वह जरूरी इलाज अवश्य कराएं, नहीं तो इसके परिणाम काफी घातक हो सकते हैँ। अस्पतालों में सीरम और एआरवी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।

    - डा. प्रशांत रंजन, जिला प्रतिरक्षण अधिकारी


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