अब जान पाएंगे अंडे की उम्र, सीएआरआइ ने शुरू किया नया प्रयोग, एक्सपायर्ड अंडों से बचने की होगी गारंटी
सेंट्रल एवियन रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएआरआइ) ने अंडों की उम्र जानने की नई तकनीक विकसित की है। यह तकनीक उपभोक्ताओं को एक्सपायर्ड अंडों से बचाने में मदद करेगी और अंडों की गुणवत्ता मापने में सहायक होगी। इस प्रयोग से अंडा उत्पादन उद्योग में उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ेगा।
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जागरण संवाददाता, बरेली। एक्सपायर्ड अंडे न खाने पड़े, इसके लिए केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (सीएआरआइ) ने अंडों पर उत्पादन की तिथि अंकित करनी शुरू कर दी है। हालांकि सीएआरआइ में अंडा उत्पादन हर दिन 200 से 250 किलो ही होता है। जबकि बड़े पैमाने पर बाहरी पोल्ट्री संचालक का उत्पादन ही बाजार में पहुंच रहा है। वह भी इसका अनुपालन करें, इसे लेकर सीएआरआइ के विज्ञानियों के साथ लखनऊ में पशुपालन विभाग के अधिकारियों के साथ मीटिंग भी हो चुकी है। अब इसे लेकर मंजूरी का इंतजार किया जा रहा है।
राष्ट्रीय अंडा समन्वय समिति (एनईसीसी) के सर्वे के मुताबिक, प्रदेश में 3.50 से लेकर पांच करोड़ अंडे की खपत हर दिन होती है। सीएआरआइ के विज्ञानियों के अनुसार, अंडा आमतौर पर सात से 12 दिन में खराब हो जाता है। हालांकि इसका तापमान अगर 20-25 डिग्री सेल्सियस तक रखा जाए तो इसके और और दिनों तक बचाए रखा जा सकता है। जबकि दिक्कत ये है कि करीब 60 प्रतिशत अंडे की आपूर्ति पंजाब, हरियाणा, दिल्ली सहित दूसरे प्रांंतों से होती है। इसलिए इसमें काफी समय लग जाता है।
दिक्कत ये भी है कि अंडे पर उत्पादन तिथि दर्ज न होने से यह मालूम ही नहीं हो पाता कि वह कितना पुराना है और कहीं वह एक्सपायर्ड तो नहीं हो गया। विज्ञानी काफी समय से इसे इस दिक्कत को महसूस कर रहे थे। इसे देखते हुए सीएआरआइ ने शोध व क्रास ब्रीडिंग कर तैयार की गई करीब 38 किस्मों की पक्षाी की प्रजातियों से जिन अंडों का उत्पादन हो रहा है।
उसमें उत्पादन तिथि लगानी शुरू कर दी है। इसका निजी पोल्ट्री फार्मर भी अनुपालन करें, इसके लिए संस्थान के पूर्व निदेशक रहे डा. अशोक कुमार तिवारी ने पशुपालन विभाग के अपर मुख्य सचिव रजनीश दुबे के साथ इस संबंध में चर्चा भी की थी। इसके बाद सीएआरआइ के विज्ञानी डा. जयदीप रोकड़े ने इसे लेकर और भी शोध किए हैं। हालांकि इस पर प्रस्ताव पर अभी मुहर लगनी बाकी है।
संस्थान में करीब 18 लाख अंडों का होता उत्पादन
सीएआरआइ वैसे तो अंडों का उत्पादन बिक्री के लिए नहीं करता लेकिन शोध के लिए रखीं गईं मुर्गियों से हर साल महीने करीब डेढ़ लाख अंडे का उत्पादन होता है। जबकि यह आंकड़ा सालाना करीब 18 लाख अंडों का है। जबकि एनईसीसी के मुताबिक, प्राइवेट पोल्ट्री फार्मर प्रदेश में करीब दो करोड़ हर दिन अंडे का उत्पादन करते है। सालाना यह ग्राफ 24 करोड़ तक पहुंच जाता है।
छह लाख खर्च कर लगवाई गई मशीन
सीएआरआइ ने अंडों पर उत्पादन तिथि दर्ज करने के लिए करीब छह लाख रुपये खर्च लिए हैं। विज्ञानियों का कहना है कि यह रकम वैसे छोटे स्तर के पोल्ट्री संचालकों के लिए कुछ महंगी हो सकती है लेकिन जिनका उत्पादन ठीक है, वे इसे बेहद आसानी से लगवा सकते हैं। निदेशक डा. जगबीर सिंह ने बताया कि संस्थान में इस मशीन ने काम करना शुरू कर दिया है।
अंडा उत्पादन के बाद अगर काफी समय तक रखा रहे तो उसमें बैक्टीरिया लगने की आशंका रहती है। साथ ही उसकी गुणवत्ता भी काफी प्रभावित हो जाती है। इसलिए संस्थान ने अंडों यह दर्ज करना शुरू कर दिया है कि उसका उत्पादन किस तिथि में हुआ है। इससे उपभोक्ताओं को उसके एक्सपायरी हानेे का अनुमान आसानी से पता चल सकेगा।
- डा. राजबीर सिंह त्यागी, निदेशक, सीएआरआइ

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