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    यूपी के इस जिले में 100 करोड़ का घोटाला, सात साल से चल रहा था खेल… खुला तो दंग रह गए अधिकारी

    Updated: Fri, 17 Oct 2025 03:12 AM (IST)

    चित्रकूट के कोषागार विभाग में 2018 से 2025 तक 95 सेवानिवृत्त शिक्षकों के खातों में लगभग 100 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ। पेंशन और वेतन के नाम पर फर्जी भुगतान किए गए। एक महिला के खाते में संदिग्ध एंट्री मिलने पर मामले का खुलासा हुआ। जांच जारी है और अब तक 22 लाख रुपये की रिकवरी हो चुकी है।

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    जागरण संवाददाता, चित्रकूट। जिले के कोषागार विभाग में एक चौंकाने वाला घोटाला सामने आया है, जिसमें वर्ष 2018 से लेकर 2025 तक 95 सेवानिवृत्त शिक्षकों के खातों का दुरुपयोग कर लगभग 100 करोड़ रुपये की सरकारी धनराशि का गबन किया गया।

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    यह रकम पेंशन और वेतन मद में दर्शाकर फर्जी भुगतान आदेशों के जरिए ट्रांसफर की गई और फिर दलालों व कोषागार कर्मचारियों की मिलीभगत से निकाल ली गई। जिलाधिकारी शिवशरणप्पा जीएन ने बताया कि शासन स्तर से अपर निदेशक पेंशन और वरिष्ठ कोषाधिकारी सहित तीन सदस्यीय टीम को जांच सौंपी है। उनकी जांच के आधार पर रिपोर्ट दर्ज कराई जाएगी। कोई भी दोषी छोड़ा नहीं जाएगा।

    घोटाले की परतें उस समय खुलीं जब मऊ के खंडेहा गांव निवासी कमला देवी को अपने बैंक खाते में अचानक 31 लाख रुपये की संदिग्ध एंट्री की जानकारी मिली। जब वह कोषागार कार्यालय पहुंची और पूछताछ की, तो अधिकारियों को शक हुआ। इसके बाद शुरू हुई जांच में सामने आया कि यह एक संगठित वित्तीय अपराध है, जिसमें 95 खातों में इसी तरह से फर्जी ट्रांजैक्शन किए गए हैं।

    ट्रेजरी कर्मचारियों ने जानबूझकर उन रिटायर्ड शिक्षकों के खातों को चुना, जो तकनीकी रूप से जागरूक नहीं थे। ऐसे बुजुर्ग शिक्षक अपने बैंक स्टेटमेंट या ट्रांजैक्शन पर नियमित निगरानी नहीं रखते। कुछ मामलों में शिक्षकों को यह भी नहीं पता था कि उनके नाम पर लाखों की रकम आई और निकाली भी जा चुकी है।

    विभागीय सूत्रों के अनुसार, एक ही शिक्षक के नाम पर बार-बार भुगतान दर्शाकर रकम खातों में भेजी जाती रही और फिर उसे दलालों के जरिए निकाला गया। वैसे सूत्र बताते हैं कि जांच में सामने आया है कि ट्रेजरी कर्मचारियों ने फर्जी भुगतान आदेश तैयार किए।

    असली लोगों के बैंक खातों में सरकारी राशि ट्रांसफर की जाती थी, और फिर उन खातों से रकम निकलवा ली जाती थी। इसके लिए पुराने निष्क्रिय खातों और रिकॉर्ड का भी दुरुपयोग किया गया। सरकारी सिस्टम के भीतर ही यह गड़बड़ी इतने व्यवस्थित तरीके से की गई कि सालों तक किसी को भनक तक नहीं लगी।

    एक सप्ताह पहले विशेष ऑडिट टीम ने जब अभिलेख खंगाले, तब जाकर पूरे खेल का पर्दाफाश हुआ। अब तक तीन ट्रेजरी कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई है, जिनमें से दो कर्मचारी जिले में रियल एस्टेट कारोबार में भी सक्रिय हैं। आशंका है कि घोटाले की रकम का बड़ा हिस्सा रियल एस्टेट में लगाया गया है।

    सूत्रों का कहना है कि वर्ष 2018 से तैनात सभी वरिष्ठ कोषाधिकारियों और कर्मचारियों को तलब किया गया है और उनसे पूछताछ की जा रही है। घोटाले में यह भी सामने आया है कि कुछ खातों में एक वर्ष के अंदर 50 लाख से 96 लाख रुपये तक का लेनदेन हुआ है।

    सवाल यह उठता है कि इतने भारी ट्रांजेक्शन पर आयकर विभाग की नजर क्यों नहीं पड़ी? सामान्य मामलों में मामूली रकम पर नोटिस भेजने वाला विभाग इस पूरे लेन-देन को नजरअंदाज करता रहा। घोटाला सामने आने के बाद जनपद के करीब तीन हजार से अधिक पेंशनर्स के बैंक खातों की जांच कोषागार में शुरू हो गई है।

    मामले को लेकर जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, कोषाधिकारी और सरकारी अधिवक्ताओं के बीच 12 घंटे से अधिक मंथन चला लेकिन रिपोर्ट दर्ज नहीं हो सकी। वरिष्ठ कोषाधिकारी रमेश सिंह ने बताया कि अभी तक सीज खातों से 22 लाख की रिकवरी की जा चुकी है।

    वहीं लीड बैंक प्रबंधक अनुराग शर्मा ने बताया कि कोषागार से जो 95 बैंक खाता की सूची मिली भी उसमें अभी तक जांच में 10 करोड़ रुपये से अधिक की अनियमितता की पुष्टि हो चुकी है, लेकिन यह आंकड़ा 100 करोड़ रुपये तक पहुंचने की आशंका है।

    अभी रिपोर्ट भले ही दर्ज नहीं हुई है लेकिन उन ट्रेजरी के कर्मचारियों पर पुलिस की नजर है। कुछ लोग तो बताते हैं कि 12 लोगों को पकड़ कर पूछताछ की गई है। उनमें कुछ ऐसे लोग हैं जिन्होंने खातों से पैसा निकाला है।